बोधिसत्व श्रमक पुष्कलावती मैं रहकर अपने अंधे माता-पिता की सेवा करते थे I
एक दिन वे अपने अंधे माता-पिता के लिए फल लाने गए थे। तभी एक राजा जो शिकार के लिए निकले श्रमक को अनजाने में बिष-बाण मार दिए I
श्रमक बोधिसत्व मरे नहीं बल्कि उनका घाव औषधि से ठीक हो गया I
माता - पिता की सेवा करनेवाले बोधिसत्व श्रमक की स्मृति में पुष्कलावती मैं स्तूप बना था,जिसका जिक्र ह्वेनसांग अपनी यात्रा वृतांत में करते हैं I
यहीं बोधिसत्व श्रमक का इतिहास श्रवण कुमार की कथा के नाम से पुराणों में दर्ज है I
~( ह्वेनसांग के यात्रा ) यह नक्काशी चीन बौद्ध स्थल पर बना है ।