एक बार राजा ने खुश होकर लोहार को चंदन का बाग भेंट कर दिया।
लोहार को चंदन के पेड़ की उपयोगिता और कीमत का अंदाजा नहीं था इसलिए उसने पेड़ो को काटकर उन्हें जलाकर उसका कोयला बना कर बेचना शुरू कर दिया।
ऐसा करते-करते, धीरे-धीरे सारा बाग खाली हो गया।
एक दिन राजा घुमते हुए लोहार के घर के बाहर से गुजर रहे थे तो राजा ने सोचा अब तो लोहार चंदन बेच-बेचकर बहुत अमीर हो गया होगा। प्रत्यक्ष देखने पर लोहार कि स्थिति जैसे की तैसी पहले जैसी नजर आई यह देखकर राजा को आश्चर्य हुआ। राजा के मुँह से अनायास निकला यह कैसे हो सकता है? राजा ने सच का पता लगाया तो पाया चंदन तो कोयला हो गया।
तब राजा ने लोहार से पूछा- तेरे पास एकाध लकडी बाकी है या सबका कोयला बना दिया लोहार के पास मात्र कुल्हाडी में लगे चंदन के बेट के अलावा कुछ भी नहीं था वह लाकर राजा को दे दिया।
राजा ने लोहार को कुल्हाड़ी का बेट लेकर चंदन के व्यापारी के पास भेज दिया वहाँ जाकर लोहार को कुल्हाड़ी के बेट के बदले बहुत सारे पैसे मिल गये यह देखकर लोहार की आंखो मे आसू आ गये वह बहुत रोने लगा फिर उसने रोते हुए आँसू पोछकर राजा से और एक बाग देने की विनती की। तब राजा ने उसे कहा ऐसी भेंट बार-बार नहीं, एक ही बार मिलती है।
SC, ST, OBC के लिये संविधान प्रदत्त *अधिकार* चंदन के बाग की भेंट कि तरह है। इन्हें सस्ते राशन, गैस, बाथरूम एवं चन्द आर्थिक सहायता में बेचा जा रहा है।
अगर संविधान प्रदत्त अधिकारों का संरक्षण ठीक से नहीं किया गया तो हम सब की हालत उस लोहार जैसी हो जाऐगी।
इसलिए समय रहते ही सावधान हो जाएँ और अपने संवैधानिक अधिकारों का मूल्य पहचान कर उनकी रक्षा करें।
*जब तक संविधान है तब तक हम है।*
जय मूलनिवासी