#रामनवमी_उत्सव_कुछ_ओर_नहीं_बल्कि_चक्रवर्ती_सम्राट_असोक_का_जन्मोत्सव_असल_में_राम_उत्सव_हैं..

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#रामनवमी_उत्सव_कुछ_ओर_नहीं_बल्कि_चक्रवर्ती_सम्राट_असोक_का_जन्मोत्सव_असल_में_राम_उत्सव_हैं..!
“संपूर्ण विश्व में चक्रवर्ती सम्राट अशोक की जयंती चैत्र शुक्ल अष्टमी के दिन मनाईं जाती हैं| अखंड जम्बूद्वीप में सबसे महान् , शक्तिशाली और ताकतवर राजाओं में चक्रवर्ती सम्राट अशोक का स्थान प्रथम स्थान पर आता हैं| चक्रवर्ती सम्राट का शासन न सिर्फ़ जम्बूद्वीप पर था , बल्कि विश्व के कई देशों में चक्रवर्ती सम्राट अशोक का शासन था| चक्रवर्ती सम्राट अशोक के शासन काल में ज़ुल्म और अत्याचार के लिए कोई जगह नहीं थीं , उन्होंने सब को सब समान न्याय अधिकार बहाल किए थें| उनकी प्रजा अत्यंत ख़ुश थीं| क्योंकि चक्रवर्ती सम्राट अशोक पर तथागत बुद्ध के विचारधारा का प्रभाव था , और वे सच्चे और प्रामाणिक बुद्ध अनुयाई थें| चक्रवर्ती सम्राट अशोक बोधिसत्व तथा अर्हंत प्राप्ति के सभी कसौटियों पर खरे उतरे थें , इतिहास में वे पहले राजा हैं , जिन्होंने अपनी सन्तानो को धम्म को दान दिया था , सम्राट अशोक के सभी पुत्रियां एवं पुत्र उन्होंने अपने अन्तिम क्षणों तक बौद्ध धम्म के प्रचार और प्रसार का कार्य किया| आज जो संपूर्ण विश्व में तथागत बुद्ध की विचारधारा फैलीं हुईं दिखती हैं , वह चक्रवर्ती सम्राट अशोक की सबसे बड़ी देन हैं|

चक्रवर्ती सम्राट अशोक के समय उनकी प्रजा सभी प्रकार के दुःख , कष्ट एवं शोक से मुक्त थीं , क्योंकि चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने अपनी प्रजा का ख़्याल अपनी सन्तानो की तरह रखा था , उनके राज्य में हर समस्या का समाधान , सभी प्रकार के दुखों का निवारण किया जाता था| क्योंकि चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने अपने राज्य में बौद्ध विद्वान भिक्खुओं की नियुक्ति की थीं , जिनके पास सभी विषयों का ज्ञान हुआ करता था| चक्रवर्ती सम्राट अशोक धम्म अपनाने से पहले उनके सैन्यकर्मी सामान्य जनमानस से आंतें थें , किन्तु जब उन्होंने धम्म का मार्ग अपनाया , तब उनके सैन्यकर्मी कोई ओर नहीं , बल्कि साक्षात बौद्ध भिक्खु बनें थें , उनकी हाथों में न कोई हथियार (शस्त्र) थें , और न ही उन्होंने सैन्यकर्मियों की तरह पेहराव पहना था , चीवर वस्त्र पहनकर ही वे धम्म का ज्ञान बांटते थें , और यहीं उनका लक्ष्य था| चक्रवर्ती सम्राट अशोक की महानता इतनी महान् थीं कि , उन्हें इतिहास से गायब करने / उनका नामोनिशान मिटाने तथा उनका अस्तित्व समाप्त करने के लिए पौराणिक कथाकारों द्वारा सबसे ज़्यादा षडयंत्र किए गए हैं|

वर्तमान में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से लेकर महाअष्टमी तक जो नवरात्रि उत्सव मनाया जाता हैं , वह उत्सव भी बौद्ध उत्सव हैं| किन्तु चक्रवर्ती सम्राट अशोक के कालखंड के सभी उत्सवों का ब्राह्मणीकरण किया गया हैं| कुछ इतिहासकार के नुसार चैत्र शुक्ल अष्टमी के दिन चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने ख़ुद पर विजय प्राप्त किया था , और वे नव्वे दिन धम्म की राह पर चलें थें| इसलिए उन्होंने युद्ध न करने का प्रण लिया था , अर्थात् चैत्र शुक्ल अष्टमी यह चक्रवर्ती सम्राट अशोक से जुड़ीं हुईं हैं , इसलिए पौराणिक कथाकारों के द्वारा दुर्गा महाअष्टमी कथा का निर्माण किया गया हैं| चैत्र शुक्ल अष्टमी से लेकर चैत्र शुक्ल नवमी तक का संबंध चक्रवर्ती सम्राट अशोक से हैं , इसलिए पौराणिक कथाकारों ने चैत्र शुक्ल नवमी के दिन राम जन्म उत्सव मनाना शुरू किया| कुछ पौराणिक ग्रंथों के अनुसार अशोक अष्टमी के दिन हनुमानजी ने लंका में सीता जी की भेंट ली थीं , उस समय सीता जी अशोक वाटिका में अशोक वृक्ष के नीचे बैठी थीं , तभी हनुमानजी ने सीता जी को श्री राम जी का सन्देश तथा उनके कुछ आभूषण भेंट दिए थें , वह दिन अशोक अष्टमी का दिन था| पौराणिक साहित्य श्री राम जी को विष्णु का सातवां अवतार मानते हैं , किन्तु ऐतिहासिक वास्तविकता कुछ और हैं , तथागत बुद्ध को सामने रखकर ही अवतारों की कल्पना की गई हैं|

चक्रवर्ती सम्राट अशोक के कालखंड में बड़े-बड़े उद्यान , बाग़-बगीचे एवं वनों का निर्माण किया गया था| चक्रवर्ती सम्राट अशोक अपने प्रजा का ख़्याल रखने के साथ-साथ वे पशु-पक्षी-जानवर तथा पेड़-पौधों का भी ख्याल रखतें थें , इसलिए उनके राज्य में हर तरफ़ हरियाली हुआ करतीं थीं , उस समय अशोक महान् ने जिन जिन वनों का निर्माण किया था , उस वनों को अशोक वन कहने की प्रथा पड़ी थीं| अशोक महान् ने जिस वृक्ष का वृक्षारोपण सबसे अधिक किया था , उन वृक्षों को अशोक वृक्ष कहने की प्रथा पड़ी थीं| किन्तु प्रतिक्रान्ति के बाद उन सबका स्वरूप तथा इतिहास बदल दिया गया| प्राचीन कालखंड में राजा और महाराजाओं के नाम से पेड़ पौधों - फल , फूलों को नाम देने की प्रथा हुआ करतीं थीं , आज वर्तमान में जो रामफल नाम का फल दिखता हैं , वह असल में बुद्ध फल हैं| क्योंकि तथागत बुद्ध की वाणी अत्यंत मधुर वाणी थीं , उनकी वाणी में वह मीठास थीं , जिनका प्रवचन सुनने के बाद बड़े-बड़े महाराजा लोग बुद्ध विचारों के सामने नतमस्तक हो जातें थें| 

भारत के कई सारे सन्तों ने भी पेड़ पौधे , फल , फुलों पर अभंग लिखें थें , उनमें से महाराष्ट्र के प्रसिद्ध सन्त नामदेव का अभंग यहां पर प्रस्तुत करना चाहतें हैं| नामदेव कहते हैं ,  “जैसा वृक्ष नेणे मान अपमान| तैसे ते सज्जन वर्तताती| येऊनिया पूजा प्राणि जे करिती| त्याचे सुख चित्ती तया नाही| अथवा कोणी प्राणी येऊनि तोडिती| तया न म्हणती छेदू नका| निंदास्तुति सम मानिती जे संत| पूर्ण धैर्यवंत साधु ऐसे| नामा म्हणे त्यांची जरी होय भेटी| तरी जीव शिवा गांठी पडूनि जाय” संत नामदेव कहते हैं कि , एक पेड़ सम्मान और अपमान की परवाह नहीं करता हैं| अगर कोई उनकी पूजा भी करता हैं ? तो भी उन्हें खुशी नहीं होती या कोई आकर उन्हें तोड़ने के लिए घाव कर देता हैं , तों वे उन लोगों से यह भी नहीं कहते कि , “मुझे मत तोड़ो” अर्थात पेड़ को सृष्टि के हरेक जीव-जंतुओं से कोई शिक़ायत नहींं होती , कोई पेड़ों की चिंता करें या न करें पेड़ सबकी चिंता करतें हैं / सबकी रक्षा करते हैं| इस अभंग में संत नामदेव यह भी कहते हैं कि पेड़ों की भेंट होना याने साक्षात “शिव” की भेंट होना हैं| प्राचीन बौद्ध ग्रंथों में तथागत बुद्ध को ही “शिव” कहां गया हैं| उपरोक्त अभंग में तथागत बुद्ध ने जो संदेश दिए थें , वहीं संदेश सन्तों ने भी दिए थें| इसलिए प्राचीन लोग वृक्षों की बड़ी श्रद्धापूर्वक पूजा करतें थें| पेड़ों की पूजा करना यह बुद्ध कालखंड से चलीं आ रहीं प्रथा हैं , जिसका उदाहरण काफ़ी प्रसिद्ध हैं , तथागत बुद्ध को खीर दान देने वाली सुजाता पीपल वृक्ष की पुजा करतीं थीं , तथागत बुद्धा को पीपल वृक्ष के नीचे ज्ञान (बोध) प्राप्त हुआ था , इसलिए पीपल को बोधिवृक्ष भी कहते हैं|

तथागत बुद्ध और महाथेरी आम्रपाली (अम्बपली) यह समकालीन थें| आम्रपाली यह एक किसान को आम्रवन में मिलीं थीं , इसलिए उनका नाम आम्रपाली पड़ा था| इसलिए वर्तमान में जो अशोक वृक्ष हैं , वह वृक्ष चक्रवर्ती सम्राट अशोक का अत्यंत प्रिय वृक्ष रहा होगा , इसलिए उसे अशोक वृक्ष कहने की प्रथा पड़ी हैं| दुसरी अत्यंत महत्वपूर्ण बात हर चैत्र शुक्ल अष्टमी (अशोक अष्टमी) के बाद चैत्र शुक्ल नवमी (रामनवमी) अर्थात् अशोक जयंती और राम जयंती दोनों एकसाथ कैसे आतीं हैं ? कहीं प्रभु श्री राम जातक कथा के राम तों नहीं हैं ? अगर नहीं हैं ? तों यह बात साबित होती हैं कि , चक्रवर्ती सम्राट अशोक का जन्मोत्सव तथा विजयोत्सव छुपाने के लिए ही पौराणिक कथाकारों ने जानबूझकर चैत्र शुक्ल नवमी यह दिन राम जन्मोत्सव के तौर पर मनाना शुरू किया| पौराणिक कथाकार चाहें तथागत बुद्धा और चक्रवर्ती सम्राट अशोक का इतिहास छुपाने का कितना भी प्रयास करें , किन्तु ज़मीन को उकेरकर य़दि देखा जाएं ? तों मिट्टी के कण-कण से सिर्फ़ तथागत बुद्ध का इतिहास निकलता हैं| इसलिए जब तक सुरज चांद रहेगा , तब तक संपूर्ण विश्व सम्राट अशोक का अत्यंत ऋणी रहेगा , क्योंकि सम्राट अशोक महान् के कारण ही संपूर्ण विश्व को बुद्ध मिल सकें| इसलिए हम ऐसा मानते हैं कि , चक्रवर्ती सम्राट अशोक के जयंती उत्सव के अगले दिन आनेवाला रामनवमी उत्सव कुछ ओर नहीं , बल्कि चक्रवर्ती सम्राट का जन्मोत्सव ही असली राम उत्सव हैं”.
नमो बुद्धाय...

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