दुर्गा, काली अर्थात तारा यह बोधिसत्व भी हैं, जो शाक्यसिंह बुद्ध की अनुयायी हैं, इसलिए उसे शेर (सिंह) पर सवार दिखाया जाता हैं|

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दुर्गा देवी वास्तव में बौद्धों की तारा देवी हैं और नौरात्र उत्सव शाक्त बौद्ध उत्सव हैं|

शाक्त पंथ बौद्ध धर्म का महिलाप्रधान बौद्ध पंथ है, जिसमें महिलाएं बोधिसत्व बन सकतीं है और बोधिसत्व तारा देवता उन्हें बोधिसत्व बनने में सहायता करतीं हैं| बोधिसत्व बनना मतलब दुखों से मुक्त होकर अन्य जीवों की दुखमुक्ति के लिए कार्य करना और उसके लिए उन्हें धम्ममार्ग लाना होता है| तारा देवता महिलाओं को दुखों से मुक्ति दिलाती है उनके कष्टों का तारण करतीं हैं इसलिए उसे तारणहार या तारा देवी कहते हैं| वह मनुष्यों के दुखों को दुर कर उनका जीवन खुशहाल बनातीं है इसलिए उसे दुर्गा देवी भी कहते हैं| दुर्गा मतलब दुखों से दुर गमन करने वाली देवता| उसे काली देवता भी कहा जाता है क्योंकि दुष्ट बुराईयों की वह काल है, बुराईयों को खत्म करनेवाली होने के कारण उसे काली देवता भी कहते हैं|

दुर्गा, काली अर्थात तारा यह बोधिसत्व भी हैं, जो शाक्यसिंह बुद्ध की अनुयायी हैं, इसलिए उसे शेर (सिंह) पर सवार दिखाया जाता हैं| उनके दस हाथ दस पारमिताओं के प्रतीक हैं ओर प्रत्येक हाथ में एक पारमिता के लिए एक शस्त्र है, जिसकी मदद से वह अज्ञानता को नष्ट करतीं हैं और ज्ञान प्राप्त करती हैं। उसके एक हाथ में मारा का कटा हुआ सिर होता है, जो बुद्ध के अनित्यतावाद को दर्शाता है| वह अपने पैरों के निचे महिसासक पंथ के महेश्वर शिव को रौंदती है जो देवी के मारविजय का प्रतीक है|

नौरात्र में नौ दिन महिलाएँ दुर्गा की पुजा करतीं हैं| नौ दिन पुजा करना मतलब नौ पारमिताओं से गुजरकर दसवें दिन मारा पर विजय पाकर बोधिसत्व बनना है| हर पारमिता की एक विशिष्ट देवी होतीं हैं जिसे महाविद्या कहते हैं| हर महाविद्या देवी के अलग अलग रुप रंग होतें हैं| महिलाएँ उसी रंग की साडियां पहनती है और उसी तरह का रुप धारण कर बौद्ध धर्म का यह नौरात्र उत्सव बडे़ उत्साह से मनाती है|

अर्थात, दुर्गा या काली देवी वास्तव में शाक्त बौद्ध पंथ की बोधिसत्व तारा देवी है और नौरात्र उत्सव शाक्त बौद्ध उत्सव हैं|

जय मूलनिवासी 

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