बौद्ध इतिहास की झलक

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चीनी यात्री फाहियान ने एक प्रसंग में भारत को " बुद्ध देश " कहा है और कोरिया के बौद्ध यात्री हाइचो ने भी भारत को " बुद्ध भूमि " लिखा है।

हाइचो कोरिया के तीन राज्यों में से एक सिला के बौद्ध भिक्खु थे और 8 वीं सदी में भारत आए थे।

कनिंघम और जेम्स प्रिंसेप के जमाने में हाइचो का भारत - वर्णन उपलब्ध नहीं था, सो इतिहास  - लेखन में इसका इस्तेमाल वे नहीं कर सके।

हाइचो की पांडुलिपि 1908 में चीन के दुनहुआंग से मिली। फ्रांस के पाॅल पेलियट ने खोजी थी, सो फिलहाल यह पेरिस में रखी है।

पांडुलिपि के आरंभिक और अंतिम भाग नष्ट हो गए हैं। फिर भी हाइचो के भारत - वर्णन की 227 पंक्तियाँ सुरक्षित हैं।

हाइचो ने बोध गया, सारनाथ, राजगीर और कुशीनगर के स्तूपों को देखा था।

सारनाथ के अशोक - स्तंभ को बहुत सुंदर बताया है और लिखा है कि इसके शीर्ष पर सिंह की मूर्ति है।

कुशीनगर में हाइचो ने एक वार्षिक समारोह का जिक्र किया है और बताया है कि इस समारोह में बौद्ध भिक्खु और सामान्य लोग भी शामिल होते हैं।

कुशीनगर का यह समारोह साल के 8 वें महीने में 8 वीं तिथि को मनाया जाता था। इस बौद्ध समारोह की जाँच अभी बाकी है।

हाइचो विश्व - इतिहास के एक ऐसे बौद्ध यात्री हैं, जिन्होंने लगभग 20000 किलोमीटर की दूरी 4 सालों में पूरी की थी।

कोरिया से चीन, चीन से भारत और फिर भारत से अरब तक लगभग संपूर्ण एशिया को उन्होंने पैरों से रौंद दिया था, तब इतने बड़े भू - भाग में कोई 40 देश थे।

अभी - अभी " बौद्ध इतिहास की झलक " किंडल पर छप कर आ गई है। 

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