जोहानिसबर्ग में हुए 15वें सम्मेलन में ब्रिक्स वैश्विक समूह के विस्तार पर जो सहमति बनी है, उसके बाद इस संगठन की दिशा और दशा, दोनों में बदलाव की संभावनाएं दिखने लगी हैं??

0
         भारत की आवाज ब्रिक्स में बुलंद
जोहानिसबर्ग में हुए 15वें सम्मेलन में ब्रिक्स वैश्विक समूह के विस्तार पर जो सहमति बनी है, उसके बाद इस संगठन की दिशा और दशा, दोनों में बदलाव की संभावनाएं दिखने लगी हैं??
ये दुनिया के पांच ताकतवर देशों का समूह है, जिसेको ब्रिक्स कहा जाता है। ब्रिक्स के ही एक सदस्य देश दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में हुए 15वें सम्मेलन में समूह के विस्तार पर जो सहमति बनी है, उसके बाद इस संगठन की दिशा और दशा, दोनों में बदलाव की भरपूर संभावनाएं दिखने लगी हैं?यह एक सोच ने वाला प्रश्न है. ब्राजील, भारत, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका, पांच देशों वाले इस समूह से लगभग 40 और देश जुड़ना चाहते हैं। 14 साल पहले जब भारत, ब्राजील, चीन और रूस ने मिलकर यह समूह बनाया था, तब इसका उद्देश्य इन देशों में व्यापार और विकास को आगे बढ़ाना था। दक्षिण अफ्रीका इस समूह से साल 2010 में जुड़ा और उसके बाद से किसी भी देश को इस समूह में शामिल नहीं किया गया है।

ब्रिक्स के ताजा सम्मेलन का दूसरा बड़ा फोकस रहा सदस्य देशों का व्यापार। साझा मुद्रा की चर्चा तो एजेंडे से बाहर थी, लेकिन इसकी जगह कई स्तरों पर इन देशों की स्थानीय मुद्रा में व्यापार को सरल बनाने पर जोर दिया गया है। मसलन, चीन और ब्राजील ने इसी साल समझौता किया हैं कि दोनों अपनी मुद्रा में ही व्यापार करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में साफ कहा कि भारत ब्रिक्स के विस्तार का समर्थन करता है, लेकिन इसमें सबकी सहमति के साथ आगे बढ़ना है। इसके लिए जो पांच सुझाव दिए गए हैं, उनमें बहुत महत्वपूर्ण है कि ब्रिक्स के सदस्य देश सारी रुकावटों और बाधाओं को हटाएं, अपनी-अपनी अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा भरने के लिए साथ आएं, विकास के नए अवसर पैदा किए जाएं और भविष्य की नई दिशा तय हो। एक तरह से भारत ने ब्रिक्स के विस्तार का उद्देश्य भी साफ कर दिया है।क्या यह सम्मेलन के बाद भारत में कितना व्यापार बढ़ा?

ब्रिक्स के देशों में दुनिया की 42 फीसदी आबादी रहती है और विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का 23 फीसदी हिस्सा इन्हीं पांच देशों से आता है। बहुत दिलचस्प होगा यह देखना कि इसमें अगर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जैसे देश भी शामिल हो जाएंगे, तो इसका सामरिक और आर्थिक परिणाम क्या होगा ?¿

गौर करने वाली बात है कि भारत की तरफ से इस विस्तार पर पहले आशंका भी जताई गई थी और ब्राजील भी इसके बहुत पक्ष में नहीं था। एक आशंका हमेशा बनी रही है कि कहीं ब्रिक्स चीन केंद्रित गुट न बन जाए। युद्ध के चलते रूस पर पश्चिमी देशों के कई आर्थिक प्रतिबंध लगे हुए हैं। ऐसे में, रूस अब चीन के जूनियर पार्टनर के रूप में नजर आने लगा है। दुनिया ही नहीं, ब्रिक्स में भी रूस का पहले जैसा दबदबा नहीं रहा, जबकि चीन की आर्थिक हैसियत अभी ब्रिक्सं गुट के अन्य देशों से ज्यादा है।

एक बड़ा सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि क्या ब्रिक्स के जरिये चीन जी-7 जैसा एक समूह खड़ा करना चाहता है? क्या ब्रिक्स को पश्चिम विरोधी गुट के तौर पर देखा जाएगा? इसका मुख्य उद्देश्य क्या सिर्फ कारोबार और आर्थिक सहयोग होगा या फिर यह वैश्विक
'जियोपॉलिटिक्स' में एक नया अध्याय लिखेगा ? क्या यह वंचित या विकासशील दुनिया अर्थात ग्लोबल साउथ की मजबूती का एक जरिया बनेगा? फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट बताती है कि चीन ब्रिक्स को जी-7 के मुकाबले खड़ा करना चाहता है। ऐसे में, सबसे बड़ी दुविधा भारत के लिए होगी, अगर इसका स्वरूप नाटो विरोधी गुट जैसा बन जाता है, तो भारत के लिए विश्व स्तर पर संतुलन बनाए रखने की चुनौती बड़ी हो जाएगी।

आज यह सर्वविदित तथ्य है कि दुनिया के स्तर पर नाना प्रकार के वैश्विक समूह जटिलता बढ़ाते चले जा रहे हैं। भारत की बात करें, तो वह अभी ब्रिक्स का भी सदस्य है, पर साथ ही क्वाड में भी शामिल है। क्वाड में जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और भारत सदस्य हैं। हालांकि, इसकी स्थापना साल 2004 में उस भयंकर सुनामी के बाद की गई थी, जिसमें 14 देशों के लाखों लोग मारे गए थे। हिंद प्रशांत क्षेत्र में ऐसी बड़ी आपदाओं से एक साथ मिलकर जूझने के लिए ये देश साथ आए थे। कोविड के दौरान सितंबर 2021 में क्वाड देशों के नेता आमने-सामने मिले। इसका फोकस रहा- इन देशों में आपसी कारोबारी रिश्ते बढ़ाना, सुरक्षा और समुद्री सहयोग को मजबूत करना। साथ ही, चीन की बढ़ती आक्रामकता और चुनौती का मुकाबला करना। यह भी साफ है कि चीन ने क्वाड को हमेशा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन विरोधी गठबंधन के रूप में देखा है। भारत व अमेरिका की नौसेना जापान के साथ मिलकर जब युद्धाभ्यास करती है, तो चीन खुलकर आपत्ति जताता है। आज की वैश्विक विडंबना देखिए, फिर भी चीन और भारत ब्रिक्स में साथ रहने को विवश हैं। भारत की दुविधा यह है कि वह चीन को भी पूरी तरह से नाराज नहीं करना चाहता है, क्योंकि चीन परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह से भारत को बाहर कर सकता है। फिर भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता ने क्वाड 2.0 को नई शुरुआत दी है।

ऐसा लगता है कि भारत ब्रिक्स की ओर झुके या क्वाड की ओर, आने वाले समय में भारत के लिए संतुलन बनाने की चुनौती बनी रहेगी। अमेरिका सहित दूसरे पश्चिमी देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे हैं और रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी भारत ने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई है, जिसमें वह रूस के खिलाफ भी नहीं है और शांति के भी पक्ष में है।

हां, भारत के लिए ब्रिक्स की एक सामरिक अहमियत है। आज बंटी हुई दुनिया में भारत खुद को बीच में पाता है। ब्रिक्स एक अहम मंच है, भारत जहां रूस-चीन कोण और अमेरिका के बीच संतुलन बना सकता है। तमाम समूहों के बीच भारत को अपना आर्थिक हित भी देखना है। आर्थिक वैश्विक पटल पर ब्रिक्स के देश अंतरराष्ट्रीय लेन-देन और कारोबार में सुधार की कोशिश में हैं। भारत की मौजूदगी यहां जरूरी है।

चूंकि ब्रिक्स विकासशील देशों की आवाज बनता दिख रहा है, इसलिए उसमें भारत की आवाज बुलंद होनी चाहिए। पश्चिमी प्रभुत्व वाले वैश्विक संगठनों से दुनिया के अनेक देशों का मोहभंग हो रहा है। व्यापार के नियमों में बेईमानी, सख्त प्रतिबंध, गरीब देशों की जरूरतों की अनदेखी से भी ब्रिक्स जैसे संगठन को बल मिल रहा है। यह समूह शायद दुनिया में एक मजबूत विकल्प बनकर खड़ा हो रहा है।
यह हमारे विचार है कोई सहम हो या ना हो सकते है.
जय मूलनिवासी
@Nayak1

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)
To Top