भारत ने बंद की गरीबों की गिनती
असंभव हुआ 2030 तक गरीबी से मुक्ति का लक्ष्य
वैश्विक गरीबी को लेकर विश्व बैंक की द्विवार्षिक रिपोर्ट ‘‘रिवर्सल ऑफ फॉर्च्यून“ 7 अक्टूबर, 2020 को जारी की गई. इसके निष्कर्ष प्रत्याशित और चौंकाने वाले हैं. इसमें कहा गया है कि दो दशकों में पहली बार, वैश्विक गरीबी दर बढ़ेगी, जिसकी वजह कोविड-19 महामारी होगी. रिपोर्ट में बार-बार सावधानी बरतने की बात लिखी गई है. लेकिन विश्व बैंक सही मायने में पूरी दुनिया में वास्तविक गरीबी की स्थिति का पता इसलिए नहीं लगा सकते, क्योंकि भारत के पास गरीबी के नवीनतम आंकड़े नहीं है. सरल शब्दों में कहें तो भारत ने अपने यहां गरीबों की गिनती करनी बंद कर दी है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के ताजा आंकड़ें न होने के कारण वैश्विक गरीबी की निगरानी नहीं कि जा सकती. भारत का नाम नाइजीरिया के साथ दुनिया में गरीबों की सबसे बड़ी संख्या वाले देश के तौर पर माना जाता है. 2012-13 के अंतिम राष्ट्रीय सर्वेक्षण में गरीबों की निरपेक्ष संख्या के मामले में भारत वैश्विक सूची में सबसे ऊपर है. वहीं, 2017 के आंकड़ों के मुताबिक कुल 68.9 करोड़ गरीबों में से भारत में 13.9 करोड़ गरीब थे. इस प्रकार, यह लाजिमी है कि यदि विश्व को 2030 तक अपने संयुक्त राष्ट्र के अनिवार्य सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी)-1 को गरीबी उन्मूलन के लिए पूरा करना है, तो भारत को यह लक्ष्य सबसे पहले हासिल करना होगा.
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ, 75 वें दौर) को भारत का साल 2017-18 का घरेलू उपभोग-व्यय सर्वेक्षण डेटा जारी करना था. उपभोग-व्यय आंकड़ों से ही पता चलता है कि भारत में आय का स्तर कितना बढ़ा है. लेकिन केंद्र सरकार ने ‘गुणवत्ता’ का हवाला देते हुए यह डेटा जारी नहीं किया. अप्रकाशित डेटा, हालांकि, कुछ अखबारों में जारी किया गया था जो गरीबी के स्तर में वृद्धि का संकेत देते थे. यह एनएसओ के घरेलू-उपभोग व्यय सर्वेक्षण (68वें दौर) पर आधारित था. एनएसओ एक नोडल एजेंसी और वही ऐसे सर्वेक्षण को संचालित करती है. भारत में गरीबी का नवीनतम आंकड़ा नहीं है. 2011-12 में किए गए एक सर्वेक्षण या लगभग एक दशक पुराना आंकड़ा ही अभी तक उपलब्ध है.
भारत में गरीबी के आंकड़ों की अनुपस्थिति का अर्थ है कि आप वैश्विक गरीबी स्तर में की गई कमी की प्रगति का कोई उद्देश्य और अद्यतन अनुमान नहीं लगा सकते हैं. विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि एनएसओ द्वारा सर्वेक्षण के 75वें दौर को स्क्रैप करने का निर्णय भारत, दक्षिण एशिया और दुनिया में गरीबी को समझने में एक महत्वपूर्ण अंतर छोड़ देता है. यदि दक्षिण एशियाई क्षेत्र का उदाहरण लें तो यह पता चलता है कि भारत में गरीबी के आंकड़ों की अनुपस्थिति का समग्र तौर पर गरीबी आकलन पर क्या प्रभाव पड़ेगा.
विश्व बैंक के जरिए लगाए गए गरीबी के
नवीनतम अनुमान में, कोविड-19 के कारण गरीब देशों की सूची में दक्षिण एशियाई क्षेत्र के आधे देश शामिल हैं. लेकिन जनसंख्या के लिहाज से, यह क्षेत्र की कुल आबादी का केवल 21.8 प्रतिशत विश्लेषण कर सकता है. इसका कारण यह है कि इसमें भारत की जनसंख्या को बाहर करना पड़ा क्योंकि भारत का गरीबी पर नवीनतम तुलनात्मक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. वहीं, 2017 के बाद से कोई वैश्विक गरीबी अनुमान नहीं बताया गया है. दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए, 2014 के बाद से कोई समेकित गरीबी रिपोर्ट नहीं आई है. दुनिया के अन्य सभी क्षेत्रों में 2018 तक का ही गरीबी का अनुमान है. अपनी नवीनतम रिपोर्ट के लिए, विश्व बैंक ने संकेत दिया कि कोविड-19 के कारण नए गरीबों का अनुमान वास्तविक तस्वीर को प्रतिबिंबित नहीं कर सकता है. दरअसल गरीबों की नई तस्वीर एक महत्वपूर्ण चेतावनी के साथ उभरती है जिसमें वैश्विक गरीबों के एक बड़े समूह को याद किया जा रहा है. यह बड़ा समूह कहीं और नहीं बल्कि भारत में ही बसता है.
विश्व बैंक ने नवीनतम रिपोर्ट में एक विस्तृत नोट दिया है कि विभिन्न संगठन और अर्थशास्त्री किस तरह से भारत के नवीनतम गरीबी के आंकड़ों का अनुमान लगाने के लिए वैकल्पिक तरीके ईजाद कर रहे हैं. भारत के पास नवीनतम गरीबी आंकड़े नहीं होने के कारण ही यह विश्व बैंक की उन शब्दावलियों में शामिल हो गया है जिसमें ज्यादातर अफ्रीका और पश्चिम एशिया के देश रहते हैं.
नवीनतम गरीबी के आंकड़ों के न होने की वजह से विश्व बैंक ने भारत को संघर्ष-प्रभावित और नाजुक कहे जाने वाले देशों की श्रेणी में शामिल किया है.बता दें कि विश्व बैंक की नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है किसी भी तरह का प्रक्षेपण (सामान्य परिस्थितियों में 2030 में गरीबी का स्तर) एक लंबे समय का क्षितिज काफी अनिश्चितता के अधीन है, भारत पर हाल के आंकड़ों की कमी और गरीबी के खिलाफ कोविड-19 महामारी के विकसित प्रभावों से जटिल है. यह इस तथ्य पर लगभग संकेत देता है कि हम एसडीजी-1 को पूरा करने के लिए गरीबी के स्तर को ठीक से नहीं जानते हैं. @Nayak 1
India stopped counting the poor
The goal of freedom from poverty by 2030 is
impossible
Photograph taken from Google
The World Bank's biennial report "Reversal of
Fortune" on global poverty was released on October 7, 2020. Its
conclusions are anticipated and shocking. It says that for the first time in
two decades, the global poverty rate will increase, due to the Kovid-19
epidemic. The matter of caution has been written repeatedly in the report. But
the World Bank cannot truly find out the state of real poverty in the whole
world, because India does not have the latest figures of poverty. In simple
words, India has stopped counting the poor here.
The report says that global poverty cannot be
monitored due to lack of latest data from India. India is considered as the
country with the largest number of poor in the world along with Nigeria. India
has topped the global list in terms of absolute number of poor in the last
national survey of 2012-13. At the same time, according to 2017 figures, out of
the total 68.9 crore poor in India, 13.9 crore were poor. Thus, it is
imperative that if the world is to meet its United Nations Compulsory
Sustainable Development Goal (SDG) -1 for poverty alleviation by 2030, India
will have to achieve this goal first.
The National Statistics Office (NSO, 75th round)
was to release India's Household Consumption-Expenditure Survey data for the
year 2017-18. The consumption-expenditure data itself shows how much the income
level has increased in India. But the central government did not release this
data citing 'quality'. Unpublished data, however, was released in some
newspapers indicating an increase in poverty levels. This was based on the
NSO's Household-Consumption Expenditure Survey (68th round). The NSO is a nodal
agency and conducts the same survey. The latest figures of poverty in India are
not. A survey conducted in 2011-12 or almost a decade old is still available.
The absence of poverty data in India means that you
cannot make any objective and up-to-date estimates of the progress made in the
global poverty level. A recent World Bank report says that the NSO's decision
to scrap the 75th round of the survey leaves a significant gap in understanding
poverty in India, South Asia and the world. If we take the example of South
Asian region, then it is known that the absence of poverty data in India will
have an impact on poverty estimation as a whole.
Of poverty imposed through the World Bank
In the latest estimate, half the countries in the
South Asian region are included in the list of poor countries due to Kovid-19.
But in terms of population, it can analyze only 21.8 percent of the total
population of the region. The reason for this is that it had to exclude the
population of India because the latest comparative data on poverty of India is
not available. At the same time, no global poverty estimates have been reported
since 2017. For the South Asian region, there has been no consolidated poverty
report since 2014. Poverty estimates in all other regions of the world till
2018. For its latest report, the World Bank indicated that estimates of the new
poor due to Kovid-19 may not reflect the real picture. Actually, the new
picture of the poor emerges with an important warning in which a large group of
global poor is being remembered. This large group does not live anywhere else
but in India.
The World Bank has given a detailed note in the
latest report on how various organizations and economists are devising
alternative methods to estimate India's latest poverty figures. Due to India
not having the latest poverty figures, it has been included in the glossaries
of the World Bank in which most countries of Africa and West Asia live.
Due to the absence of the latest poverty data, the
World Bank has included India in the category of countries called
conflict-affected and fragile. Poverty levels in 2030 under circumstances) are
subject to considerable uncertainty over a long time horizon, compounded by the
lack of recent data on India and the evolving effects of the Kovid-19 epidemic
against poverty. This almost hints at the fact that we do not know the level of
poverty properly to meet SDG-1. @Nayak 1
Thank you Google