*“श्रीमान, हमें एक बीमारी है जो आपको नहीं है”*ओर *यह लाइलाज बीमारी है*

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मान्यवर कांशीराम साहब जब बार-बार एक IAS Officer के पास *फंडिंग* और बामसेफ से जोड़ने के लिए जाते तो, वो अधिकारी कन्नी काट जाता और अपने घर में नहीं होने अथवा व्यस्त होने का मैसेज अपने नौकर के द्वारा भेज देता। लेकिन मान्यवर और उनके कार्यकर्ता एक सनक (ऑब्सेशन) के साथ उसके वहाँ जरूर जाते। इसी क्रम से परेशान होकर एक दिन उस अधिकारी ने झल्लाते हुए मान्यवर को सामने आकर जवाब दिया *“क्या आप लोग अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं या आपके पास और कोई काम धाम नही है” ?*

उस अधिकारी की यह प्रतिक्रिया सुनकर मान्यवर ने बड़े ही शान्त स्वर में मुस्कुराते हुए जवाब दिया *“श्रीमान, हमें एक बीमारी है जो आपको नहीं है”*, इस बात पर उस अधिकारी ने पूछा, *क्या बीमारी है ? और यदि कोई बीमारी है,तो इलाज करवाओ।* इस पर मान्यवर ने कहा कि “श्रीमान, *यह लाइलाज बीमारी है* और यही बीमारी *गौतम बुद्ध, महात्मा फुले,शाहूजी महाराज, जगदेव प्रसाद कुशवाहा,ललई यादव,पेरियार रामासामी, बाबासाहब अंबेडकर, एवं साहू जी महराज* को भी थी और वह उनकी मृत्यु तक रही।

इस पर जिज्ञासावश उस अधिकारी ने पूछा *“कौन-सी बीमारी” ?* मान्यवर ने कहा कि “आप उस बीमारी का नाम जानकर क्या करेंगे, आप उस बीमारी का नाम सुन भी लेंगे तो भी आपको इल्म नही होगा क्योंकि आप उससे ग्रसित नहीं हैं” ? इस पर उस अधिकारी ने सन्तोषजनक मुद्रा बनाते हुए कहा “ऐसी कौन-सी बीमारी है जो मुझ में नही है, लेकिन आप बता रहे हैं उन महापुरुषों में थी ? मान्यवर ने बड़ी ही गंभीरता से जवाब दिया *“सामाजिक ईमानदारी की बीमारी”*, और साथ में कहा कि ये सभी महापुरुष जिनको ये बीमारी थी, सभी साधन-संपन्न लोग थे, इनकी कोई निजी समस्या नही थी, इनके निजी संबंध व्यवस्था के सभी रसूखदार लोगों से थे, ये कष्टप्रद सामाजिक जीवन की बजाय सुखप्रद व्यक्तिगत जीवन जी सकते थे, यहाँ तक कि गौतम बुद्ध और साहू जी महाराज तो राज व्यवस्था में राजा भी थे, आप तो फिर भी व्यवस्था में नौकर मात्र हैं, लेकिन इनकी सामाजिक ईमानदारी की बीमारी के चलते ये स्वयं खुद सुखप्रद व्यक्तिगत जीवन नहीं जी पाए”।

ये सब सुनकर वह अधिकारी अपने आप में ग्लानि महसूस करने लगा और मान्यवर को घर के अंदर आने को कहा। मान्यवर, घर के अंदर गए और फंडिंग के कूपन दिए। अधिकारी ने भी सहजता से सबसे बड़ा 50,000 (पचास हजार) का कूपन उठाया। इस पर मान्यवर ने उससे वो कूपन वापस लेते हुए मात्र 5,000 (पाँच हजार) का कूपन उसे दिया और कहा कि *“ये बीमारी एक मुश्त नहीं आनी चाहिए, क्रमवार आनी चाहिए, निरन्तर आनी चाहिए और तब तक आनी चाहिए, जब तक कि हमारा सम्पूर्ण समाज इस बीमारी से ग्रसित होकर, गैरबराबरी की सामाजिक व्यवस्था का परिवर्तन ना कर दे”।* 

इस इस सच्ची घटना को पुनः आप सभी को एक बार फिर से दोहराने का उद्देश्य यह है की, किस प्रकार हमारे महापुरुष अपने बहुजन समाज के लिए, अपने समाज की समस्याओं से लड़ने के लिए, कितने कठिनाई और कितनी परेशानियों को झेला होगा। उनके पास सब कुछ होने के बाद भी उन्होंने कभी अपने बारे में कभी नहीं सोचा, सदैव समाज के बारे में सोचा, परिणाम उनका सब कुछ समाप्त हो गया, उन्होंने कभी इस बात का भी परवाह नहीं की, कि हम क्या हैं? हमारा वजूद क्या है? हमारी औकात क्या है? फिर भी एक-एक पैसा, एक-एक इंसान को जोड़ने के लिए लोगों का दरवाजा खटखटाते रहे । पर आज बिल्कुल विपरीत परिस्थिति है, झूठी शान में इतने मगरूर हैं कि अपने समाज के लिए घर से निकलने में शर्म आती है, अपने समाज के लिए *पेबैक टू सोसाइटी फंड* लेने में शर्म आती है , समाज को *Pay back to society fund* देने के समय इस कदर *मोल भाव* करते हैं जैसे मानो उन्होंने समाज से कुछ लिया ही नहीं, मानो उनकी अपनी समस्या ही सबसे बड़ी समस्या है समाज से इन्हें कुछ लेना देना नहीं है,  इन्होंने समाज से सब कुछ लिया सामाजिक आंदोलन की वजह से *शिक्षा मिली,नौकरी मिली, प्रॉपर्टी मिली, इज्जत मिली, सारे सामाजिक आंदोलन की वजह से मिली*, इसकी इनको थोड़ी भी इल्म नहीं😡😡 
ऐसे लोगों के पास जब हमारे BAMCEF कार्यकर्ता अपनी खुद की समस्याओं को दरकिनार कर, अपनी पद-प्रतिष्ठा-गरिमा को त्याग उनसे मिलने जाते हैं, उनको जोड़ने जाते हैं, उनसे PAY BACK करवाने जाते हैं, न जाने कितने अपमान झेलते हैं अपने ही समाज के द्वारा। 
*धन्य हैं BAMCEF कार्यकर्ता, महापुरुषों के मिशन के प्रति अडिग BAMCEF कार्यकर्ताओं को दिल से SALUTE 🫡*
भारत के समस्त मुलनिवासी बहुजन समाज से अनुरोध🙏 है *RESPECT BAMCEF ACTIVIST* ये *अपने लिए नहीं मांगते, अपने लिए नहीं लड़ते*-------- गजब के *जिद्दी और स्वाभिमानी* लोग हैं ये लोग ❤️❤️

सामाजिक विश्लेषक
जय मूलनिवासी 
🙏🙏🙏🙏

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