इ-त्सिंग की भारत यात्रा का पहला संपूर्ण अंग्रेजी अनुवाद जापानी विद्वान जे. तककुसू (1866-1945) ने किया है। वे टोक्यो इंपीरियल विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर थे, मगर बुद्धिस्ट स्काॅलर थे तथा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डाॅक्टरेट थे.....
प्रोफेसर तककुसू से पहले एफ. मैक्समूलर के शिष्य कसावरा ने इस यात्रा - वृत्तांत के कुछ भागों का अंग्रेजी में अनुवाद प्रस्तुत किए, मगर संपूर्ण पुस्तक का अनुवाद करने से पहले ही गुजर गए.....
बाद में जापानी बौद्ध विद्वान आर. फूजिशीमा ने 1888 में इसके सिर्फ दो परिच्छेदों ( 32 एवं 34 ) का फ्रेंच में अनुवाद प्रस्तुत किए, मगर संपूर्ण का वे भी नहीं कर सके.....
इ-त्सिंग का हिंदी में पहला अनुवाद करने का श्रेय संतराम बी. ए. को है। यह अनुवाद उन्होंने 1925 में किए थे......
इ-त्सिंग चीनी बौद्ध यात्री थे। चीन के फन- यङ्ग में 635 में जन्म लिए थे। 671 में बरसाती हवा के बीच वे भारत के सफर पर निकल पड़े थे। उनके मन में बौद्ध स्थल मृगदाव और कुक्कुटपदगिरि देखने की बड़ी लालसा थी.....
नालंदा विश्वविद्यालय में कोई दस साल इ-त्सिंग ने गुजारे थे। विश्वविद्यालय के बारे में उन्होंने अनेक बातें लिखी हैं। उन्होंने बताया है कि नालंदा विश्वविद्यालय को कई पीढ़ियों के राजाओं ने 200 से अधिक गाँव दान में दिए थे। इन्हीं दो सौ से अधिक गाँवों की आमदनी से नालंदा विश्वविद्यालय चलता था.....
सम्यक प्रकाशन नई दिल्ली से नए संपादन के साथ यह पुस्तक बाजार में आई है, स्वागत कीजिए.....