#सुई_तो_घर_के_अंदर_गिरी_लेकिन_ढूंढ_रहे_हैं_हम बाहर.
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एक बूढ़ी महिला के जीवन की प्रसिद्ध कथा है. एक शाम लोगों ने देखा कि वह घर के बाहर कुछ खोज रही है. पास पड़ोस के लोग आ गए. वे भी कहने लगे कि हम साथ दे दें, आखिर क्या खो गया ?
वृद्ध महिला ने कहा- मेरी सुई गिर गई है.
सभी लोग खोजने लगे. सूरज ढलने लगा. रात उतरने लगी. सुई जैसी छोटी चीज और रास्ता बड़ा, कहां खोजें.
एक समझदार आदमी ने कहा कि बूढ़ी मां सुई गिरी कहां है? ठीक ठीक जगह का कुछ पता हो तो शायद मिल जाए. ऐसे तो कभी नहीं मिलेगी, रास्ता बड़ा है. और अब तो रात भी उतरने लगी.
बूढ़ी महिला ने कहा- वह तो पूछो ही मत कि कहां गिरी! सुई तो घर के भीतर गिरी है.
तब तो वे सब जो खोजने में लगे हुए थे खड़े हो गए. उन्होंने कहा, हद हो गई. तेरे साथ हम भी पागल बन रहे हैं. अगर सुई घर के भीतर गिरी हैं तो यहां किसलिए खोज रही है? तेरा होश खो गया, पागल हो गई? बुढ़ापे में सठिया गई है?
बूढ़ी महिला ने कहा - नहीं! मैं वही कर रही हूं जो सारी दुनिया करती है. सुई तो घर के भीतर गिरी हैं लेकिन भीतर रोशनी नहीं है.. गरीब औरत हूं.. घर में दीया नहीं है...बाहर रोशनी थी तो मैंने सोचा बाहर ही खोजूं, जहां रोशनी है वही खोजूं.
लोग कहने लगे, यह तो हमारी समझ में आता है कि बिना रोशनी के कैसे खोजेगी लेकिन जब गिरी ही नहीं है सुई यहां, तो यहां कैसे मिलेगी.
उसने कहा - यही तो मेरी समझ में नहीं आता. तुम सबको भी मैं बाहर खोजते देखती हूं और जिसे तुम खोज रहे हो वह तो सभी के भीतर बैठा हुआ है. शायद जिस कारण से मैं सुई बाहर खोज रही हूं उसी कारण से तुम भी बाहर खोज रहे हो.
मनुष्य सुख को बाहर खोज रहा है,भटक रहा है, भाग रहा है लेकिन सुख तो स्वयं के भीतर बसा हुआ है. जरा चित्त को एकाग्र कर ध्यान से देखें तो सही. सुख की चाबी तो अपने पास ही है.
कस्तुरी नाभि बसे, मृग ढूंढे वन माही.
भवतु सब्बं मंगल..सभी प्राणी सुखी हो।
जय मूलनिवासी