देश भयानक संकट से गुजर रहा है, क्रांति करने के लिए यही परिस्थितियां अनुकूल है : वीएल मातंग
बामसेफ के 37वें राष्ट्रीय अधिवेशन में शामिल हुए बहुजन मुक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीएल मातंग ने कहा, 1999 का राष्ट्रीय अधिवेशन बिहार में था. उसमें एक विषय था ‘‘चुनाव जीतने के लिए मिलिट्री एवं प्रशासन का दुरुपयोग करना देश में अराजकता निर्माण करेगा’’ इस विषय को 21 साल हो गया. 26 जुलाई 1999 को कारगिल का युद्ध हुआ था और उसके बाद यह विषय गया था. अभी भी यह सिलसिला बंद नहीं हुआ है. बल्कि उसके स्वरूप बदलते गए, तरीके बदलते गए. उस समय दूर-दूर तक ईवीएम की गूंज सुनाई नहीं देती थी. मुझे अजीब लगता है कि देश भयानक संकट से गुजर रहा है और क्रांति करने के लिए यही परिस्थितियां अनुकूल है, ऐसा मेरा मानना है.
वीएल मातंग ने कहा, आप जिस संविधान के दायरे में रहकर
क्रांति करना चाहते हो मैं यह कहना चाहता हूं कि दुनिया में जिन लोगों ने
क्रांतियां की उससे उन लोगों से ज्यादा दुश्मनों के चरित्र को जानना जरूरी है.
हमारे महापुरुषों के चरित्र हमारे लिए जमा पूंजी है. लेकिन, आप जिन दुश्मनों की व्यवस्था को खत्म
करना चाहते हो उसका चरित्र जानना उससे भी भयानक है. वर्तमान में जो सरकारें हैं, जिन ब्राह्मणों ने आपका वोट छीन कर
सरकार बनाई उस सरकार का चरित्र ही लोकतंत्र के विरोध में है, सरकार का चरित्र ही संविधान के विरोध
में है. उन्होंने दावे के साथ कहा, प्रशासन नीतियाँ नहीं बनाता सरकार
नीतियाँ बनाती है, याद रखो.
प्रशासन कभी अपने ब्रेन को फॉलो नहीं करता नीति पर अमल करता है. यदि प्रशासनिक
क्षमता के संदर्भ में आप ये कहना चाहते हैं कि अगर ये रोकना चाहते तो रोक सकते थे.
संवैधानिक तरीकों को मुझे नहीं लगता है. क्योंकि, जितने भी प्रशासनिक अधिकारी है बंधुआ
मज़दूरों से ज्यादा उनका कोई भी स्टेटस रहा नहीं है.
आगे कहा, एक समय था जब हमारे लोग पढ़े-लिखे नहीं
थे तब वोट का अधिकार मिला, उस समय
पूना पैक्ट लागू किया प्रतिनिधित्व विहिनता से. अब जब ज्यादा ज्यादा पढ़े
लिखे लोग पैदा हो गए तो प्रतिनिधित्व विहिनता के लिए टेक्नोलॉजी का नया तरीका खोजा.
स्वरूप वहीं का वहीं है प्रतिनिधित्व विहिनता का. चाहे उसे प्राइवेटाइजेशन कहो या
चाहे दलाल भवड़ों की व्यवस्था कहो.
ईवीएम के संदर्भ में वीएल मातंग ने कहा, 6 अक्टूबर 2019 को बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव ने कहा, हम बगैर चुनाव लड़े बीजेपी की सरकार बना
सकते हैं. इससे आप अंदाजा लगा सकते हो. मोदी को लगता है इसमें कोई नई बात नहीं है
क्योंकि उसको सब कुछ मालूम है और हम लोगों को भी मालूम है. 2004 2014 2019 का चुनाव में जब हम ईवीएम के इस्तेमाल
की बात करते हैं तो 2004 के चुनाव
में ईवीएम का इस्तेमाल करने से पूर्व बहुत बड़ी घटना निर्माण हुई. 13 सितंबर 2003 मान्यवर कांशीराम साहब का ब्रेन हेमरेज
होता है और उसके 8 महीने के
बाद 20 अप्रैल से
10 मई 2004 तक चुनाव था. उस समय मान्यवर कांशीराम
साहब को ब्रेन हेमरेज के दायरे से कभी बाहर निकल ही नहीं दिया गया. अगर वे बाहर
निकलते तो वे केवल राजनीति में नहीं थे, सक्रिय राजनीति में थे. हमें 2014 के चुनाव के बाद ईवीएम के बारे में पता
चला, उन्हें 2004 में ही पता चल जाता कि ये 2004 में ईवीएम के बदौलत चुनाव जीते हैं और
निश्चित तौर पर वे 2004 में ही
बड़े पैमाने पर इस मुद्दे पर आवाज़ उठाते और भारत में आंदोलन शुरू हो जाता. हम
लोगों को 10 साल का
इंतजार करने की जरूरत नहीं पड़ती. मायावती को आज भी समझ में नहीं आ रहा है. इस तरह
से ईवीएम की वजह से ही कांशीराम साहब को इस दायरे से बाहर नहीं निकलने दिया. वर्ना
ईवीएम का दायरा देश में बंद हो गया होता.
उन्होंने कहा मैं यह कहना चाहता हूं
वर्तमान दुश्मनों ने जो भी तरीके बनाए हैं केवल आप लोग सोच रहे हैं कि हम शक्ति
बनाकर उनका बंदोबस्त करेंगे तो क्या वे चुपचाप बैठने वाले हैं? क्या वे अपनी शक्ति नहीं बनाएंगे, ऐसा सोच कर चल रहे हैं क्या? वो वर्तमान में ऐसा कर रहे हैं. कोरोना
के नाम पर लॉकडाउन में सारे मौलिक अधिकार खत्म कर दिए गए. आर्टिकल 12 से 35 तक सारे अधिकार खत्म कर दिए गए हैं, होगा नहीं, खत्म हो चुका है. आर्टिकल 12 में जो संवैधानिक मूलभूत अधिकार है
स्वायत्त संस्थाओं का वो खत्म हो गई. क्या आपको लगता है कि चुनाव आयोग
स्वायत्त है? क्या आपको
लगता है इनकम टैक्स डिपार्टमेंट स्वायत्त है? या क्या आपको लगता है कि सीबीआई
स्वायत्त है? क्या आपको
लगता है कि न्यायपालिका स्वायत्त है? सभी स्वायत्त संवैधानिक संस्थाएं खत्म
हो गई है.
इसी तरह से आर्टिकल 13 में 26 जनवरी 1950 से पहले मौलिक अधिकार था. जो नीतियाँ, कानून, आस्था, कर्मकांड विधियां जो भी, मौलिक अधिकारों के विरोध में कानून को
समाप्त कर दिए जा रहे हैं. दे दिया ना आस्था के आधार पर राम मंदिर का जजमेंट वो भी
आंखों के सामने. आर्टिकल 14 इक्वालिटी
विफोर लॉ, आर्टिकल 15-16 है क्या? अवसर की समानता हो गया ना रिजर्वेशन
खत्म. आर्टिकल 17 अस्पृष्यता
का अंत. यहां तो राष्ट्रपति के साथ हो रहा है तो बाकी लोगों की तो बात ही नहीं है.
आर्टिकल 19 मौलिक
अधिकार में सभा, रैली, धरना, विरोध, प्रदर्शन, विचारों की अभिव्यक्ति. अब तो संकट खड़ा
कर दिया न कि हम अधिवेशन लेने भी लायक नहीं रहे. उसी तरह से आर्टिकल 21 राइट टू लीव, आर्टिकल 22 गैर कानूनी गिरफ्तारी नहीं कर सकते हैं, कर रहे हैं. आर्टिकल 23 आप शोषण नहीं कर सकते, नई मजदूर कानून नीतियाँ बना दी ना. आर्टिकल 24 चाइल्ड लेवर, आर्टिकल 25 से आर्टिकल 29 धार्मिक स्वतंत्रता. अरे! आंखों के
सामने संविधान के मौलिक अधिकार खत्म कर दिए गए. इसके बाद भी और अधिकार समाप्त करने
में लगे हुए हैं. वे लोग यहीं तक सीमित नहीं हैं.
मेरा मानना है कि 2024 के चुनाव में भी चुनाव आयोग ने प्लान
बना लिया है ईवीएम का इस्तेमाल करने का. अभी 21 अक्टूबर का इकोनामिक टाइम्स का आर्टिकल
में अनुभूति ने लिखा माईग्रेड लोगों को ऑनलाइन वोट देने का अधिकार होगा. इससे
साबित होता है कि चुनाव आयोग चुप्प बैठा हुआ नहीं है. ये जो तरीके उन लोगों ने
अपनाएं है वे भयानक है उन्हें किसी बात की डर नहीं है. आप सोच रहे हो संविधान की
संस्थाओं के द्वारा आपको न्याय मिलेगा? चुनाव आयोग बदमाशी करेगा तो आप
न्यायपालिका में जाओगे क्या न्यायपालिका आपको न्याय देगी? आपके सारे रास्ते बंद हो चुके हैं.
संवैधानिक तरीके से न्याय पाने के लिए आपके सारे रास्ते बंद कर दिए गए हैं. आपके
सामने केवल एक ही रास्ता है शक्ति का निर्माण करना. इसके अलावा कोई रास्ता दिख
नहीं रहा है. हम लोगों ने शक्ति का निर्माण करके भारत बंद किए था ना. जितनी बड़ी
मात्रा में शक्ति पैदा करोगे उतनी बड़ी मात्रा में दुश्मनों को आप रोक लगाने में
कामयाब हो सकते हो.
यह देश धीरे-धीरे सिविल वार की ओर जा
रहा है. नागरिकों के सामने फौज उतार देना और अगर फौज में मूल निवासी है तो विदेशी
फौज बुलाना. ये देशद्रोह का सबसे बड़ा सबूत है. आपको दबाने के लिए सिविल वार का
रास्ता धीरे-धीरे दिख रहा है. विदेशी ब्राह्मणों के 6 सुरक्षा कवच हैं. नंबर एक, धार्मिक भावना पर एससी, एसटी और ओबीसी की मानसिकता को बनाना.
भले ही हिंदुत्व का एजेंडा हो लेकिन विदेशी ब्राह्मण मजबूत हो जाता है. दूसरा है
हिंदुत्व बाद में राष्ट्रवाद का तड़का लगाना. तीसरा तरीका है यूरेशियन विदेशी
ब्राह्मणों द्वारा अलग-अलग क्षेत्रों में सामाजिक संगठन बनाना और उन संगठनों के
द्वारा आपके आंदोलन को रोकना. यानी आपको आपके लोगों द्वारा रोकने का उनका तरीका
है. चौथा है, उनके लोग
हमारे संगठन के सामने नहीं टिक पाते हैं तो प्रशासनिक मशीनरी का दुरुपयोग करना.
इसी तरह से पांचवां है लोकतंत्र में ईवीएम के द्वारा वोट छीनने के लिए हथियार के
तौर पर इस्तेमाल करना और छठां है पूंजीवाद के चक्रव्यूह को तोड़ना. ये ब्राह्मणों
का सुरक्षा कवच है. लड़ते-लड़ते बीच में ही आपका आंदोलन खत्म हो जाता है और वे
सुरक्षित रहते हैं, ऐसी संकट
हमारे सामने है.
वीएल मातंग ने कहा, मेरा पर्सनल मानसिकता है, हो सकता है आप इससे सहमत ना हों. मेरी
सोच है ब्राह्मण अपनी डर छुपाने के लिए दशहरा के दिन शस्त्रों की पूजा करके लोगों
को अपनी ताकत दिखाता है. मेरी सोच है 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव के कार्यक्रम
को राष्ट्रीय स्वरूप दिया जाए और शौर्य दिवस के तौर पर मनाया जाए. इसके साथ ही मूल
निवासियों को शस्त्र सम्मान का दिवस घोषित किया जाए, केवल 10 साल में मानसिकता तैयार हो जाएगी. आपके
पास कुछ है नहीं, जब घर में सांप निकलता है ना तब लाठी
ढूंढते रहते हो वो भी नहीं मिलता है तो पड़ोस वालों से मांगते हो. इसलिए आत्म सुरक्षा
के लिए हमारे पास जो भी पारंपरिक तौर पर खूर्पी हो, दतिया हो या जो भी हो
आत्मसुरक्षा के लिए शस्त्र सम्मान दिवस के तौर पर 1 जनवरी मनाया जाए.
दूसरा तरीका है नेटवर्किंग के क्षेत्र
को स्पोटिंग किया जाए. प्रत्येक संगठन के पास ये अधिकार है कि वह अपना नेटवर्क कौन
से एरिया में बढ़ाएं. जहां पर भी वायरस यूरेशियन ब्राह्मण रहे हैं उसके 10 किलोमीटर के एरिया में संगठन की ताकत
बनाओ. इससे हमारा आधा काम तो ऐसे ही कम हो जाएगा. ट्राइबल एरिया या दूर-दूर तक
उनका कोई आबादी रहती नहीं है. निश्चित तौर पर ये दो काम दुश्मनों में डर पैदा
करेगा. हमें इसका इस्तेमाल नहीं करना है, हिंसा का सहारा नहीं लेना है. लेकिन, आत्मसुरक्षा के लिए समाज को तैयार करने
के लिए. अगर मौलिक अधिकार किसी विचारधारा को, किसी उद्देश्य को सुरक्षित करने के लिए
आपके पास कोई प्रबंध नहीं है तो वो खत्म हो जाते हैं. जैसे जैनिज्म खत्म हो गया, जैसे लिंगायत खत्म हो गया. मैं केवल
इतना कह रहा हूं कि शौर्य दिवस के तौर पर भीमाकोरे गांव पूरे देश में 6 लाख गांव में मनानी चाहिए.@Nayak 1
He country is going through a terrible crisis, the same conditions are favorable for revolution: VL Mathang
The national president of Bahujan Mukti Party,
who attended the 37th national session
of BAMCEF, said VL Matang, the 1999 national session was in Bihar. There was a theme in it,
"Misuse of military and administration to win elections will create chaos
in the country". This topic has been 21 years. The war of
Kargil took place on 26 July 1999 and after that the
subject was gone. This trend has not stopped yet. Rather its forms changed,
methods changed. At that time, the echo of EVMs was not heard from far and
wide. I feel strange that the country is going through a terrible crisis and
that the conditions are favorable for revolution, I believe.
VL Mathang said, I want to say that the
constitution under which you want to revolutionize, it is necessary to know the
character of enemies more than those people who have done revolution in the
world. The character of our great men is our accumulated capital. But, knowing
the character of the enemies you want to end the system is even more terrible.
The governments that are in present, the Brahmins who snatch your vote and
formed a government, the character of that government is against democracy, the
character of the government is against the constitution. He said with the
claim, administration does not make policies, government makes policies,
remember. The administration never follows its brain and follows the policy. If
you want to say that in terms of administrative capacity, if you wanted to stop
it, you could have stopped it. Constitutional methods I do not think. Because,
as many administrative officers are there, they have no more status than bonded
laborers.
He further said, there was a time when our
people were not educated, then got the right to vote, at that time, the Poona
Pact was implemented with representation. Now, when more educated people are
born, then we have found a new way of technology for representation. The form
is the representation of the same here and there. Whether it is called
privatization or whether brokers call it a system of buildings.
In the context of EVMs, VL Matang said, On 6 October 2019, the BJP national
general secretary said, we can form a BJP government without contesting
elections. With this you can guess. Modi feels that there is nothing new in
this because he knows everything and we also know. When we talk about the use
of EVMs in the election of 2004 2014 2019, before the use of EVMs in the 2004 elections, a very
big event was created. On September 13, 2003, Manyavar Kanshi
Ram saheb has a brain hemorrhage and after 8 months, there was
election from April 20 to May 10, 2004. At that time,
Manyavar Kanshi Ram sir was never allowed out of the scope of brain hemorrhage.
If he went out, he was not only in politics, he was in active politics. We came
to know about EVMs after the 2014 elections, they would have known only in 2004 that they won
elections due to EVMs in 2004 and certainly in 2004 they would have raised voice on this issue in a big way and
movement in India Would have started We do not have to wait for 10 years. Mayawati
still does not understand. In this way, due to EVM, Kanshi Ram did not allow
him to get out of this realm. Otherwise EVM scope would have been closed in the
country.
He said, "I want to say that whatever
methods the present enemies have created, only you people are thinking that if
we create power and will manage them, are they going to sit quietly?" Are
they thinking that they will not build their power? They are currently doing
so. All fundamental rights were abolished in lockdown in the name of Corona.
All rights from article 12 to 35 have been
abolished, it will not be, it is over. The constitutional fundamental right in
article 12 ended that of
autonomous institutions. Do you think the Election Commission is autonomous? Do
you think the Income Tax Department is autonomous? Or do you think CBI is
autonomous? Do you think the judiciary is autonomous? All autonomous
constitutional institutions have ended.
Similarly, Article 13 had the
fundamental right before 26 January 1950. Whatever policies, laws, faith, rituals, whatever, laws are
being abolished against fundamental rights. Judgment of Ram temple on the basis
of faith, that too in front of eyes. Is article 14 equality before
law, article 15-16?
Equality of opportunity is there, reservation is over. Article 17 The end of
untouchability. If this is happening with the President here, there is no
question of the rest. Article 19 Assembly, rally, picket, protest, demonstration, expression
of ideas in fundamental rights. Now it created a crisis, not that we are not
even able to take the session. In the same way, Article 21 Right to Leave,
Article 22 cannot make
illegal arrests. Article 23 You cannot exploit, made new labor law policies. Article 24 Child labor,
article 25 to article 29 Religious freedom.
Hey! The fundamental rights of the constitution were abolished before the eyes.
Even after this, more people are engaged in ending the rights. Those people are
not limited here.
I believe that even in the election of 2024, the Election
Commission has made a plan to use EVMs. Now in the Economic Times article of
October 21, Anubhuti wrote,
Mygrade people will have the right to vote online. This proves that the Election
Commission is not sitting silently. The methods that they have adopted are
terrible, they are not afraid of anything. Are you thinking that you will get
justice through the institutions of the Constitution? If the Election
Commission does bullying, you will go to the judiciary, will the judiciary give
you justice? All your routes are closed. All your avenues have been closed to
get justice in a constitutional manner. There is only one way in front of you
to build power. Apart from this, there is no way out. We had shut down India by
building power. The greater amount of power you generate, the greater the
amount of enemies you can succeed in stopping.
This country is slowly moving towards civil
war. Unloading the army in front of civilians and if there are natives in the
army, then call a foreign army. This is the biggest proof of treason. The way
of civil war is slowly appearing to suppress you. Foreign Brahmins have 6 protective shells.
Number one, to build the mindset of SC, ST and OBC on religious sentiment. Even
if Hindutva has an agenda, the foreign Brahmin becomes stronger. The second is
Hindutva, later to put the temper of nationalism. The third way is to form
social organizations in different areas by Eurasian foreign Brahmins and stop
your movement through those organizations. That is their way to stop you from
your people. Fourth is, if their people do not stand in front of our
organization then misuse the administrative machinery. In a similar way, the
fifth is to use the EVM as a weapon to snatch votes in a democracy and the
sixth is to break the cycle of capitalism. It is the safety shield of Brahmins.
In the middle of fighting, your movement ends and they remain safe, such a
crisis is in front of us.
VL Mathang said, my personal mentality is, you
may not agree with this. My thinking is that Brahmin shows his strength to
people by worshiping weapons on the day of Dussehra to hide their fear. My
thinking is that Bhima Koregaon program should be given a national shape on
January 1 and it should be
celebrated as Shaurya Day. With this, the original residents should be declared
the Day of Arms Honor, mentality will be ready in only 10 years. You do not
have anything, when a snake comes out in the house, then you keep searching for
sticks and if you do not find it, then you ask the neighbors. Therefore,
whatever is traditionally Khurpi, Datia or whatever it is for self-protection,
January 1 should be
celebrated as Arms Honor Day for self-protection.
The second way is to make the field of
networking a sport. Every organization has the right to expand its network in
which area. Wherever the virus has been Eurasian Brahmin, make the strength of
the organization in the area of 10 km. With this, half our work will be reduced like this.
There is no population in the tribal area or far away. Certainly, these two
works will instill fear in enemies. We do not have to use it, we do not have to
resort to violence. But, to prepare the society for self-protection. If you do
not have any arrangement for securing any right, any ideology, a fundamental
right, then they end. As soon as Jainism was over, Lingayat came to an end. All
I am saying is that Bhimakore village should be celebrated in 6 lakh villages
across the country as Shaurya Day. @ Nayak 1
Thank you Google