संथाल आदिवासी लोग प्राचीन बौद्ध लोग है|

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संथाल आदिवासी लोग प्राचीन बौद्ध लोग है|
वर्तमान संथाल परगना प्राचीन मगध साम्राज्य का मुख्य केंद्र था और मगध साम्राज्य बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र था| बौद्ध लोग अपने संथागार सभागृह में धम्म के संघकार्य के लिए एकजुट होतें थे और उनके संघ सभागार को "संथागार" कहा जाता था| बौद्ध शब्द "संथागार" से "संथाल" शब्द बना है| संथाल मतलब संथागार परंपरा का पालन करनेवाले बौद्ध लोग होता है| शाक्यों ने उनके "शाक्य संथागार" में राजपुत्र गोतम को उनके 20 वे साल में शाक्य संघ में सम्मिलित किया था| (Kshatriya clans in Buddhist India, B. C. Law, 1922, p. 193) 

बौद्ध साहित्य से पता चलता है कि, शाक्य तथा लिच्छवी लोग अपनी गणसभा का आयोजन जिस सभागार में लेते थे, उसे संथागार कहा जाता था| अंबठ्ठ सुत्त में बताया गया है कि, जब राजा प्रसेनजित का महामंत्री अंबठ्ठ ब्राह्मण कपिलवस्तु के संथागार में शाक्यों की सभा में जाता है, तब संथागार के सभी शाक्य उसकी मजाक उडाते है और उसे अविकसित बताकर चिढाते है| ब्राह्मण लोग गणसंघ प्रणाली के विरोधी थे, इसलिए शाक्य गणसंघ के लोग अंबठ्ठ ब्राह्मण का अपमान करते हैं|

इससे पता चलता है कि, मूलनिवासी गणसंघों के सभागृह को "संथागार" कहा जाता था| बाद में बुद्ध ने इन गणसंघों की प्रणाली पर आधारित अपना भिक्खुसंघ बनाया और उनके सभागार को "संघाराम" कहा जाने लगा था| 

संथागार और संघाराम यह दोनों शब्द गणसंघ प्रणाली से जुड़े हुए हैं| संथाल आदिवासी लोग बुद्धकालीन गणसंघों के वंशज है और खासकर शाक्यों के वंशज है| इसलिए, संथाल आदिवासी आज भी बुद्ध से संबंधित साल वृक्ष की पुजा करते हैं और वैशाख पुर्णिमा को बुद्ध जन्म की याद में हर साल "साल वृक्ष उत्सव" मनाते है| संथाल आदिवासी वर्तमान में बिहार, पश्चिम बंगाल, संथाल परगणा इन प्रदेशों में रहते हैं|

संक्षेप में यहीं है कि, संथाल आदिवासी प्राचीन बौद्ध है और शाक्यमुनि बुद्ध के शाक्य वंशज है और गणसंघ प्रणाली के आज भी वाहक है| इसलिए, बुद्धकालीन संथागार शब्द से उन्हें संथाल कहा जाता है|

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