न्याय के लिए ठोकर खाती रेप पीड़ित अनुसूचित जाति की लड़कियां और महिलाएं
खौफ में महिलाएं : हर दिन 10 अनुसूचित जाति की महिलाओं के साथ रेप
गूगल से ली गई छायाचित्र
पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खींचने
वाला हाथरस का केस हो या राजस्थान में अजमेर को बंधक बनाकर 8 घंटे तक महिला के साथ गैंगरेप, दोनों ही पीड़िताएं एससी समुदाय से थीं.
हालांकि दोनों मामलों की जांच जारी है, न्याय और तथ्यों की बातें कोर्ट में
होंगी. लेकिन इस पर अभी तक जो टीका-टिप्पणी हुई है वो ये समझने के लिए काफी है कि
जब किसी अनुसूचित जाति की पीड़िता के साथ ऐसी घटना होती है तब पुलिस, मीडिया और सियासत सभी का रुख अलग ही
देखने को मिलता है.
जिस समय देश में हाथरस मामले को लेकर
लोग सड़कों पर उतरे थे, पीड़िता के
लिए न्याय की मांग रहे थे उसी समय देश के अलग-अलग हिस्सों में रेप और गैंगरेप की
कई और वारदातें हुई. ये घटनाएं हाथरस की तरह चर्चा में तो नहीं आ पायीं, लेकिन इनके साथ हुई दरिंदगी के लिए ये
पीड़िताएं भी न्याय चाहती हैं. राजस्थान के अजमेर में एक अनुसूचित जाति की महिला को
आठ घंटे तक बंधक बनाकर तीन आरोपियों ने गैंगरेप किया. इसी राज्य के बाड़मेर जिले
में छह अक्टूबर को एक 15 साल की
बच्ची को दो लड़कों ने अगवा कर उसके साथ गैंगरेप किया. वहीं मध्यप्रदेश के खरगोन
जिले में एक 15 साल की
बच्ची के साथ तीन आरोपियों ने गैंगरेप किया. झारखंड के रांची में एक 60 साल के मकान मालिक ने चार साल की बच्ची
के साथ दुष्कर्म किया. ये घटनाएं नेशनल मीडिया में जगह नहीं बना पायीं.
सबसे बड़ा सवाल है क्या इन पीड़िताओं को
न्याय मिलेगा? इन मामलों
की तह तक न तो मीडिया गया और न ही राजनैतिक पार्टियों के नेता. किसी अनुसूचित जाति
की पीड़िता के साथ रेप और गैंगरेप की घटना के बाद न्याय मिलना कितना चुनौतीपूर्ण है
ये अभी हाल ही में घटी हाथरस की घटना से ही समझता जा सकता है. हाथरस जिले के
बूलगढ़ी गाँव में एक 19 वर्षीय
अनुसूचित जाति की पीड़िता के साथ 14 सितंबर को
सर्वण जाति के लोग गैंगरेप करते हैं. पीड़िता घटना वाले दिन ही कहती है कि मुख्य
आरोपी संदीप ने उसके साथ जबरजस्ती की, इसके बावजूद पुलिस आठ दिन बाद केस दर्ज
करती है और बाद में आरोपियों की गिरफ़्तारी होती है. पीड़िता की 29 सितंबर को इलाज के दौरान दिल्ली में
मौत हो जाती है, प्रशासन परिवार
की मर्जी के बिना दाह-संस्कार कर देता है. सरकारी दिशा-निर्देशों के अनुसार घटना
के 96 घंटे तक
केवल फॉरेंसिक सबूत पाए जा सकते हैं. जबकि इस केस में घटना के 11 दिन बाद नमूने इकट्ठा किये गये. ये उस
मामले की स्थिति है जिसे पीड़िता की मौत से लेकर अभी तक राष्ट्रीय मीडिया में
लगातार कवरेज मिल रही है. बाकी रेप के मामलों की जांच किस तरह आगे बढ़ती होगी हाथरस
की घटना से समझा जा सकता है.
देश में एससी समुदाय के साथ काम करने
वाले एक संगठन ‘दलित वुमेन फाईट’ का कहना है कि हम आज भी कितना भी आगे बढ़ने की बात
कर लें पर इस सच को नकारा नहीं जा सकता कि समाज में एससी समुदाय अभी भी जाति का
दंश झेल रहा है. एक एससी वर्ग की पीड़िता के साथ रेप की घटना को उच्च जाति और
प्रशासन कभी गम्भीरता से नहीं लेता. पुलिस महकमा ऐसे मामलों में तब तक त्वरित
कार्रवाई नहीं करता जब तक उसमें सियासत न हो और लोग सड़कों पर उतरकर हाथरस मामले की
तरह एकजुट होकर आवाज न बुलंद करें. एक तो इस समुदाय के साथ होने वाली घटनाएं जल्दी
थाने तक पहुंचती नहीं, अगर किसी
तरह पहुंच गईं तो पुलिस एफआईआर लिखने, मेडिकल कराने और बयान दर्ज करने में ही
इतना वक़्त लगा देती है जिससे आरोपियों को सुबूत मिटाने का पूरा मौका मिल जाता है.
ज्यादातर मामलों में प्रशासन का यही रवैया रहता है कि पैसे लेने के लिए पीड़िता
झूठा आरोप लगा रही है. कभी लड़की का चरित्र खराब तो कभी ऑनर किलिंग का मामला बताकर
पुलिस अपना पल्ला झाड़ लेती है.
अनुसूचित जाति की महिलाओं के साथ रेप
देश में हर मामला निर्भया, कठुआ, हाथरस की तरह तूल पकड़ेगा ऐसा बिलकुल
जरूरी नहीं है. जिस दिन हाथरस रेप पीड़िता ने दम थोड़ा था उसी दिन राष्ट्रीय अपराध
रिकॉर्ड ब्यूरो ने साल 2019 का आंकड़ा
जारी किया. एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2019 में औरतों के साथ होने वाली हिंसा में 7.3 फीसदी का इजाफा हुआ है और अनुसूचित
जाति के साथ होने वाली हिंसा में भी इतनी ही बढ़त है. अभी हाल में राष्ट्रीय अपराध
रिकॉर्ड ब्यूरो-2019 (एनसीआरबी)
के जारी आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग 3500 अनुसूचित जाति की महिलाओं के साथ
बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराई गई है. यानि हर रोज 10 महिलाओं या लड़कियों के साथ रेप या
गैंगरेप जैसी घटना होती है. ये वो मामले हैं जो रिपोर्ट हुए हैं, जो मामले पुलिस तक पहुंच नहीं पाए उनका
कोई लेखा-जोखा नहीं है. इनमें से एक तिहाई मामले उत्तर प्रदेश और राजस्थान से हैं.
इन मामलों
में पुलिस का रवैया
अक्सर अखबारों में, टीवी और सोशल मीडिया पर अनुसूचित जाति
की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार, गैंगरेप
कर जिंदा जलाया, रेप कर
पेड़ पर जिंदा लटकाना जैसी खबरों देखने को मिलती हैं. मध्यप्रदेश के देवास जिले में
रहने वालीं क्रान्ति पिछले 17 वर्षों से
एक गैर सरकारी संगठन ‘जन साहस’ में अनुसूचित जाति की महिलाओं के साथ यूपी, एमपी, राजस्थान, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में काम करती
हैं. पेशे से सामाजिक कार्यकर्ता और वकील क्रांति कहती हैं कि एससी समुदाय
की अगर कोई लड़की या महिला हिम्मत करके थाने एफआईआर दर्ज करवाने पहुंच जाए तो पुलिस
ज्यादातर पीड़िता से यही कहती है कि मुआवजा राशि मिलती है, तभी कपड़े फड़वाकर आ गयी हो. पुलिस इनकी
एफआईआर दर्ज करने में चार-पांच घंटे से लेकर चार-पांच महीने लगा देती है. पहली बात
तो यही कि इनकी बहुत आसानी से एफआईआर दर्ज होती ही नहीं. अगर रेप की घटना है तो
छेड़छाड़ लिख देते हैं, गैंगरेप
है तो रेप ही लिख देते हैं. क्रांति मध्यप्रदेश के ही नरसिंहपुर जिले की एक घटना
का जिक्र करते हुए कहा हाथरस की घटना के दो तीन दिन बाद ही एक अनुसूचित जाति की
महिला के साथ रेप हुआ, पुलिस
उन्हें चार-पांच दिन से इस थाने से उस थाने भेज रही थी. थक-हारकर पीड़िता ने
आत्महत्या कर ली. अगर दुर्भाग्यवश इनके साथ कोई घटना घटित हो जाए तो क्या इन्हें
न्याय मिलना मुस्किल है. @Nayak 1
SC girls and women of rape victims
who stumble for justice
Women in awe: Rape with 10 scheduled
caste women every day
Photograph taken from Google
Whether the case of Hathras caught
the attention of the entire country or the hostage of Ajmer in Rajasthan with
the woman for 8 hours, both the victims were from the SC community. Although
the investigation of both the cases is going on, the matter of justice and
facts will be in the court. But the commentary that has been made so far is
enough to understand that when such an incident happens with the victim of a
scheduled caste, then the attitude of the police, media and politics is
different.
At the time when people took to the
streets in the country regarding the Hathras case, demanding justice for the
victim, at the same time there were many more cases of rape and gang rape in
different parts of the country. These incidents could not come in the
discussion like Hathras, but these victims also want justice for the cruelty
that happened to them. In Ajmer, Rajasthan, three women gang-raped a scheduled
caste woman for eight hours. On October 6, a 15-year-old girl was kidnapped and
raped by two boys in Barmer district of the same state. In the Khargone
district of Madhya Pradesh, a 15-year-old girl was gangraped by three accused.
A four-year-old girl was raped by a 60-year-old landlord in Ranchi, Jharkhand.
These incidents could not find a place in the national media.
The biggest question is will these
victims get justice? Neither the media nor the leaders of political parties
went to the bottom of these matters. How challenging it is to get justice after
the incident of rape and gangrape with a scheduled caste victim can be
understood only by the recent incident of Hathras. On September 14, a
19-year-old scheduled caste victim gangs up in Sarvana caste in Boolgarhi
village of Hathras district. The victim says on the day of the incident that
the main accused Sandeep coerced her, despite this, the police register the
case after eight days and later the arrest of the accused. The victim dies
during treatment on 29 September in Delhi, the administration cremates without
the will of the family. According to government guidelines, only forensic
evidence can be found up to 96 hours after the incident. Whereas in this case
samples were collected 11 days after the incident. This is the state of the
matter which has been getting continuous coverage in the national media since
the death of the victim. How the investigation of the remaining rape cases will
proceed can be understood by the incident of Hathras.
Dalit Women Fight, an organization
working with the SC community in the country, says that even today we should
talk about moving forward, but the truth cannot be denied that the SC community
still faces the brunt of caste. Used to be. Upper caste and administration
never take seriously the incident of rape with a SC class victim. The police
department does not take prompt action in such cases unless there is politics
in it and people should not come out on the streets and raise their voice in
unison like the Hathras case. One, the incidents with this community do not
reach the police station early, if somehow reached, the police takes so much
time to write an FIR, get medical and record the statement, which gives the
accused full opportunity to eradicate the evidence. In most cases, the
administration's attitude is that the victim is making false accusations to get
money. Sometimes the character of the girl is bad or sometimes the case of
honor killing, the police gets rid of it.
Rape with SC women
In the country, every matter will be
caught like Nirbhaya, Kathua, Hathras and it is not absolutely necessary. The
day the Hathras rape victim had some courage, the National Crime Records Bureau
released the data for the year 2019. According to NCRB data, there has been an
increase of 7.3 per cent in violence against women in 2019 and there is a
similar increase in violence with scheduled castes. According to the recently
released data of National Crime Records Bureau-2019 (NCRB), about 3500 SC women
have been reported raped in the country. That is, every day there is an
incident of rape or gang rape with 10 women or girls. These are the cases which
have been reported, the cases which did not reach the police have no
accountability. One-third of these cases are from Uttar Pradesh and Rajasthan.
Police attitude in these cases
Often in newspapers, on TV and social
media, there are reports of gang rape of a Scheduled Caste girl, gang-raped
alive, raped and hanging alive on a tree. Kranti, who lives in Dewas district
of Madhya Pradesh, works with Scheduled Caste women in UP, MP, Rajasthan,
Maharashtra and Chhattisgarh for the last 17 years in an NGO 'Jan Sahas'.
Kranti, a social activist and lawyer by profession, says that if a girl or a
woman from the SC community dares to go to the police station to file an FIR,
then the police mostly tells the victim that the compensation amount has come,
only when the clothes have been torn. The police takes four-five hours to
four-five months to register their FIR. The first thing is that their FIR is
not easily registered. If there is an incident of rape, then they write the
molestation, if there is gang rape, then they write the rape itself. Kranti,
referring to an incident in Narsinghpur district of Madhya Pradesh itself, said
that two days after the incident of Hathras, a Scheduled Caste woman was raped,
the police was sending them from this station to the police station for
four-five days. After exhausting, the victim committed suicide. Unfortunately,
if any incident happens to them, is it happy for them to get justice. @Nayak 1
Thank you google