*#भारत की स्त्री / लडकीया सामाजिक आंदोलन मैं सहभाग क्यू नहीं लेती ??अथवा उनको सहभाग क्यू लेना चाहीए ?*

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*#भारत की स्त्री / लडकीया सामाजिक आंदोलन मैं सहभाग क्यू नहीं लेती अथवा उनको सहभाग क्यू लेना चाहीए ?* 

         मै बताना चाहती हू .हम गुलाम बनने से पेहले भारत देश मैं मातृसत्ताक संस्कृती थी, लेकिन हमारे देश मैं ब्राम्हणोने उसे पितृसत्ताक संस्कृती रूपांतरित किया। हमारी महिलाए राणी हुआ करती थी और राज - पाट का काम देखा करती थी। शादी के बाद दुल्हा - दुल्हन के घर जाता था और बहुत सुखी संपन्न तथा समृद्ध व्यवस्था थी। इसका मतलब महिला के हाथ मैं अगर व्यवस्था हो तो कोई समस्या नहीं आती। मगर युरोशियन ब्राम्हणो ने मातृसत्ताक संस्कृती को खत्म कर के पुरुषसत्ताक संस्कृती का निर्माण किया और उसी दिन स महिलाओ का समाज मै महत्व कम हुआ और पुरुष को ज्यादा महत्व प्राप्त हुआ। पुरुष राजा बन गया और राज - पाट का काम देखने लगा और शादी के बाद दुल्हन दुल्हे के घर जाने लगी। और दुल्हे ने अर्थात पुरुष ने उसे गुलाम बनाया। और उसके बाद महिला को सभी मूलभूत अधिकारो से वंचीत कर दिया। अनपढ रखकर गुलाम किया।
         हमारे मूलनिवासी महापुरुषोनॆ स्वाभिमानी और राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाया इसकी वजह से महिलाये गुलामी से आजाद हुई। उनको शिक्षा, नौकरी, संपत्ती का मूलभूत अधिकर प्राप्त हुआ। लेकिन बाद मैं युरोशियन ब्राम्हणो ने एसी पढी -लिखी और अधिकार संपन्न महिलाओ को गुलाम बनाया इसके लिये उन्होने अभ्यासक्रम तैयार किया और इस ब्राम्हणी अभ्यासक्रम की वजह से पढी लिखी महिला गुलाम हो गयी। यह हमारा इतिहास हैं।
         मैं आपको तथागत बुद्ध कालीन का इतिहास बताना चाहती हू। भारत का इतिहास बताता हैं की महिलाओ को इस ब्राम्हणवादी व्यवस्था से आजाद करने के लिये सर्वप्रथम तथागत बुद्ध ने क्रांती की। जब तथागत बुद्ध ने देखा की पुरुष के साथ - साथ महिलाओ को भी ब्राम्हणवादी व्यवस्था ने जानवरो की तरह गुलाम बनाया गया हैं तो तथागत बुद्ध ने महिलाओ की आजादी के लिये ब्राम्हणवादी व्यवस्था को जड से उखाड फेंकने के लिये क्रांती की शुरुआत की और उन्होने अपने क्रांती मैं बडे पैमाणे पर महिलाओ को भागीदार बनाया। जिसमे महाप्रजापती गौतमी, सुजाता, वैशाली, यशोधरा, यंहा तक की ब्राम्हणवादी व्यवस्था मैं पिस रही आम्रपाली को भी बुद्ध ने अपने क्रांती का हिस्सा बनाया। आपको सूनकर आश्चर्य होगा की आम्रपाली एक वेश्या थी जिसे सारी दुनिया हेयदृष्टि से देखती थी। मगर तथागत बुद्ध की उस महानता को देखीये जिसने वेश्या आम्रपाली तक को स्वतंत्रता पूर्वक जीने का अधिकार दिया। जिस ब्राम्हणवादी व्यवस्था के तहत वह घृणास्पद जिवन जि रही थी उसको हमेशा - हमेशा के लिये त्याग दिया क्योंकी अभी तक वह ब्राम्हणवादी व्यवस्था के तहत अंधेरे मैं जी रही थी। मगर जैसे जैसे ही उसे बुद्ध से ज्ञान मिला वैसे ही उसने ब्राम्हणवादी व्यवस्था के गंदे गृह को त्याग दिया।
        तथागत बुद्ध ने महिलाओ की आजादी के लिये सिर्फ आंदोलन ही नहीं चलाया बल्की उन्होने महिलाओ के लिये एक भिक्षुणी संघ की स्थापना की। महिलाओ को यह संदेश दिया की तुम्हे भी स्वतंत्रता के साथ जिने का अधिकार हैं। तुम किसीं की गुलाम नहीं हो, तुम्हे भी स्वतंत्रता पूर्वक जिने और रहने का अधिकार हैं। 
        मगर जैसे ही बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ वैसे ही ब्राम्हणो की प्रतिक्रांती फिर से शूरु हो गई और बुद्ध जाने के बाद उन्होने इस देश की मूलनिवासी महिलाओ को गुलाम बनाने के लिये चार ब्राम्हणवादी ग्रंथो का निर्माण किया। जीसका नाम हैं- रामायण, महाभारत, गीता और मनुस्मृती। 
          लेकींन मैं इसपर बोहोत विश्लेषण करके बताना चाहती हू। हम लोगोने उपर बस इतिहास देखा। यह इतिहास हमारे मूलनिवासी महिलाओ को मालूम नहीं हैं। बाबासाहब केहते हैं "जो कौम अपना इतिहास नहीं जानती वह कौम अपना भविष्य निर्माण नहीं कर सकती"! इस वाक्य मैं ही बोहोत कुछ हैं, हमारी महिलाये मानसिक गुलाम, शारीरिक गुलाम हैं उनकी अज्ञानता की वजह से। मैं नीचे कुछ मुद्दो से स्पष्ट करना चाहती हू की- हमारी महिलाए सामाजिक आंदोलन मैं सहभाग क्यू नहीं लेती / उनको सहभाग क्यू लेना चाहीए।

१) जागृती का अभाव
        मनुस्मृती लागू होणे की वजह से महिलाए शिक्षित नहीं हो पाई और संविधान लागू होने के बाद जो महिलाएं / लडकिया सिखी उनके अभ्यासक्रम मैं यह इतिहास नहीं था। इसलिए हमारे मूलनिवासी महिलाओं मै जागृती का अभाव है। लेकिन इस पर एक उपाय है कि हम लोग हमारे मूलनिवासी महिलाओं का प्रबोधन करे। जगह - जगह पर जाकर उनको हमारे मूलनिवासी महिलाओं का इतिहास बताये। फिर उनमें जागृती का अभाव नहीं रहेगा। ऐसा मुझे लगता हैं। 

२) धार्मिक गुलामी / मानसिक गुलामी
         हमारी स्त्री / लडकिया सब धार्मिक गुलामी मैं पैदा हुईं है। वह कैसे? ब्राम्हणवादी ने ब्राम्हणवादी ग्रंथ बनाया, रामायण, महाभारत, गिता और मनुस्मृति। ब्राम्हण धर्म ने इन ग्रंथो मै अंधश्रद्धा का निर्माण किया! व्रत और त्योहार बनाये हैं और वह सब हमारी मूलनिवासी महिलाये उनका पालन करती हैं। लेकिन हमारे मूलनिवासी महिलाओ को यह समझ नहीं आता है कि यह सब हमारी गुलामी के लिए बनाया है। उन ब्राम्हणी ग्रंथो मैं से हमारी महिलाएं गिता पढती है फिर महिला के ध्यान मैं नहीं आता कि एक महिला के बारे मैं क्या-क्या अपशब्द लिखा है। आगे देखो गिता मैं महिलाएं के बारे मैं क्या कहा है, गिता केहती है महिलाएं पापयोनि से पैदा हुई है। फिर भी हम गिता को पवित्र केहते हैं। इनमे से हमारी महिलाओं ने रामायण पढ़ी, महाभारत पढ़ा गिता भी पढ़ी लेकिन मनुस्मृति नहीं पढ़ी अगर मनुस्मृति पढती तोह क्या महिला और गुलाम हो जाती या वो आजाद हो जाती? ऐसा क्या था मनुस्मृति मैं जो शुद्रो को पढ़ने के लिए अनुमती नही थी? इन चारों ग्रंथो मैं ब्राम्हणों ने मूलनिवासी महिलाओं के लिए इतने घिनौने - घिनौने शब्द का प्रयोग किया कि जिसे कोई सुनकर कोई भी आदमी शर्म से झुक जाएगा। यह सब हमारी महिलाओ ने पढ़ा फिर भी उनको पता नहीं चला। ब्राम्हणों ने सती प्रथा, बाल विवाह प्रथा, शुद्धिकरण प्रथा आदि हजारों प्रथाए महिलाओं के ऊपर लागू किया हैं। फिर भी हमारी महिलाएं व्रत, त्योहार मनाती हैं।

३) साज, श्रृंगार की गुलामी
         हमारी स्त्री / लडकियों को लगता है यह सब हमारे सौंदर्य के लिए है। वाकई मैं ऐसी बात नही इसके पीछे भी उनका षड्यंत्र है, गले मैं मंगलसूत्र पहनती है पति के नाम से, पाँव मैं पैंजन पहनती है घरसे ज्यादा दूर ना जाए इसलिए, माँग मैं सिंदूर भरने के पीछे का षडयंत्र देखो क्या है,  जब हमारे पुरखों की हत्या की तो उनका खून हमारे मूलनिवासी महिलाओं के माँगो मैं भरा जिसकी जगह आज हमारी मूलनिवासी महिला सिंदूर भरती है और हमारी मूलनिवासी महिलाओं को लगता है कि सिंदूर भरने से हमारी सुहाग की रक्षा होती है। यानि वह उसको सुहाग के तौर पर लगाती है। मगर सही मायने मैं देखा जाए तो हमारी मूलनिवासी महिलाओं को यह पता नहीं है कि यह सुहाग का प्रतीक नहीं बल्कि आर्य ब्राम्हणों द्वारा थोपी हुई गुलामी है। इसपर हमारी मूलनिवासी महिलाओं को गंभीरता से सोचने और समझने की जरुरत है।
         मैं आप लड़कियों / महिलाओं को एक सवाल करना चाहती हु, जिन ग्रंथो मैं हमारी महिलाओं के बारे मे घिनोनी बात कहीं गई हैं और लिखी गई है क्या हम लोगों को उस ग्रंथ को मानना चाहिए या नही? 
          मैं आप सभी पुरुषो से अपील करती हूं कि हमारी महिलाओं को बोलो ये सब साज श्रृंगार उतारकर फेक दो। और जब तक हमारे पुरुष महिलाओं का सन्मान, उनको प्रोत्साहन नहीं देते तब तक हमारी महिला घर से बाहर नहीं आएगी। क्या नहीं कर सकती हमारी महिला? कोख से एक एक वीरो को जन्म देती है तो वो क्रांति निर्माण नही कर सकती क्या? जरूर कर सकती हैं। महिलाएं मैं ऐसी ताकत है जो उनको भी पता नहीं है। क्योंकी वह सब गुलाम है लेकिन जब गुलामी का एहसास होगा तब वह इसके खिलाफ आवाज उठाएगी।
          तथागत बुद्ध के बाद महिलाओं की आजदी के लिए राष्ट्रपिता ज्योतीराव फुले और राष्ट्रमाता शिक्षिका सावित्रीबाई फुले ने आंदोलन चलाया, इसके बाद हमारे संविधान निर्माता बाबासाहब ने महिलाओं को मान - सन्मान से जीने के लिए संविधान 8 के 14,15,16 और अनुच्छेद 36 मैं हक और अधिकार दिए है।
         महिलाओ को आजाद होने के लिए उनको जागृत होना होगा. कौनसी चिज आज मुफ्त मैं मिलती है? दुनिया मैं कोई भी चीज मुफ्त मैं नहीं मिलती आजादी तो बिलकुल भी नही मिलेगी इसलिए महिलाओं को अगर आजाद होना है तो अपने हिस्से की लड़ाई लड़नी होगी। मालिक ( पुरुष ) क्यों चाहे की गुलाम ( स्री ) आजाद हो और बढ़िया ढंग का गुलाम ( स्री ) खाना बनाने वाला, बर्तन मांजने वाला, कपड़े धोने वाला, घर की साफ-सफाई और रखवाली करने वाला बच्चे और बुढो की देखभाल करने वाला गुलाम। इसका मतलब पुरुष आपको आजाद करेंगे इस पर यकीन करना नामुमकिन है। इसलिए महिलाओं को खुद आगे आकर खुद को और साथ ही साथ अपने पुरुषों को भी युरोशीयन ब्राम्हणों की गुलामी से आजाद करना चाहिए। 
            महिलाओ एक बात हमेशा ध्यान मे रखनी होंगी - महिला आजाद तो परिवार आजाद और परिवार आजाद तो समाज आजाद और समाज आजाद तो देश आजाद वैसे ही अगर महिला गुलाम तो परिवार गुलाम और परिवार गुलाम तो समाज गुलाम और समाज गुलाम तो देश गुलाम। इसलिए सबसे पहले महिलाओ को आजाद होने की जरूरत है। क्योंकि गुलाम महिला गुलाम बच्चे पैदा करती है और आजाद महिला आजाद बच्चे पैदा करती है।
          हमारे देश मैं अगर हमें मातृसत्ताक व्यवस्था चाहिए तो महिलाओं को राष्ट्रव्यापी संघटन से जुड़ना होगा। महिलाओं को जुड़ने के लिए पुरूष मदद करेंगे। अपने घर से हम लोग शुरुआत करेंगे। हमारी घर की औरतोंको हम पहले बाहर निकालेंगे। और हमारे देश मैं मातृसत्ताक व्यवस्था लागू करने के लिए हमे मरते दम तक ब्राम्हणवादी व्यवस्था से लड़ना होगा। हमारे महापुरुषोने जो हक-अधिकार दिया हैं उसे हमे किसीभी कीमत पर बचना होगा!
      *अभी आप ही खुद से पूछ लो आपको आजाद रेहना है या गुलाम रेहना ?* जय मूलनिवासी 
🖊निशा मेश्राम-(राष्ट्रीय मूलनिवासी महिला संघ -राष्ट्रीय प्रचारक)

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