कुशीनगर में भगवान बुद्ध की मृत्यु हुई जिसे महापरिनिर्वाण कहते हैं I भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके अनुयाई राजाओं ने अस्थि प्राप्त करने के लिए कुशीनगर के मल्लो से अस्थि प्राप्त करना चाहा I
कुशीनगर के मल्लो ने कहा भगवान का महापरिनिर्वाण हमारे क्षेत्र में हुआ है, इसीलिए उनकी अस्थि पर सिर्फ हमारा अधिकार है हम इस पर स्तूप बनाएंगे I
तब लड़ाई झगडे की नौबत आ गई थी। तब द्रोण नामका एक बम्हण ने बंटवारे का सुझाव दिया 8 भागों में अस्थि विभाजन हुआ I
मगध नरेश अजातशत्रु, वैशाली के लिच्छवी, कपिलवस्तु के शाक्य, अल्लकप्प के बुलिय, रामग्राम के कोलिय, वेठ द्विप के बम्हण, और पावा के मल्लों ने भगवान के शरीर धातु की पूजा करने के लिए स्तूप का निर्माण करवाया I
अस्थि विभाजन के बाद पिप्पलिवन के मौर्यों द्वारा अस्थि अवशेष प्राप्त करने के लिए दूत भेजा परंतु आखिरकार उनको चिता के बुझे आग अवशिष्ट प्राप्त हुई
इस प्रकार भगवान के अस्थि अवशेष पर बने आठ स्तूप और एक तुम्ब स्तूप तथा एक अङ्गार स्तूप मिलाकर दस स्तूप का निर्माण हुआ था।
बाद में देवानांप्रिय प्रियदर्शी अशोक ने आठ स्तूपों में से एक रामग्राम के स्तूप को छोड सात स्तूपो में से धातु निकाल कर हजारो ( 84000 ) स्तूपो का निर्माण किया। उन में कुछ स्तूप बचे है,उन बचे स्तूपो में भगवान के अस्थि आज भी सुरक्षित हैं।
कपिलवस्तु के स्तूप में से मिले भगवान के धातु आज भी नेशनल म्युजियम, दिल्ली में सुरक्षित है। अनेक बौद्ध देशों में अस्थि बौद्ध विहार में सुरक्षित है I
जय मूलनिवासी