दो लोग, एक स्त्री, एक पुरुष, दो जातियां-
𝐏𝐚𝐧 𝐒𝐢𝐧𝐠𝐡 𝐓𝐨𝐦𝐚𝐫: फ़िल्म बनी। सर्व समाज ने कहा की पान सिंह के साथ गलत हुआ। उसने जमीन के बदले जो बदला लिया वो सही था। पान सिंह बागी हुयें।
𝐏𝐡𝐨𝐨𝐥𝐚𝐧 𝐃𝐞𝐯𝐢: फ़िल्म बनी। एक वर्ग ने विरोध किया। कहा की फूलन देवी ने अपने बलात्कारियों से जो बदला लिया वो गलत था। फूलन एक समाज के लिए डकैत बनी।
फूलन देवी के इज्ज़त आबरु की कीमत वो नहीं है जो पान सिंह के खेत की है।
मीडिया भी पान सिंह को "बागी" लिखता है और फूलन देवी को "डकैत"।
मीडिया में ये जो शब्दो का का चयन है यही जाति है। 91% सवर्ण, पुरुषवादी मीडिया ऐसे ही महिलाओं, दलितों, पिछड़े, शोषितों की छवियाँ गढ़ते हैं।
क्योंकि मीडिया में एक अधिकार जमाए बैठे और कोई नही वो भी ब्राह्मण ही है.
एक बागी, एक डकैत।
दो लिंग, दो जातियां, दो कहानियाँ।।