मैं इस टिकट में ये देख रहा हुं कि टिकट में ऎसा क्या लिखा है....?जिससे ये पुरी एक सीट आज की यात्रा के दौरान मेरी हो जाएगी...

0
सामने बैठे सीट पर एक अंकल फोन के टार्च से अपने टिकट को लगभग 10 बार पढ चुके थे,....
तो मैंने युं ही उत्सुकता-वश पुछ लिया कि अंकल इस टिकट में ऎसा क्या लिखा है कि इसे आप बार-बार बंद करके अंदर रख कर बाहर निकाल कर पढ रहे हैं...
अंकल शायद इसी  इंतेजार में थे कि कोई उनसे‌ पुछे कि वो टिकट में क्या पढ रहे हैं....
जबकि टिकट तो पुरा इंग्लिश में था ...
अंकल ने तुरंत‌ बताया कि बेटा...
मैं इस टिकट में ये देख रहा हुं कि टिकट में ऎसा क्या लिखा है....?
जिससे ये पुरी एक सीट आज की यात्रा के दौरान मेरी हो जाएगी...

अंकल का जवाब सुनकर मैं थोङा सा‌ मुस्कुराई और अंकल की ओर देखने लगी...
फिर अंकल ने अपने दिल की खुशी और अपने मन में चल रही सारी कहानी एक फ्लो में कह डाली और मैं एक सुध में अकंल की सारी कहानी सुनती रही ...
अंकल के चेहरे पर खुशी इस बात की थी कि ये टिकट उनके बेटे ने रिजर्व किया था जो शहर से बाहर रहता है और उसका प्रिंट इनके भतीजे ने निकलवा कर दिया था...
पुरे जीवन ट्रेन यात्रा के दौरान जनरल भीङ का नजारा लिया और आज ट्रेन में पुरी एक सीट मिल गयी थी, वो भी थर्ड-एसी वाले डिब्बे में...
उस वक्त अंकल के अंदर के भाव चिल्ला- चिल्ला कर दुनिया को बता देना चाहते थे कि, इस टिकट में क्या लिखा था और उनके बेटे ने उनके आराम के लिये जनरल में धक्के खाते सफर से बचाने के लिये ट्रेन में थर्ड-एसी वाले‌ डिब्बे का टिकट बुक किया था....
वाकयी खुशियां अनमोल होती हैं और खुश होने के लिये बहुत बङे कारण मिलने की जरुरत भी नहीं है...
तो‌ जब भी  मौका मिले धीरे से मुस्कुरा लें‌ ,क्योंकि इसका मोल अनमोल है..
ये सब देख सुन कर मैं वहीं बैठे-बैठे सभी देखती रही और अंकल एक बार फिर अपने जिओ वाले फोन की टार्च से टिकट को पढने लगे...
और
"इंतेजार"
 करने लगे स्टेशन के आने का , अपने बेटे से मिलने का ..
आज रात उन्हें‌ नींद कहां आने वाली थी...!!
जय मूलनिवासी 

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)
To Top