जिसे चाहो वह ठुकराता क्यों है?

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जिसे चाहो वह ठुकराता क्यों है?

ओशो: क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को आत्मरक्षा का अधिकार है। तुम्हारी चाहना, दूसरा भागता होगा, कि बचो भाई, यह आदमी आया! क्योंकि जंहा—जंहा लोगों ने चाहत देखी है, वहीं—वहीं बंधन पाए। और जहां—जंहा किसी के प्रेम में पड़े, वहीं फासी लगी।

तुम्हारा प्रेम है क्या? बस वैसा ही है जैसा मछलीमार मछली पकड़ने के लिए काटे पर आटा लगाता है। मछली फंस जाती है, आटे के कारण। मछलीमार का प्रयोजन मछली को आटा खिलाना नहीं है; मछलीमार का प्रयोजन—आटा खाने में काटा फंस जाए उसके मुंह में, बस। आटा तो तरकीब है। तुम पूछते हो—जिसे चाहो वह ठुकराता क्यो है;तुम्हारे चाहने में काटा है। तुम सोचते हो—आटा ही आटा है। लेकिन तुम जरा गौर से विचारो, तुमने जिसको चाहा उसका जीवन दुखमय बना दिया या नहीं? जिसने तुम्हें चाहा, उसने तुम्हारा जीवन दुखमय बना दिया या नहीं? इस प्रेम के नाम पर जो चलता है,इसमें फूल तो कभी—कभार खिलते हैं, काटे ही काटे पलते हैं। कभी सौ में एकाध मौके पर कभी फूल की झलक मिली हो तो मिली हो, निन्यानबे मौकों पर तो काटा चुभा और बुरी तरह चुभा और नासूर बना गया, और घाव छोड़ गया। तुम्हारी चाहत शुद्ध नहीं है, इसलिए लोग बचना चाहते हैं।

तुम यह मत समझो कि लोग कुछ गलत है। प्रश्न पूछने वाले की मर्जी यही है कि लोग कुछ गलत हैं, कि मैं तो इतना प्रेम का थाल सजाकर आता हूं और लोग चले, एकदम भागे—पुलिस को बुलाने लगते है—और मैं तो सिर्फ प्रेम का थाल सजाकर आया था। मैं तो कहता था, आरती उतारूंगा आपकी। आप चले क्यों? तुम्हारे प्रेम के थाल में जहर है। हर वासना में जहर है। तुम अपनी वासना को प्रार्थना बनाओ, फिर कोई नहीं भागेगा। फिर लोग तुम्हें खोजते आएंगे; तुम्हारे पास बैठकर शांति पाएंगे, तुम्हारी छाया मे विश्राम पाएंगे; तुम्हारी आंख उन पर पड़ जाएगी, वे धन्यभागी हो जाएंगे। तुम अपनी वासना को प्रार्थना बनाओ।

क्या मतलब है मेरा वासना को प्रार्थना बनाने से? वासना में जो ईर्ष्या है, उसे जाने दो; वासना में जो द्वेष है, उसे जाने दो; वासना में दूसरे के शोषण करने की जो आकांक्षा है, उसे जाने दो; वासना में दूसरे का मालिक बनने की जो वृत्ति है, उसे जाने दो; और तब तुम्हारी वासना शुद्ध होकर प्रार्थना बन जाएगी। तब तुम दोगे और उत्तर में कुछ भी न मांगोगे। तब तुम प्रेम दोगे, उत्तर में कुछ भी न मांगोगे। तब तुम्हारे प्रेम मे सिर्फ आटा होगा, काटा नहीं होगा।

ये कुछ छोटी—छोटी घटनाएं समझें।

मुल्ला नसरुद्दीन से उसके मित्र चंदूलाल ने पूछा—मुल्ला,अगर तुम शादी ही करना चाहते हो तो उसी लड़की से क्यों नहीं कर लेते जिसके साथ रोज शाम को सागर की सैर करने जाते हो? मुल्ला ने कहा—अगर मैं उसी से शादी कर लूंगा, तब मेरी शामे कैसे कटेगी?

जिससे शादी की, उससे झंझट हो जाती है;उससे सब प्रेम का नाता टूट जाता है, यह बड़े मजे की बात है। प्रेम का नाता जिससे बनाया, विवाह किया, शादी की—वह प्रेम का नाता है —मगर जिससे विवाह किया, उससे प्रेम का नाता टूट जाता है। यह बड़ी अजीब दुनिया है। यह बड़ी चमत्कार से भरी दुनिया है। प्रेम का नाता बनाते ही प्रेम टूट जाता है। क्योंकि प्रेम के नाम पर जो सब सांप—बिच्छू छिपे बैठे थे अभी तक पिटारे में, सब निकलना शुरू हो जाते है। इधर विवाह की बासुरी बजी कि उधर निकले सब सांप—बिच्छू। वे सब जो छिपे पड़े थे, कहते थे—बच्चू जरा रुको, जरा ठहरो, ठीक समय आने दो, एक बार गठबंधन हो जाने दो, एक बार छूटना मुश्किल हो जाए, फिर असलियत प्रकट होती है। तुम्हारा भी सब रोग बाहर आता है, जिससे तुमने प्रेम किया उसका भी सब रोग बाहर आता है, धीर— धीरे पति—पत्नी के बीच सिवाय रोग के आदान—प्रदान के और कुछ भी नहीं होता।

मुल्ला नसरुद्दीन से किसीने पूछा—प्रेम के विषय में आपका क्या अनुभव है? मुल्ला ने कहा—यही, दो बार निराशा। पहली बार इसलिए कि एक स्त्री ने न कहा, और दूसरी बार इसलिए कि दूसरी स्त्री ने हा कहा। हर हालत मे निराशा है। स्त्री मिल जाए तो निराशा, स्त्री न मिले तो निराशा। पुरुष मिल जाए तो निराशा, न मिले तो निराशा।

मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी उससे कह रही थी—मैं अपने नए पड़ोसियो से तंग आ चुकी हूं;हमेशा आपस में लड़ाई—झगड़ा करते रहते हैं। मुल्ला ने कहा—एक समय ऐसा भी था जब ये दोनों एक—दूसरे से बेहद प्यार करते थे। पत्नी ने पूछा—फिर क्या हुआ? मुल्ला ने कहा—फिर, फिर दोनों की शादी हो गयी।

और मुल्ला से किसी ने पूछा—तुमने कैसे उस औरत से विवाह करने का निश्चय कर लिया है? वह सुंदर हो सही, मगर तुम्हें पता है नसरुद्दीन, उसके पिछले पांचों पति पागलखाने में हैं! मुल्ला ने कहा—छोड़ो, मुझे डरवाने से रहे, शायद तुम्हें भी पता नहीं है कि बंदा पागलखाने से लौट चुका है। अब मुझे कोई पागलखाना भेज नहीं सकता।

अब तुम पूछते हो—जिसे चाहो वह ठुकराता क्यों है?पागलखाने न जाना चाहता होगा। अनुभव जीवन का आदमी को डरा देता है। बुद्धिमान होगा, जो तुम्हें ठुकरा देता है। तुम अपने प्रेम को परखो, फिर से देखो। तुम्हारे प्रेम में कुछ गलत छिपा है। तुम्हारे प्रेम के वस्त्रों में जंजीरें है। प्रेम का आवरण है,भीतर कुछ और है। तुम किसी के मालिक होना चाहते हो? तुम किसी पर कब्जा करना चाहते हो? तुम किसी को वस्तु की तरह उपयोग करना चाहते हो? कोई नहीं चाहता कि उसका उपयोग किया जाए। क्योंकि जब भी किसी का, उपयोग किया जाता है, उसका अपमान होता है। कोई नहीं चाहता कि कोई उसका मालिक हो;क्योंकि जब भी कोई किसी का मालिक हो बैठता है, तब उस व्यक्ति को अपनी आत्मा को खोना पड़ता है। कोई नहीं चाहता कि परतंत्र हो—प्रेम तो लोग चाहते हैं लेकिन परतंत्रता नहीं चाहते हैं, और तुम्हारे सब प्रेम में परतंत्रता छिपी हुई है। वह अनिवार्य शर्त है। वह ऐसी शर्त है कि लोग डरने लगे हैं, लोग भयभीत होने लगे हैं, लोग घबड़ाने लगे हैं।

तुम अपने प्रेम को शुद्ध करो। तुम उसे प्रार्थना बनाओ। तुम दो और मांगने की इच्छा मत करो। और तुम जिसे दो, उस पर कब्जा न करो। और तुम जिसे दो, उस से अपेक्षा धन्यवाद की भी मत करो। उतनी अपेक्षा भी सौदा है। और तुम दो क्योंकि तुम्हारे पास है। और मैं तुम से कहता हूं कि तुम अगर दोगे, तो हजार गुना तुम्हारे पास आएगा—मगर मागो मत। भिखमंगों के पास नहीं आता है, सम्राटों के पास आता है। जो मागते हैं उनके पास नहीं आता। तुम मांगो ही मत। एक बार यह भी तो प्रयोग करके देखो कि तुम चाहो और दो, मगर मांगो मत। नेकी कर और कुएं में डाल। पीछे लौटकर ही मत देखो,धन्यवाद की भी प्रतीक्षा मत करो। और तुम पाओगे, कितने लोग तुम्हारे निकट आते हैं! कितने लोग तुम्हारे प्रेम के लिए आतुर हैं! कितने लोग तुम्हारे पास बैठना चाहते है! कितने लोग तुम्हारी मौजूदगी से अनुगृहीत हैं!

मगर अभी तुम्हारी मौजूदगी बड़ी जहर भरी है। अभी जब भी तुम हाथ फैलाते हो, दूसरे डरने लगते हैं, क्योंकि तुम्हारे हाथ में उन्हें फासी का फंदा दिखायी पड़ता है।

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