अगले जन्म किसी ऐसे घर में लेंगे जहां खूब पढ़ने मिले ।हाथ में डिग्री लिए फोटो हो मेरी इस जन्म तो सब माटी हो गया.

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जब मेरी अम्मा एक लड़की थी तब उनके बाल जमीन छूते थे लेकिन वो बिन मां की लड़की थी । लम्बे बालों को सबसे पहले आधा करा दिया गया 
बीन मां की लड़कियां घर के सभी कामों को करने वाली और दिन रात भाग भाग कर जी हुजूरी करने वाली नौकरानी होती है

जिन लड़कियों के हिस्से मां का प्यार नहीं आया वो देस काल मुहल्ले और अपने घर के लिए भी बिचारी लड़की थी

नई आई भाभी की सहेली बन सकती थी पर दासी बनी।
पढ़ाई नहीं करवाई गई क्युकी क्या करना था पढ़कर और फिर उनके हित में कौन और क्यों सोचे

अम्मा की स्मृति उदास और उजड़े बचपन की स्मृति थी।
घर के दीवार के उस पार लड़कियों का स्कूल लगता अगर इस पार से एकाग्र होकर भी कोई कान लगाता तो पाठ याद हो जाता।

पर तबके घरों में इतने मेहनत के काम होते की इंसान हलकान हो जाए
पानी भरना घर के बाल्टी बाल्टी कपड़े धोना खाना बनाना खाना परोसना बर्तन मांजना और लगातार रिपीट मोड में यही काम

क्युकी घर में भाई भाभी किताब के शौक़ीन थे तो बहुत सारी किताबों को छूने का सुख मेरी मां के पास था।

सरोज स्मृति याद थी उन्हें 
पर गंदी कहानियों में कैसे किताब पढ़ती लड़की के हाथ से किताब छीन उसे घर काम में धकेल देते वैसा उनके साथ हमेशा हुआ

अम्मा की भाभी स्वेटर बनाने की बड़ी शौकीन थी ।तरह तरह की डिजाइन।मुहल्ले में किसी के कार्डिगन में कोई डिजाइन नया देखते भाभी काम करती लड़की को भाग कर उसके घर से डिजाइन उतारने का आदेश देती

लड़की जो मेरी मां थी लोगों के घर ऊन सलाई लिए उनसे अनुनय करती के फलाने स्वेटर से डिजाइन उतारनी है
अगर किसी रोज ऐसा होता के डिजाइन नहीं उतर पाता तो अम्मा जो चौदह साल की लड़की थी खूब मार खाती

तो मायके में इतना सुख भोगने के बाद लड़की की शादी भले घर में हो जाती है

जिस घर में माचिस तक का पता किसी को नहीं था उस घर की व्यवस्था चरमरा जाती है।भाभी के ठाठ पर नजर लग जाती और भाई के हाथ की खुजली बढ़ जाती के अब जो सब बिखर रहा उसे संभाला कैसे जाए

कितना भी कष्ट कर के अपने सुखी जीवन में आने के बाद भी लड़की कभी शिकायत नहीं करती
मायके के नाम से अधीर होती भाई भाभी की सेवा में जब तब चली जाती

दुनियां में बने इन दो घरों को लड़की खोना नहीं चाहती।
अम्मा कहती घी का लड्डू टेंढा भी अच्छा होता है

भाई के आने पर उनकी थाली पकवान से भर देती ।मुस्कराती भी।अपने सुख का बखान नहीं करती और मिले हुए दुख की चर्चा नहीं।

लड़की सबको माफ कर दे।
हम बड़े हुए तो हमारे पास तर्क थे
लड़की ही क्यों माफ करे
भाई माफी क्यू ना मागे
किताब पर बराबर हक लड़की लड़के दोनों का क्यों न हो

लड़की को ज्यादा सवाल नहीं करना चाहिए लोग द्रोही कहते और मान नहीं देते

सवाल और ज़बाब हिसाब और किताब के बीच हमारी परवरिश करती अम्मा कभी बिल्कुल नन्हीं बच्ची बन सरोज स्मृति गुनगुनाती कहती पूरा घर किताब से भरा था 

कहती किसी रोज सारा काम निपटा कर धीरे से बगल के स्कूल में जाकर बैठ गई थी तो भाई बीच क्लास से उठा ले गया

हजार कड़वी यादों के साथ अम्मा हमारे लिए लड़की से अम्मा बन गई एक किसी शाम बड़ी उदास हम सबसे बोली

अगले जन्म किसी ऐसे घर में लेंगे जहां खूब पढ़ने मिले ।हाथ में डिग्री लिए फोटो हो मेरी 

इस जन्म तो सब माटी हो गया

दो घरों के बीच तनी है रस्सी लड़की आज भी बैलेंस बनाए इसपर चल रही चलती जा रही.... Jay mulnivasi 

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