केन्द्र सरकार की मनमानी...
खरीफ की एमएसपी बढ़ाने की मांग को केन्द्र सरकार ने किया अस्वीकार
किसान केंद्र की मौजूदा एमएसपी पर 7,800 रुपये के घाटे में
बेंच रहे उत्पाद
गूगल से
ली गई छायाचित्र
मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन विवादित
कृषि क़ानूनों के बीच देश भर में इस समय धान, ज्वार, बाजरा, अरहर समेत अन्य खरीफ फसलों की खरीदी चल
रही है. एक तरफ जहां केंद्र सरकार पिछले साल की तुलना में अधिक धान खरीदने का दावा
कर रही है, वहीं
दूसरी तरफ किसानों एवं कृषि कार्यकर्ताओं का कहना है कि रबी फसलों में से सिर्फ
धान की खरीदी हो रही है और वो भी केवल पंजाब एवं हरियाणा में. सरकारी आंकड़े भी इन
दावों की तस्दीक करते हैं. केंद्र सरकार द्वारा इस साल खरीदे गए कुल धान में से
करीब 90 फीसदी
खरीदी पंजाब और हरियाणा से हुई है.
सरकारी खरीद न होने और इसके
परिणामस्वरूप बाजार मूल्य कम रहने के कारण किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य
(एमएसपी) से कम दाम पर अपने उत्पाद को बेचना पड़ता है. ये स्थिति तब और चिंताजनक हो
जाती है जब हम केंद्र द्वारा घोषित एमएसपी और विभिन्न राज्यों के उत्पादन लागत की
तुलना करते है, जो ये
दर्शाता है कि भारत सरकार की एमएसपी कई राज्यों की उत्पादन लागत से भी कम है. इसी
के चलते भाजपा शामित समेत कई राज्यों ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर साल 2020 की खरीफ फसलों के लिए घोषित एमएसपी को
अपर्याप्त बताया था और इसे राज्यवार उत्पादन लागत के हिसाब से घोषित करने की मांग
की थी.
द वायर के मुताबिक, झारखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार, आंध्र प्रदेश और ओडिशा ने केंद्र सरकार
द्वारा तय की गई खरीफ फसलों (धान, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, अरहर, मूंग, उड़द, मूंगफली, सूरजमुखी, सोयाबीन, कपास) की एमएसपी पर सहमति नहीं जताई थी
और इसमें बदलाव करने की मांग की थी. इन राज्यों ने कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय
को लिखे अपने पत्र में उनके यहां के उत्पादन लागत के आधार पर एमएसपी निर्धारित
करने की मांग की थी. लेकिन, केंद्र
सरकार ने इन सभी मांगों को ठुकरा दिया. जबकि, दस्तावेजों से पता चलता है कि राज्यों
द्वारा प्रस्तावित और केंद्र द्वारा घोषित एमएसपी में करीब 7,800 रुपये प्रति क्विंटल तक का अंतर है.
इसका अर्थ है कि राज्य सरकार के एमएसपी आकलन के हिसाब से एक किसान द्वारा केंद्र
की मौजूदा एमएसपी पर अपने एक क्विंटल उत्पादन बेचने पर 7,800 रुपये का घाटा होगा.
झारखंड
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अगुवाई
वाली झारखंड सरकार ने केंद्र को भेजे अपने पत्र में कहा था कि कोरोना महामारी के
चलते राज्य में लौटे किसानों की मदद के लिए एमएसपी बढ़ाने की जरूरत है, ताकि उनकी समस्याओं का समाधान किया जा
सके. राज्य के कृषि सचिव अबूबकर सिद्दीकी द्वारा केंद्रीय कृषि मंत्रालय में अपर
सचिव डॉली चक्रवर्ती को लिखे गए पत्र में भारत सरकार द्वारा घोषित और राज्य सरकार
द्वारा प्रस्तावित एमएसपी में अंतर का वर्णन किया गया है. इसके मुताबिक झारखंड
सरकार ने धान की एमएसपी 2,784 रुपये
प्रति क्विंटल निर्धारित करने की मांग की थी. जबकि, भारत सरकार ने इस सीजन के लिए धान की
एमएसपी 1,868 रुपये
प्रति क्विंटल तय कर रखा है.इस तरह केंद्र द्वारा घोषित धान की एमएसपी झारखंड
द्वारा प्रस्तावित एमएसपी के मुकाबले 916 रुपये कम है. जबकि, देश में कुल धान उत्पादन में 3.3 फीसदी हिस्सेदारी झारखंड की होती है.
राजस्थान
राजस्थान सरकार ने केंद्रीय कृषि
मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा था कि चूंकि राज्य के अधिकांश भाग में मरुस्थलीय
क्षेत्र होने एवं बारिश की विषम परिस्थितियों के कारण फसलों की लागत अन्य राज्यों
की तुलना में अधिक होती है, इसलिए रबी
फसलों की एमएसपी बढ़ाई जानी चाहिए. राज्य के मुख्य सचिव डीबी गुप्ता ने छह मई 2020 की तारीख में लिखे अपने पत्र में बाजरा, मक्का, सोयाबीन और मूंग के न्यूनतम समर्थन
मूल्य बढ़ाने की मांग की थी. पत्र के मुताबिक राजस्थान सरकार ने बाजरा की एमएसपी 2,210 रुपये प्रति क्विंटल करने की मांग की
थी, जबकि
केंद्र ने इसकी एमएसपी 2,150 रुपये
प्रति क्विंटल तय किया है. इसी तरह राज्य ने मक्का की एमएसपी 3,200 रुपये प्रति क्विंटल तय करने के लिए
कहा था. लेकिन भारत सरकार ने इसकी एमएसपी 1,850 रुपये प्रति क्विंटल घोषित की है, जो राज्य के प्रस्ताव की तुलना में 1,350 रुपये कम है.
महाराष्ट्र
कृषि मंत्रालय के दस्तावेज़ों से पता
चलता है कि महाराष्ट्र सरकार की सिफारिश की तुलना में केंद्र द्वारा निर्धारित
एमएसपी 53 फीसदी तक
कम है. राज्य ने धान की एमएसपी 3,968 रुपये
प्रति क्विंटल, ज्वार की 3,745 रुपये प्रति क्विंटल, बाजार की 4,182 रुपये प्रति क्विंटल, मक्का की 2,163 रुपये प्रति क्विंटल, तुअर (अरहर) की 6211 रुपये प्रति क्विंटल, मूंग की 10,444 रुपये प्रति क्विंटल, उड़द की 8,900 रुपये प्रति क्विंटल, मूंगफली की 9,511 रुपये प्रति क्विंटल, सोयाबीन की 6,070 रुपये और कपास की 8,215 रुपये प्रति क्विंटल तय करने की
सिफारिश की थी. जबकि, केंद्र
द्वारा निर्धारित धान की एमएसपी, जो 1,868 रुपये प्रति क्विंटल है, राज्य सरकार के प्रस्ताव की तुलना में 53 फीसदी कम है.
बिहार
बिहार की भाजपा समर्थित नीतीश सरकार ने
भी केंद्र द्वारा निर्धारित एमएसपी पर सहमति नहीं जताई थी और इसे बढ़ाने की मांग की
थी. राज्य के कृषि सचिव डॉ. एन. सरवना कुमार ने 22 मई 2020 को भेजे अपने पत्र में कहा था कि राज्य
के उत्पादन लागत को ध्यान में रखते हुए धान की एमएसपी 2,532 रुपये प्रति क्विंटल और मक्का की
एमएसपी 2,526 रुपये
प्रति क्विंटल तय की जानी चाहिए. हालांकि केंद्र ने धान की एमएसपी 1,868 रुपये और मक्का की एमएसपी 1,850 रुपये प्रति क्विंटल तय की है, जो बिहार सरकार के प्रस्ताव से काफी कम
है.
आंध्र प्रदेश
अन्य राज्यों की तरह आंध्र प्रदेश
सरकार ने भी बढ़े हुए उत्पादन लागत को ध्यान में रखते हुए खरीफ फसलों की एम एसपी
बढ़ाने की मांग की थी. राज्य ने ए2$एफएल लागत
के आधार पर नहीं, बल्कि सी 2 लागत के आधार पर एम एसपी तय करने को
कहा था. राज्य के कृषि आयुक्त एच. अरुण कुमार ने मई, 2020 में भेजे अपने पत्र में कहा, उत्पादन लागत में वृद्धि हुई है
क्योंकि मजदूरी, अन्य
लागतों में बढ़ोतरी हुई है इसलिए अन्य क्षेत्रों की तुलना में कृषि कम लाभकारी हुआ
है और कृषि कार्यों के लिए मज़दूरों की उपलब्धता में कमी आई है. इसके अलावा प्राकृतिक
आपदाओं के कारण भी कुल कृषि आय में कमी आती है. इस तरह राज्य ने सी2$50 फ़ॉर्मूला के आधार पर एम एसपी तय करने
की सिफारिश की थी. लेकिन, केंद्र ने
(ए2$एफएल)$50 फ़ॉर्मूला के आधार पर एम एसपी तय की है, जो सी 2 लागत से काफी कम है.
इसके साथ ही ओडिशा और अन्य राज्यों की
भी स्थिति इसी तरह से है. इसके बाद भी केन्द्र सरकार उनकी मांगों को ठुकरा रही है.
यानी इससे साबित होता है कि किसानों के प्रति केन्द्र सरकार की मंशा ठीक नहीं है.
यही कारण है कि सरकार कृषि अध्यादेश कानून का पूरजोर विरोध होने के बाद भी उसे
खत्म करने का काम नहीं कर रही है. @Nayak 1
The central government rejected the demand for
increasing the MSP of Kharif
Farmers are selling at a loss of Rs 7,800 on the existing MSP of
Kisan Kendra
Photograph taken from Google
Among the three disputed agricultural laws brought
by the Modi government, procurement of paddy, sorghum, millet and tur and other
kharif crops is going on at present. On the one hand, while the central
government is claiming to buy more paddy than last year, on the other hand
farmers and agricultural workers say that only paddy is being procured from
rabi crops and that too only in Punjab and Haryana. Government figures also
confirm these claims. Of the total paddy purchased by the central government
this year, about 90 percent has been purchased from Punjab and
Haryana.
Due to lack of government procurement and
consequently low market prices, farmers have to sell their produce at a price
below the Minimum Support Price (MSP). This situation becomes more worrisome
when we compare the MSP declared by the Center and the production cost of
different states, which shows that the MSP of the Government of India is less
than the production cost of many states. Due to this, several states, including
BJP Shamit, wrote a letter to the central government declaring the MSP
announced for the kharif crops of the year 2020 as inadequate and
demanded to declare it according to the state-wise production cost.
According to The Wire, Jharkhand, Rajasthan,
Maharashtra, Karnataka, Bihar, Andhra Pradesh and Odisha have decided kharif
crops (paddy, jowar, bajra, ragi, maize, tur, moong, urad, groundnut,
sunflower, soybean as decided by the central government , Cotton) did not agree
on the MSP and demanded a change in it. These states, in their letter to the
Ministry of Agriculture and Farmers Welfare, had demanded to set MSP based on
their production cost. But, the central government turned down all these
demands. Whereas, the documents show that there is a difference of up to Rs 7,800 per quintal in the MSP
proposed by the states and declared by the Center. This means that according to
the MSP assessment of the state government, there will be a loss of Rs 7,800 if a farmer sells one
quintal of his produce on the existing MSP of the Center.
Jharkhand
The Jharkhand government, led by Chief Minister
Hemant Soren, in its letter to the Center had said that there is a need to
increase the MSP to help the farmers returned to the state due to the Corona
epidemic, so that their problems can be resolved. In a letter written by State
Agriculture Secretary Abubakar Siddiqui to Additional Secretary Dolly
Chakraborty in the Union Ministry of Agriculture, the difference between the
MSP announced by the Government of India and proposed by the State Government
is described. Accordingly, the Jharkhand government had demanded a MSP of paddy
to be fixed at Rs 2,784 per quintal. Whereas, the Government of India has
fixed the MSP of paddy for this season at Rs 1,868 per quintal. Thus, the
MSP of paddy declared by the Center is Rs 916 less than the MSP
proposed by Jharkhand. Whereas, Jharkhand accounts for 3.3 percent of the total
paddy production in the country.
Rajasthan
The Rajasthan government had written a letter to
the Union Ministry of Agriculture, saying that since the cost of crops is
higher than other states due to desert area in most part of the state and
adverse rainy conditions, the MSP of rabi crops should be increased. State
Chief Secretary DB Gupta, in his letter dated May 6, 2020, demanded raising the
minimum support prices of millet, maize, soybean and moong. According to the
letter, the Rajasthan government had demanded to raise the MSP of millet to Rs 2,210 per quintal, while the
Center has fixed its MSP at Rs 2,150 per quintal. Similarly, the state had asked to fix
the MSP of maize at Rs 3,200 per quintal. But the Indian government has declared
its MSP of Rs 1,850 per quintal, which is
Rs 1,350 less than the state's
proposal.
Bihar
The BJP-backed Nitish government of Bihar also did
not agree on the MSP set by the Center and sought to increase it. State
Agriculture Secretary Dr. N. Saravana Kumar in his letter sent on 22 May 2020 had said that keeping
in view the cost of production of the state, the MSP of paddy should be fixed
at Rs 2,532 per
quintal and that of maize at Rs 2,526 per quintal. However, the Center has fixed MSP of
paddy at Rs 1,868 and
maize MSP at Rs 1,850 per
quintal, which is much lower than the Bihar government's proposal.
Andra Pradesh
The Andhra Pradesh government, like other states,
had sought to increase the M SP of kharif crops keeping in view the increased
production cost. The state had asked to decide M SP based on C2 cost, not on the basis
of A2 $ FL
cost. State Agriculture Commissioner H. Arun Kumar said in his letter in May 2020, that the cost of
production has increased because wages, other costs have increased, so
agriculture has become less profitable than other sectors and for agricultural
operations. The availability of workers has decreased. Apart from this, the
total agricultural income also decreases due to natural disasters. In this way,
the state recommended M SP based on the C2 $ 50 formula. However, the
Center has fixed the M SP based on the (A2 $ FL) $ 50 formula, which is much
lower than the C2
cost.
Along with this, the situation in Odisha and other
states is similar. Even after this, the central government is rejecting their
demands. This means that the intention of the Central Government towards
farmers is not right. This is the reason why the government is not working to
abolish the Agriculture Ordinance Act even after its strong opposition. @Nayak 1
Thank You Google