मनरेगा का खस्ता हाल : काम मांगने के बावजूद 97 लाख परिवारों को नहीं मिला रोजगार
गूगल से ली गई छायाचित्र
कोरोना महामारी की वजह से उपजे बेरोजगारी के संकट के दौर में केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा के लिए एक लाख करोड़ से ज्यादा का बजट जारी किया. इसके बावजूद भी ग्रामीणों में रोजगार की मांग कहीं ज्यादा बनी हुई है. इस बात का अंदाजा इसी लगाया जा सकता है कि काम मांगने के बावजूद भी 97 लाख परिवारों को रोजगार नहीं मिल पाया है. दरअसल, शुरुआत में केंद्र सरकार ने भले ही मनरेगा के लिए बड़ा बजट दिया, मगर धीरे-धीरे इस पर से ध्यान हटा लिया. जबकि कुछ राज्यों में शुरुआत में बड़ी संख्या में ऐसे लोग रहे जिन्होंने मनरेगा में पहली बार काम किया. ऐसे संकट के समय में सरकार को मनरेगा पर और जोर देना चाहिए था, मगर ऐसा नहीं हुआ. चूंकि मनरेगा एक कानून है इसलिए इसे पहले जैसे हाल पर ही छोड़ दिया गया. अभी भी 100 दिन शेष हैं और फरवरी-मार्च में काम की और भी ज्यादा मांग मनरेगा में उठ सकती है. जरूरी है कि सरकार ग्रामीण स्तर पर रोजगार की भारी मांग को देखते हुए मनरेगा में बजट और बढ़ाए.
दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार की
गारंटी देने वाली योजना मनरेगा में अब तक का रिकॉर्ड बजट दिए जाने के बावजूद 97 लाख परिवारों को काम नहीं मिल सका. कोरोना महामारी से
उपजे बेरोजगारी के संकट के दौर में इन सभी परिवारों ने मनरेगा में रोजगार के लिए
काम की मांग की थी. इतना ही नहीं, इस साल
मनरेगा में रोजगार पाने को लेकर जॉब कार्ड के लिए आवेदन करने के बावजूद 45.6 लाख परिवारों के जॉब कार्ड नहीं बन सके, जबकि कुल 9.02 करोड़ जॉब कार्ड सक्रिय रहे. इसके बावजूद देश भर में नवंबर तक सिर्फ 19 लाख परिवार ही मनरेगा में मिलने वाले 100 दिनों का रोजगार पूरा कर सके हैं.
मालूम हो कि आँकड़ें वर्ष 2004 में मनरेगा योजना की सरकारी वेबसाइट की एमआईएस
रिपोर्ट को ट्रैक करने के लिए बनाए गए कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और जन संगठनों के सदस्यों का एक समूह पीपुल्स एक्शन फॉर
एम्प्लॉयमेंट गारंटी (पीएईजी) की हालिया रिपोर्ट में सामने आये हैं. यह रिपोर्ट अब
तक ग्रामीणों को मनरेगा में रोजगार मिलने को लेकर तस्वीर पेश करती है. मनरेगा यानी
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत देश के ग्रामीण
क्षेत्रों में लोगों को साल में 100 दिन रोजगार
देने की गारंटी दी जाती है. प्रत्येक लाभार्थी ग्रामीण परिवार को एक जॉब कार्ड
दिया जाता है, जिसमें घर के सभी व्यस्क सदस्यों के नाम होते हैं जो
मनरेगा में काम कर सकते हैं. पीएइजी की रिपोर्ट में सामने आया कि देश के सबसे बड़े
राज्य उत्तर प्रदेश में करीब 25 लाख से
ज्यादा ग्रामीणों ने मनरेगा में रोजगार के लिए आवेदन किया, मगर उन्हें एक भी दिन का रोजगार नहीं मिल सका। यह
आंकड़ा ओडिशा में 6.85 लाख, बिहार में 8.32 लाख और मध्य प्रदेश में 8.92 लाख रहा। नवंबर तक देश भर में 97 लाख से ज्यादा ऐसे ग्रामीण परिवार रहे, जिन्हें मनरेगा में रोजगार की मांग करने के बावजूद
काम नहीं मिल सका.
पीएइजी की रिपोर्ट के अनुसार 30 नवंबर तक 97.32 लाख परिवारों को काम मांगने के बावजूद रोजगार नहीं मिल सका. रिपोर्ट में यह
भी सामने आया कि नवंबर तक देश भर में सिर्फ 19 लाख परिवारों को ही 100 दिन का
रोजगार मिल सका है, जबकि पिछले वर्ष से तुलना करें तो 40.61 लाख परिवारों को 100 दिन का रोजगार मिल सका था. पीएइजी की इस रिपोर्ट से जुड़े और मनरेगा मजदूरों
के लिए लंबे समय से काम करते आ रहे देबमाल्या नंदी ने बताया कि आंकड़ें बताते हैं
कि वास्तव में मनरेगा में रोजगार को लेकर देश भर में कितनी भारी मांग रही है.
रोजगार की इतनी मांग के बावजूद 100 दिन का
रोजगार पूरे करने वाले सिर्फ 19 लाख परिवार रहे, जबकि काम की मांग को देखते हुए यह आंकड़ा अब तक पिछले
वर्ष के मुकाबले 40 लाख परिवारों से कहीं ज्यादा होना चाहिए था. ऐसा
इसलिए सामने आया क्योंकि मांग के बावजूद राज्य सरकारें मनरेगा की क्षमता को पूरी
तरह से पकड़ नहीं कर पाईं.
कई राज्यों में मनरेगा के लिए नहीं
है पर्याप्त बजट
केंद्र सरकार की ओर से इस साल
अप्रैल में मनरेगा के लिए कुल 1.05 लाख करोड़ का
बजट आवंटित किया गया. नरेगा ट्रैकर नाम से आई पीएइजी की इस रिपोर्ट में सामने आया
कि नवंबर तक 74,563 करोड़ यानी 71 फीसदी राशि अब तक खर्च की जा चुकी है, जबकि मजदूरी और सामग्री का लंबित भुगतान 9,590 करोड़ रुपए (9.1 फीसदी) बकाया है. ऐसे में कई राज्यों को आवंटित की
राशि खर्च हो चुकी है और अब इन राज्यों के भुगतान लंबित हैं. ऐसे में राज्यों के
पास मनरेगा के लिए बजट की कमी है. नरेगा ट्रैकर से जुड़े देबमाल्या नंदी बताया कि
अभी कई राज्यों के पास मनरेगा के लिए फण्ड की कमी है, यह भी एक बड़ा कारण रहा कि भारी मांग के बावजूद लोगों
को काम नहीं मिल सका है. शुरुआत में केंद्र सरकार ने भले ही मनरेगा के लिए बड़ा बजट
दिया, मगर धीरे-धीरे इस पर से ध्यान हट गया. नतीजा यह निकला
कि बजट के बाद भी लाखों लोगों को मनरेगा में काम नहीं मिल सका. @Nayak 1
MNREGA's crisp
condition: 97 lakh families did not get employment despite seeking work
Photograph taken from Google
During the crisis of unemployment caused by the
Corona epidemic, the central government released a budget of more than one lakh
crore for the Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act ie MNREGA.
Despite this, the demand for employment in the villagers remains much higher.
This can be gauged that despite demanding work, 97 lakh families have not been
able to get employment. In fact, initially the Central Government may have
given a big budget for MNREGA, but gradually it took care of it. While in some
states, initially there were a large number of people who worked in the MNREGA
for the first time. In such times of crisis, the government should have
insisted on MNREGA, but it did not happen. Since MGNREGA is a law, it was
abandoned as before. There are still 100 days left and even more demand for
work may arise in MNREGA in February-March. It is important that the government
increase the budget under MNREGA in view of the huge demand for employment at
the rural level.
Despite giving a record budget so far in
MNREGA, the world's largest employment guarantee scheme, 97 lakh families could
not get work. In the era of unemployment crisis arising out of Corona epidemic,
all these families demanded work for employment in MNREGA. Not only this,
despite applying for job cards for getting employment in MNREGA this year, job
cards of 45.6 lakh families could not be created, while a total of 9.02 crore
job cards were active. Despite this, only 19 lakh families across the country
have been able to complete 100 days of employment in MNREGA.
The figures are revealed in a recent report by
People's Action for Employment Guarantee (PAEG), a group of activists,
academics and members of public organizations created in 2004 to track the MIS
report of the MGNREGA scheme's official website. This report so far presents a
picture of the villagers getting employment in MNREGA. Under the MGNREGA,
Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act, people in rural areas
of the country are guaranteed 100 days of employment. Each beneficiary rural
family is given a job card, which contains the names of all adult members of
the household who can work in the MNREGA. The PAEG report revealed that in the
country's largest state Uttar Pradesh, more than 25 lakh villagers applied for
employment in MGNREGA, but could not get a single day's employment. This figure
was 6.85 lakh in Odisha, 8.32 lakh in Bihar and 8.92 lakh in Madhya Pradesh.
Till November, there were more than 97 lakh rural families across the country,
who could not get work despite seeking employment in MNREGA.
According to the PAEG report, as of November 30,
97.32 lakh families could not get employment despite seeking work. The report
also revealed that till November, only 19 lakh families across the country
could get 100 days of employment, while compared to the previous year, 40.61
lakh families could get 100 days of employment. Debamalya Nandi, who has been
working for the MNREGA laborers for a long time, related to this report of
PAEG, said that the figures show that there is indeed a huge demand for
employment in MNREGA across the country. Despite such a demand for employment,
there were only 19 lakh families who completed 100 days of employment, while in
view of the demand for work, this figure should have been far more than 40 lakh
families as compared to last year. This came to light because despite the
demand, the state governments could not fully grasp the potential of MNREGA.
There is not enough budget for MNREGA in
many states
In April this year, a total budget of 1.05 lakh
crore was allocated for MNREGA by the Central Government. A PAEG report called
NREGA Tracker revealed that till November, 74,563 crore, or 71 per cent of the
amount has been spent so far, while the pending payment of wages and materials
is outstanding at Rs 9,590 crore (9.1 per cent). In such a situation, the
amount allocated to many states has been spent and now payments from these
states are pending. In such a situation, there is a lack of budget for MNREGA.
Debamalya Nandi, who is associated with the NREGA tracker, told that right now
many states have a shortage of funds for MNREGA, this is also a big reason that
people have not been able to get work despite the huge demand. Initially, the
central government may have given a big budget for MNREGA, but gradually the
focus shifted away from it. The result was that millions of people could not get
work under MNREGA even after the budget. @Nayak 1
Thank you Google