मणिपुर की घटना RSS, BJP के द्वारा आदिवासीयो की जल,जंगल जमीन छीन ने का बडा षड्यंत है. कुंडा तोड़कर

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कुंदा तोडकर ने बताया कि मैं शेड्यूल्ड ट्राईव्स समुदाय से हूँ। मैं एक सम्मानजनक जीवन जी रही हूँ। क्योंकि मुझे शिक्षा का अधिकार मिला। 

मुझे नौकरी का अधिकार मिला। बाबासाहब अम्बेडकर ने संविधान के द्वारा आदिवासियों को जो अधिकार दिए हैं, उसका मुझे फायदा मिला। इस वजह से मैं अच्छा जीवन जी पा रही हूँ। परन्तु जब मैं अपने मुल्क के बारे में सोचती हूँ तो मेरा समाज देहातों में, जंगलों में और शहरों के झोपड़पट्टियों में दिखाई देता है। जहाँ के लोग मजदूरी करते हैं, हमाली करते हैं और महिलाएँ कॉलोनियों में बर्तन साफ करने एवं झाडू-पोंछा का काम करती हैं। जो अवसर मुझे मिले है, अगर वही अवसर मेरे समाज को भी मिला होता तो निश्चित ही वो लोग भी मेरी तरह ही जिंदगी जी रहे होते। मगर ऐसा नहीं हुआ। इसका कारण खोजने का जब मैं प्रयत्न करती हूँ, तो मुझे बाबासाहब अम्बेडकर की वह बात मुझे याद आती है कि 'जो कौम अपना इतिहास नहीं जानती है, वह कौम अपना इतिहास निर्माण नहीं कर सकती है।' जब मैं अपना इतिहास जानने की कोशिश की, तब मुझे पता चला कि हमारा समाज पैदाईशी बैकवर्ड नहीं है। हम नेचुरल बैकवर्ड नहीं हैं। हमें षड्यंत्रपूर्वक बैकवर्ड बनाया गया है। इसका कारण क्या है? हमारे समाज की यह व्यवस्था किसने बनायी है और क्यों बनायी है? जबकि हम महान सिन्धुघाटी सभ्यता के निर्माता हैं।आज से करीब ३,५०० साल पहले यूरेशिया से आये ब्राह्मणों की बनायी वर्ण-व्यवस्था को आदिवासियों ने स्वीकार नहीं किया। आदिवासी जंगलों में चले गये, भूखे-प्यासे रहे, कंद-मूल आदि खाकर जीवन यापन किये और जंगली जानवरों के शिकार भी होते रहे। मगर आदिवासियों ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया। इसीलिए सदियों से ब्राह्मणों के दिलों में नफरत और घृणा भरी पड़ी है। इसलिए षड्यंत्रपूर्वक अलग-अलग कानून बनाकर आदिवासियों को तमाम मानवीय अधिकारों से वंचित रखने के साजिश कर रहे हैं। उनको उन्हीं की जमीन से बेदखल किया जा रहा है। भारत की स्वतंत्रता आन्दोलन में आदिवासियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जमींदारों और अंग्रेजों के द्वारा आदिवासियों की जमींने छीनी जा रही थीं। आदिवासियों ने अन्याय-अत्याचार और शोषण के खिलाफ अनगिनत लड़ाईयाँ लड़ीं।सन् १८५५ में सिद्धू कान्हू के नेतृत्व में आदिवासियों ने जबरदस्त आन्दोलन किया। रू १८६५ में अमर शहीद बिरसा मुंडा ने आदिवासियों के हक और अधिकार को बचाने के लिए २५ वर्ष की उम्र में अपना जीवन कुर्बान कर दिया। ऐसे अनेक आन्दोलन हुए। जैसे-पहाड़िया विद्रोह, चुआड़ विद्रोह, गोंड आन्दोलन, कोल आन्दोलन, संथाल आन्दोलन, मुंडा आन्दोलन, हर बार आदिवासियों ने अपनी स्मिता को बचाने के लिए जान की बाजी लगा दी। मगर ब्राह्मणवादी इतिहासकारों ने आदिवासियों के गौरवशाली इतिहास को दबाकर रख दिया है। कौन हैं यह आदिवासी? स्वभाव से सीधे-साधे, भोले-भाले आदिवासी प्रकृति प्रेमी हैं। उनका व्यवहार कुदरती है। जंगलों से उनकी भावनाएँ जुड़ी हुई हैं। उनकी संस्कृति अलग है, उनकी परंपराएँ अलग हैं। आदिवासी सदियों से जंगलों में बसते चले आये हैं। जंगलों को बचाने के लिए वे लोग अपनी जान तक दे सकते हैं। आजादी के बाद सन् १६५० में भारतीय संविधान लागू हुआ। आदिवासी क्षेत्रों में ५वीं और छठीं अनुसूची लागू करने की बात कही गई। चार राज्यों में ६वीं अनुसूची और १० राज्यों में ५वीं अनुसूची लागू करने की बात हुई। संविधान की ५वीं अनुसूची के तहत तीन बातें स्पष्ट रूप से कही गई है, जिसमें आदिवासियों की सुरक्षा, संरक्षण और विकास की जिम्मेदारी भारत सरकार की है। इसमें आदिवासियों की बोली भाषा, उनकी संस्कृति, उनके रीति-रिवाज और परम्पराएँ शामिल हैं। लेकिन आज के हालात ऐसे दिखाई दे रहे हैं कि उनका संरक्षण करना, उनकी संस्कृति का यतन करना बहुत दूर की बात हो गई है बल्कि उल्टे भारत के शासक वर्ग के द्वारा आदिवासी जहाँ सदियों से रहते आ रहे हैं, उन जंगलों से उन्हें खदेड़ने का काम किया जा रहा है। आदिवासी अगर इसका विरोध करते हैं, तो भारत की सत्ता पर काबिज ब्राह्मण उन्हें नक्सलवादी घोषित करके उनका खात्मा कर रहे हैं। आजादी के बाद से लगभग ४ करोड़ आदिवासी अपनी जमीन से बेदखल और विस्थापित कर दिए गये हैं और वे आज दर-दर भटक रहे हैं।

महाराष्ट्र में त्रिपुरेश्वर और ताओबा में अभयारण्य के नाम पर आदिवासियों को उनकी जमीन से खदेड़ दिया गया है। भंडारा जिले में दोशीखोड के नाम पर आदिवासियों को उनकी जमीन से खदेड़ दिया गया है। महाराष्ट्र में मेघाट में वन विभाग के कर्मचारियों ने आदिवासियों के ऊपर इतने अत्याचार किये कि गोली तक चलाई गयी, जिसमें कई आदिवासी जान से मारे गये तथा कई लोग गंभीर रूप से जख्मी हो गये । उनको ऐसी जगह विस्थापित किया गया जहाँ, उनको पीने की पानी भी दुर्लभ थी। उनको ५वीं अनुसूची से पूरी तरह बेदखल कर दिया गया है। मध्य प्रदेश के मधवा तहसील में अल्ट्रा टेक सीमेन्ट फैक्ट्री लगाने के लिए आदिवासियों के ३२ गाँवों को उजाड़ दिया गया है। छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में वाइल्ड लाईफ के नाम पर २४४ गाँव के आदिवासियों को विस्थापित कर दिया गया। मध्य प्रदेश के डिंडोरी गाँव को बाँध बनाने के नाम पर अनेक गाँव को उजाड़कर वहाँ के लोगों को विस्थापित कर दिया गया। गुजरात में सरदार पटेल का 'स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी' ३००० करोड़ रूपये खर्च करके बनाया गया है। उसके लिए आस पास के ७२ गांवों को पूरी तरह से उजाड़कर पर्यटन केन्द्र बनाया गया है, जिसमें बड़े-बड़े गार्डन, मॉल्स और होटल्स बनाये गये हैं तथा आदिवासियों को वहाँ से खदेड़ दिया गया है।उसी तरह नेशनल कोरिडोर के तहत नई दिल्ली से मुंबई तक राष्ट्रीय राजमार्ग बनाया जा रहा है। उसके दोनों तरफ २०० मीटर जमीन अधिग्रहित किया जाने वाला है, जहाँ पर अन्तरराष्ट्रीय पूँजीपतियों एवं उद्योगपतियों के मॉल, होटल आदि बनाये जाने हैं। भूमि अधिग्रहण कानून के नाम पर आदिवासियों की जमीन जबरन छीनी जा रही है। सदियों से आदिवासी जहाँ रहते आ रहे हैं, वहाँ- जमीन के नीचे ८६ प्रकार की खनिज पदार्थ हैं, जैसे कि सोना, चाँदी, कोयला, अभ्रक, बाक्साईड आदि जिसकी कीमत अरबों-खरबों डॉलर की है। जबकि आज की तारीख में आदिवासी दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज हो गया है। इसका कारण एक ही है कि आदिवासियों में लीडरशिप का सर्वाधिक अभाव है। ।


हमारे देश में आदिवासियों के ४७ सांसद हैं। मगर आदिवासियों की दुर्दशा के ऊपर बोलने के लिए वे बिल्कुल तैयार नहीं हैं। क्योंकि उन्हें अपने समाज से ज्यादा अपनी कुर्सी प्यारी है। अगर यह समस्या राष्ट्रीय स्तर की है तो इसका समाधान करने लिए राष्ट्रीय स्तर का संगठन भी होना चाहिए। राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद यह एक मात्र राष्ट्रीय स्तर का संगठन है, जिसके साथ ६७ संगठनों का साथ-सहयोग है। मैं इस मंच से सभी आदिवासी भाईयों से आह्वान करती हूँ कि आप सभी लोग राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद के साथ जुड़ जायें और अपने भविष्य का निर्माण खुद करें। अंत में मैं इतना ही कहना चाहती हूँ कि-हे आदिवासी तेरे पास खोने के लिए क्या है? कभी जल, जंगल और जमीन तेरी थी, आज वह परायी हो गयी है।। सोना-चाँदी, धन-दौलत, मोटर-गाड़ी, बंगला-हवेली तेरे पास नहीं है। तेरी प्राकृतिक संपदा और मातृसत्ता तेरे से खो गयी है। फिर तू खोने व मरने से डरता क्यों है? अब तू पाने के लिए उठ और लड़, क्योंकि तेरे पास अब खोने के लिए अब कुछ भी शेष नहीं है।हे आदिवासी जो तेरा था, उसे पुनः प्राप्त कर, क्योंकि इस धरती का ऐश्वर्य तेरा ही इंतजार कर रहा है, क्योंकि भारत तू मूलनिवासी है-भारत का तू मूलनिवासी है।' 


!! जय मूलनिवासी !!

@Nayak1

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