अशोका के धम्म स्तंभों में जो घोड़ा दिखता हैं,वह कोई ओर नहीं,बल्कि राजकुमार सिद्धार्थ का परमप्रिय घोड़ा कंथक हैं

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#राजकुमार_सिद्धार्थ_और_कंथक..!
“राजकुमार सिद्धार्थ ने जब गृह त्याग करने का निर्णय लिया था| तब उन्हें कपिलवस्तु नगरी के बाहर छोड़ने के लिए उनका सारथी चन्ना और सिद्धार्थ का प्रिय घोड़ा कंथक दोनों आएं थें| सिद्धार्थ का सारथी चन्ना और घोड़ा कंथक दोनों स्वामी निष्ठा के सर्वोच्च उदाहरण हैं|

अनोमा नदी के पास पहुंचने के बाद सिद्धार्थ ने चन्ना को वापिस कपिलवस्तु नगरी जानें के लिए कहां , लेकिन वह वापिस जाने के लिए तैयार नहीं थें , सिद्धार्थ ने उन्हें नम्रतापूर्वक बीनती करने के बाद उनके सारथी और घोड़े ने राजकुमार सिद्धार्थ को विदा किया| 

दुनिया की इतिहास में पहली बार किसी जानवर की आंखों में आंसू आएं थें| जानवर सबसे वफादार और निष्ठावान होते हैं , राजकुमार सिद्धार्थ के विरह में उनका सारथी चन्ना और कंथक घोड़े के आंखों में आंसू आएं थें| इसका विस्तृत वर्णन कर्नाटक तथा अमरावती के शिल्पों में पाया जाता हैं| 

सिद्धार्थ के पैरों में गिड़गिड़ाकर कंथक रोया था| कंथक इतना महान् था कि , उसने राजकुमार सिद्धार्थ की याद में कुछ ही दिनों में अपने प्राण त्याग दिए थें| वर्तमान में जितने भी देवी-देवताओं की यात्रा में जो सम्मान घोड़ों को दिया जाता हैं , वह बुद्ध कालखंड से चलीं आ रहीं प्रथा हैं| 

घोड़ों की पुजा करना , उनकी यात्रा निकालना यह सारी प्रथाएं बौद्ध शासक राजाओं ने शुरू की थीं , चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने कंथक की सम्मान में उनकी समाधि पर स्तूप बनवाया था| अशोका के धम्म स्तंभों में जो घोड़ा दिखता हैं , वह कोई ओर नहीं , बल्कि राजकुमार सिद्धार्थ का परमप्रिय घोड़ा कंथक हैं”.
जय मूलनिवासी 

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