कभी बाल नहीं बनाती
न ही गजरे लगाती हैं,
वे टाँकती हैं कसे हुए रिश्तों से
टूटकर छितरे बटन
तोलती हैं अपने भीतर पसरी घुटन
झाड़ती हैं मुट्ठी से मायके की यादें
चखती हैं चुटकीभर भूले बिसरे वादे
डिफ्रास्ट करती हैं चिल्ड पड़ी
अनचाही रिश्तेदारियां
एयरटाईट कर सहेजती हैं
नई-नवेली जिम्मेदारियां
मन के कसमसाते कोनों में
छिड़कती हैं इग्नोर ब्रांड
इनसेक्टीसाईट
अपनी आलोचनाओं को करती हैं
प्रार्थनाओं में जस्टीफाईड.
स्त्रियां फुर्सत में ही
सबसे अधिक व्यस्त होती हैं.
दुनियादारी निभाने की तभी तो
पूरी तरह अभ्यस्त होती हैं !
#जय मूलनिवासी