कृष्ण वास्तव में बोधिसत्व कृष्ण हैं तथागत बुद्ध के धम्म का प्रचार करने वाले बौद्ध सम्राटों को और भिक्खुओं को बाद में बोधिसत्व कहा जाने लगा था| बोधगया के एक अभिलेख में यह कहा गया है कि, "तथागत बुद्ध ही हरि है

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*कृष्ण वास्तव में बोधिसत्व कृष्ण हैं।*

*तथागत बुद्ध के धम्म का प्रचार करनेवाले बौद्ध सम्राटों को और भिक्खुओं को बाद में बोधिसत्व कहा जाने लगा था| बोधगया के एक अभिलेख में यह कहा गया है कि, "तथागत बुद्ध ही हरि है"। (Asiatic society, vol. II, p. 299) कृष्ण को भी हरि कहा जाता है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि, तथागत बुद्ध को ही बाद में बोधिसत्व कृष्ण कहा गया है।*

*बुद्ध को "भगवत" भी कहा जाता था इसलिए कृष्ण के गीत को भगवत गीता कहा जाता है। तथागत बुद्ध को "धम्म सारथी" कहा जाता है, इसलिए कृष्ण को भी महाभारत युद्ध में सारथी दिखाया गया है। भगवत गीता का मूल लेखन बौद्ध भिक्षु माथेरा ने किया था, जो बौद्ध सम्राट कनिष्क के राजनीतिक सलाहकार थे ऐसा इतिहासकार सुविरा जयस्वाल ने अपनी किताब "Origin and development of Vaishnavism" में लिखा है।*

*द्वारका में तथागत बुद्ध की भव्य मुर्ति थी, जिसकी पूजा यदु (वर्तमान यादव) नागवंशी बौद्ध लोग बुद्ध की त्रिविक्रम कृष्ण के नाम से पुजा करते थे| द्वारका की तरह मथुरा भी कृष्ण का मुख्य केंद्र समझा जाता है और दोनों प्राचीन बौद्ध केंद्र है। मथुरा के उत्खनन में सभी तरह बौद्ध धर्म के टिले मिलतें है और उनके उत्खनन में सभी तरफ बौद्ध शिल्प मिले हैं।  कन्ह जातक कथा के आधार पर महाभारत में कृष्ण का वर्णन किया गया है।*

*मध्ययुगीन काल में पैदा हुए ओरिसा तथा महाराष्ट्र के कृष्णभक्त वैष्णव संतों ने तथागत बुद्ध को ही कृष्ण माना है और प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण बुद्ध ने कृष्णरुप अपनाया है लेकिन यह प्रतिकूल परिस्थितियां खत्म होने के बाद कृष्ण फिर से बुद्ध बन जाएंगे और बौद्ध धर्म का सभी तरफ प्रसार करेंगे ऐसा इन संतों का मानना था।इसको आधार देने के लिए बौद्ध वैष्णव संत रमाई पंडित ने "शून्य संहिता" ग्रंथ 7 वी सदीं में लिखा था।* 

*बौद्ध धर्म में अष्टांग मार्ग को अत्यंत महत्वपूर्ण समझा जाता है और कृष्ण अष्टमी वास्तव में बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग की याद दिलाने वाला धम्म श्रवण महिने का महत्वपूर्ण दिन है| इस दिन बौद्ध लोग धम्मचक्र को उपर लटकाकर नीचे से मानव सिढी बनाकर उसको छुते थे और धम्मचक्र को प्राप्त करने की खुशी में जश्न मनाते थे ऐसा शिल्प भरहुत बौद्ध स्तूप में है। आजकल लोग धम्मचक्र की बजाए उपर हांडी टांगकर मानव सिढी बनाकर उसे फोड देते हैं और कृष्ण जन्माष्टमी का आंनद उत्सव मनाते है। कृष्ण जन्माष्टमी भी वास्तव में बोधिसत्व कुषाण सम्राट कनिष्क (कृष्ण बोधिसत्व) का जन्मदिन है, इसलिए उसे "कृष्ण जन्माष्टमी" कहते हैं।*

*इससे स्पष्ट होता है कि, कृष्ण अष्टमी वास्तव में धम्मचक्र अष्टमी है, कृष्ण जन्माष्टमी वास्तव में सम्राट कनिष्क का जन्मदिन है और कृष्ण वास्तव में कुषाण सम्राट बोधिसत्व कृष्ण हैं।*

#जय मूलनिवासी 

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