कोरोना के चलते स्वास्थ्य पर अत्याधिक खर्च
लॉकडाउन से गरीबी बढ़ने की आशंका : संसदीय समिति
कोरोना महामारी के चलते जहाँ स्वास्थ्य सेवाओं पर
अधिक खर्च बढ़ गया तो है वहीं दूसरी तरफ लॉकडाउन ने गरीबी के आंकड़ों इजाफा कर दिया
है. इसके बाद भी संसदीय समिति ने गरीबी और बढ़ने की आशंका जाहिर कर चौंका दिया है.
जबकि, देश पहले से ही बेरोजगारी के चलते गरीबी और
भुखमरी का दंश झेल रहा है. लेकिन लॉकडाउन ने देश के करोड़ों गरीब और प्रवासी
मजदूरों को भयंकर भुखमरी में धकेल दिया है. अभी हाल ही में जारी कई रिपोर्टों में
दावा किया जा चुका है कि देश में गरीबी और भुखमरी तेज गति से बढ़ रही है. यही नहीं
आने वाले समय में भी गरीबी और भुखमरी तेज गति से बढ़ने वाली है. इसी बीच संसदीय
समिति ने गरीबी बढ़ने का संकेत देकर पिछली रिपोर्ट में किए दावों की पुष्टि कर दी
है. अब तक कई रिपोर्ट में किये गए दावों ने इस बात का साबित कर दिया है कि मौजूदा
सरकार ने देश को बेरोजगारी, गरीबी और भुखमरी के
दलदल में झोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.
गौरतलब है कि संसद की एक समिति ने कोरोना महामारी के
कारण स्वास्थ्य पर अप्रत्याशित खर्च के चलते कई परिवारों के गरीबी रेखा से नीचे
जाने की संभावनाओं को लेकर चिंता जाहिर की है. संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में
कहा है कि
लॉकडाउन के दौरान हॉस्पिटल के कई विभागों को बंद
करने के कारण स्वास्थ्य सुविधाएं काफी प्रभावित हुई हैं और इसका सबसे ज्यादा
खामियाजा महिलाओं को उठाना पड़ा है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर संसद की स्थायी समिति ने कोरोना
महामारी को लेकर सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और इससे विभिन्न क्षेत्रों में पड़े
प्रभावों का आकलन किया है और इस पर एक रिपोर्ट तैयार कर राज्यसभा चेयरमैन एम.
वैंकैया नायडू को सौंप दिया है.
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोविड-19 मामलों को ध्यान में रखते हुए अस्पतालों में बेड्स की संख्या
काफी अपर्याप्त थी. जब केस और बढ़ने लगे तो अस्पतालों में खाली बेड नहीं मिलने की
भयावह तस्वीर सामने आई और इसके चलते अस्पतालों से मरीजों को लौटाना एक सामान्य सी
बात हो गई. उन्होंने आगे कहा, ये समिति स्वास्थ्य
सेवा की खराब स्थिति को लेकर बहुत चिंतित है और इसलिए सरकार को सार्वजनिक
स्वास्थ्य में निवेश बढ़ाने और देश में स्वास्थ्य सेवाओं,
सुविधाओं के विकेंद्रीकरण के लिए उचित कदम उठाने की
सिफारिश करती है.
समिति ने ये भी कहा कि सरकारी अस्पतालों में ओपीडी
सेवाओं को बंद करने के कदम ने स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को एकदम निष्क्रिय कर दिया
और इसके चलते गैर-कोविड मरीजों विशेषकर महिलाओं एवं घातक बीमारी वाले मरीजों को
सबसे ज्यादा खामियाजा उठाना पड़ा. इसके साथ ही संसदीय समिति ने इलाज में भारी खर्च
पर भी चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि महामारी के चलते लोगों को स्वास्थ्य पर
अत्यधिक खर्च करना पड़ा है. इसके चलते कई परिवारों के गरीबी रेखा से नीचे जाने की
आशंका है.
समिति ने कहा कि कोरोना के इलाज में आने वाले खर्च
के लिए यदि एक उपयुक्त मॉडल तैयार किया जाता तो इससे कई
लोगों की जान बचाई जा सकती थी. उन्होंने कहा कि
सरकार ने पीपीपी मॉडल के तहत निजी अस्पतालों के साथ बेहतर साझेदारी की रणनीति
बनानी चाहिए थी. संसदीय समिति ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को लगातार ये कोशिश करते
रहना चाहिए कि कोरोना के चलते लोगों का अत्यधिक खर्च न हो. उन्होंने कहा कि खराब
कॉन्ट्रैक्ट ट्रेसिंग और शुरुआत में धीमी गति से जांच के चलते संक्रमण के मामलों
में काफी बढ़ोतरी हुई. यह सरकारी संस्थाओं की
विफलता को दर्शाता है.
समिति ने कहा कि भारत सरकार को अपनी संस्था नेशनल
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल-इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलांस प्रोग्राम
(एनसीडीसी-आईडीएसपी) का अच्छे ढंग से इस्तेमाल करना चाहिए था, ताकि संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता. संसदीय समिति ने कहा कि
वो इस बात को लेकर चिंतित है कि कम विश्वसनीय टेस्ट किए जा रहे हैं, जिसके चलते जांच रिपोर्ट गलत/निगेटिव आने के संभावना काफी अधिक
है. उन्होंने कहा कि सरकार को रैपिड एंटीजन, आरटी-पीसीआर और अन्य
टेस्ट की सत्यता का पता लगाना चाहिए, ताकि देश में
टेस्टिंग की वास्तविक तस्वीर सामने आ सके.
समिति ने कहा कि ऐसे टेस्ट की संख्या बढ़ाई जानी
चाहिए जो ज्यादा से ज्यादा संख्या में सही परिणाम देते हों. इसके साथ ही समिति ने
ये भी नोट किया कि टेस्टिंग की सुविधा सिर्फ बड़े जिलों एवं शहरों में ही है, ग्रामीण क्षेत्रों में ये व्यवस्था नहीं होने से बड़ी संख्या में
मामले सामने नहीं आ रहे हैं. समिति ने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग में संलग्न सामाजिक
स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) के साथ दुर्व्यवहार के मामलों पर नाराजगी व्यक्त की
है और कहा कि यह ध्यान दें कि सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को मजदूरी से
वंचित किया गया था, जबकि इस महामारी में वे जमीन पर डटे हुए थे.
रिपोर्ट में कहा गया है कि उचित प्रशिक्षण, प्रोत्साहन और सहायता के बिना बड़े कार्य को पूरा करने के लिए
सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से अपेक्षा करना बहुत अधिक है. संसदीय समिति ने
लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के खिलाफ बढ़ते मामले खासकर घरेलू हिंसा पर भी संज्ञान
लिया है. उन्होंने कहा कि महामारी ने महिलाओं पर न केवल सामाजिक और मानसिक रूप से
प्रतिकूल प्रभाव डाला है, बल्कि स्वास्थ्य
सेवाओं और विशेष रूप से यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बाधित की है.
उन्होंने कहा, समिति सरकार को ऐसी महिलाओं की पहचान करने
की सिफारिश करती है, जो महामारी के दौरान
यौन और घरेलू हिंसा की शिकार हुई हैं और सरकार उनका पुनर्वास करे. मंत्रालय
महिलाओं के लिए विशिष्ट हॉटलाइन, टेलीमेडिसिन सेवाएं, रेप क्राइसिस सेंटर बनाए.
समिति ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान मानसिक स्वास्थ्य
के मामलों में काफी वृद्धि हुई है. उन्होंने कहा कि रोजगार संकट और सामाजिक अलगाव
ने आम जनता के बीच मनोवैज्ञानिक दबाव को बढ़ा दिया है. उन्होंने कहा, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि दोस्तों या परिवार के
साथ संपर्क में रहने तनाव से मुकाबला करने में मदद मिलती है, लेकिन लॉकडाउन के दौरान अकेले रहने के कारण डिप्रेशन के मामलों
में काफी बढ़ोतरी हुई है.
इसके अलावा संसदीय समिति ने स्कूल बंद होने के कारण
बच्चों को घरों में ही सिमटे रहने को लेकर चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि देश
में डिजिटल असमानता के कारण लाखों गरीब बच्चों का भविष्य अधर में लटका हुआ है.
संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि सरकार डिजिटल एवं ऑनलाइन क्लास के नेटवर्क को और
मजबूत करे तथा स्थिति सामान्य होने पर आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के बच्चों के लिए
अतिरिक्त क्लास लगाए जाने चाहिए.
केन्द्र सरकार की घोर लापरवाही : समय पर
नहीं हुई कोरोना मरीजों की निगरानी
कोरोना वायरस को लेकर भले ही केन्द्र सरकार वाहवाही
लूट रही हो. लेकिन हकीकत किसी इसके उलट है जो किसी ने नहीं छुपी है कि केन्द्र
सरकार ने घातक महामारी को गंभीरता ने नहीं लिया है. अगर केन्द्र सरकार महामारी को
गंभीरता से ली होती तो आज ने तो देश की इकानॉमी चौपट होती और न ही ज्यादा संख्या
में लोग मरते, बल्कि देश की इकानॉमी और होने वाली मौतों
को कुछ हद तक रोका जा सकता था. खुद संसदीय समिति का मानना है कि इस वायरस से
संक्रमित मरीजों की निगरानी समय पर नहीं हुई. कोरोना की जांच ने समय रहते गति नहीं
पकड़ी, इसके कारण संक्रमण का प्रभाव शहर से
ग्रामीण क्षेत्रों की ओर बढ़ने लगा. इसका मतलब साफ ही कि केन्द्र सरकर की ओर
से घोर लापरवाही की गई है.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पर संसद की स्थायी
समिति ने उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा, देश में कोरोना के मामलों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. नए मरीज
मिलने के बाद उसके संपर्क में आने वालों की समय रहते निगरानी नहीं की गई, जिसके कारण और भी संक्रमित मरीज सरकार की पहुंच के बाहर रहे.
एंटीजन जांच पर सरकार ने जोर दिया, जबकि यह जांच कम
विश्वसनीय है.
समिति ने सरकार से अपील की है कि आरटी-पीसीआर जांच
को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दिया जाए ताकि सही तस्वीर सामने आ सके. समिति ने रैपिड
एंटीजन जांच की सत्यता का मूल्यांकन करने की मांग भी की है. लॉकडाउन के दौरान आपात
वस्तुओं की आपूर्ति, लालफीताशाही, जांच कम और घरेलू उत्पादन में देरी इत्यादि की वजह से काफी
गंभीर परिणाम भी देखने को मिले हैं. समिति ने मंत्रालय से कहा है कि वो एक नोट पेश
करे कि महामारी के शुरुआती दिनों में दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में मरीजों के
लिए इतने कम बिस्तर क्यों आरक्षित किए गए? @Nayak 1
Excess health
expenditure due to corona
Poverty threatens
from lockdown: Parliamentary committee
Photograph taken
from Google
Significantly, a
committee of Parliament has expressed concern about the possibility of many families
going below the poverty line due to unexpected spending on health due to Corona
epidemic. The parliamentary committee said in its report that
During the lockdown,
health facilities have been affected due to the closure of many hospital
departments and women have had to bear the maximum brunt of this. According to
the report of Indian Express, Parliament's Standing Committee on Health and
Family Welfare has assessed the steps taken by the government regarding the
corona epidemic and its effects in various areas and prepared a report on this
by Rajya Sabha Chairman M. Venkaiah Naidu Is handed over to
The committee said
in its report that keeping in mind the Kovid-19 cases, the number of beds in hospitals was insufficient. When the cases
started escalating, the dreaded picture of not getting empty beds in hospitals
came out and due to this, returning patients from hospitals became a normal
thing. He further said, this committee is very concerned about the poor state
of healthcare and hence the government needs to increase investment in public
health and health services in the country,
Recommends taking
appropriate steps for decentralization of facilities.
The committee also
said that the move to shut down OPD services in government hospitals made the
healthcare system completely dysfunctional and due to this non-covid patients
especially women and patients with fatal disease had to suffer the most. Along
with this, the Parliamentary Committee has also expressed concern over the huge
expenditure in treatment. He said that due to the epidemic people had to spend
heavily on health. Due to this many families are expected to go below the
poverty line.
The committee said
that if a suitable model was prepared for the cost of treatment of corona, it
would lead to many
People's life could
be saved. He said that the government should have devised a strategy of better
partnership with private hospitals under PPP model. The parliamentary committee
suggested that the ministry should keep trying to ensure that people do not
spend too much due to Corona. He said that due to poor contract tracing and
slow investigation at the beginning, the cases of infection increased
significantly. This governmental organization
Indicates failure.
The committee said
that the Government of India should have used its organization National Center
for Disease Control-Integrated Disease Surveillance Program (NCDC-IDSP) well,
so that the infection could be prevented from spreading. The parliamentary
committee said that it is concerned that less reliable tests are being done,
due to which the possibility of the investigation report being false / negative
is quite high. He said that the government should find out the veracity of
rapid antigen, RT-PCR and other tests, so that the real picture of testing in
the country can be revealed.
The committee said
that the number of such tests should be increased which gives the correct
result in maximum number. Along with this, the committee also noted that the
facility of testing is only in big districts and cities, due to lack of this
system in rural areas, a large number of cases are not coming up. The committee
has expressed displeasure over cases of misconduct with social health workers
(ASHAs) engaged in contact tracing and noted that community health workers were
denied wages while in the epidemic they were on the ground .
The report states
that it is too much to expect from community health workers to complete major
tasks without proper training, encouragement and assistance. The Parliamentary
Committee has also taken cognizance of the increasing cases against women,
especially domestic violence, during the lockdown. She said that the epidemic
has not only adversely affected social and mental health of women, but also
hampered access to health services and especially sexual and reproductive
health services. He said, the committee recommends the government to identify
women who have been victims of sexual and domestic violence during the epidemic
and the government should rehabilitate them. The Ministry should set up special
hotlines, telemedicine services, rape crisis centers for women.
The committee said
that there has been a significant increase in mental health cases during the
lockdown. He said that the employment crisis and social isolation has increased
the psychological pressure among the general public. "There is no denying
the fact that being in touch with friends or family helps in coping with
stress, but being alone during lockdown has led to a significant increase in
depression cases," he said.
Apart from this, the
Parliamentary Committee has expressed concern about the children being confined
in their homes due to the closure of the school. He said that due to digital
inequality in the country, the future of millions of poor children hangs in the
balance. The parliamentary committee has recommended that the government should
further strengthen the network of digital and online classes and in case of
normalcy, additional classes should be introduced for children belonging to
economically backward classes.
Central government's
gross negligence: Corona patients not monitored in time
Even if the central
government is robbing bravado over the corona virus. But the reality is
contrary to what no one has hidden that the Central Government has not taken
the fatal epidemic seriously. If the central government had taken the epidemic
seriously, then today the economy of the country would have been destroyed and
not a large number of people would have died, but the country's economy and
deaths could have been prevented to some extent. The parliamentary committee
itself believes that patients infected with this virus were not monitored in
time. Corona's investigation did not gain momentum in time, due to which the
effect of infection started moving from the city to the rural areas. This means
that gross negligence has been done on behalf of the center government.
Parliament's
Standing Committee on Health and Family Welfare said in its report submitted to
Vice President M Venkaiah Naidu, "Corona cases in the country have
increased exponentially." After getting a new patient, those who came in
contact with him were not monitored in time, due to which more infected
patients remained out of the reach of the government. The government insisted
on antigen testing, while this investigation is less reliable.
The committee has
appealed to the government that the RT-PCR investigation should be encouraged
as much as possible so that the correct picture can be revealed. The committee
has also sought to evaluate the veracity of rapid antigen testing. During the
lockdown, very serious results have also been seen due to the supply of
emergency goods, red tape, less investigation and delay in domestic production
etc. The committee has asked the ministry to present a note as to why so few
beds were reserved for patients in Delhi's government hospitals in the early
days of the epidemic. @Nayak 1
Thank you Google