अब यह प्रश्न उठता है कि दुर्गा की मूर्ति के लिए केवल वैश्या के ही घर की मिट्टी की जरूरत क्यों ??? इसके पीछे क्या रहस्य है ।

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👉🏻 अब यह प्रश्न उठता है कि दुर्गा की मूर्ति के लिए केवल वैश्या के ही घर की मिट्टी की जरूरत क्यों ??? इसके पीछे क्या रहस्य है !
दुर्गा की जिन मूर्तियों की स्थापना की जाती है उन में देवी द्वारा अन्य अस्त्र-शस्त्र धारण करने के इलावा महिषासुर का मर्दन (वध) भी दिखाया जाता है. महिषासुर के बारे में यह प्रचारित किया गया है कि वह बहुत बुरा असुर (दानव) था जिस का वध दुर्गा ने चामुंडा देवी के रूप में किया था. यह देखा गया है कि ब्राह्मणों ने अपने साहित्य में अपने विरोधियों का चित्रण बहुत बुरे स्वरूप में किया है. वेदों में भी आर्यों ने मूल निवासियों को असुर, दानव और दस्यु तक कहा है. दरअसल यह शासक वर्ग की अपने विरोधियों को बदनाम करने की सोची समझी रणनीति का हिस्सा होती है.
महिषासुर बंगाल के सावाताल अथवा संथाल में आदिवासियों का अत्यंत बलशाली ( मुलनिवशी ) राजा था । ब्राह्मण विदेशी इसके राज्य पर कब्जा करना चाहते थे, जिसके लिए कई बार युद्ध किया ।लेकिन ब्राह्मणों को हमेशा हार का ही मुँह देखना पड़ा

इतिहास गवाह है कि जिसे बल से नहीं जीता जा सकता है, उसे सुरा व सुंदरी के माध्यम से जीता जा सकता है ।वैसे ये ब्राह्मणों की ही शैतानी नीति है ।

कई बार हारने के बाद ब्राह्मण महिषासुर के शक्ति को समझ गये थे ।इसलिए सुरा सुंदरी वाले शैतानी नीति को अपनाया ।

ब्राह्मणों ने दुर्गा जो कि एक अत्यंत सुंदर वैश्या थी, को षड़यंत्र के तहत महिषासुर को अपने मायाजाल में फाँसकर हत्या करने के लिए भेजा ।

दुर्गा ने 8 रात सुरा पिलाते हुए, कई नाटक करते हुए महिषासुर के साथ बिताई । नौवे रात को मौका मिलते ही इस वैश्या ने महिषासुर की हत्या कर दी । इसीलिए दुर्गा की नवरात्रि मनाई जाती है ।

चूँकि दुर्गा वैश्या थी, इसीलिए वैश्या के घर से मिट्टी लाने का रिवाज आज भी है ।

मूलनिवासी राजा महिषासुर की हत्या दुर्गा ने किया जिससे ब्राह्मण उस राज्य पर कब्जा करने में कामयाब हुए ।इसलिए ब्राह्मणों ने मूलनिवासियों से उनके पूर्वजों की हत्यारिनी दुर्गा का पूजा ही करवा डाला।

भारत के मूलनिवासी लोग आँख, अक्ल और दिमाग के इतने अंधे हैं कि उसके बारे में जानने की जरूरत नहीं समझी । बिना जाने ही हत्यारों का पूजा करना शुरू कर दिया ।

किसी ने आज तक किसी भी ऐसे मनुष्य को देखा है जिसके 8 हाथ, 3 गर्दन, आधा शरीर मनुष्य का और आधा जानवर का, गर्दन हाथी का इत्यादि हो । आदिम मानव काल में भी जायेगे, तब भी ऐसा किसी मनुष्य का जिक्र नहीं मिलता है ।फिर ऐसे प्राणियों की पूजा कैसे शुरू हो गया ।

इसका मतलब साफ है कि ब्राह्मण, मूलनिवासियों के दिमाग में इतने हावी हैं कि उनके दिमाग में बुद्धि के जगह गोबर भर दिया है । जिससे कि खुद से सोचने और समझने की शक्ति चली गयी है । अंधभक्त हो गये हैं ।

कई लोग ऐसे अंधभक्त है कि जानने के बावजूद भी इसे अपने बाप दादाओं की परम्परा मानकर ढोते हैं । अरे तुम्हारे बाप दादाओं से पढ़ने लिखने का अधिकार छिन लिया गया था ।इसलिए उन्हें जो बताया गया, मानते गये । तुम्हें तो पढ़ने लिखने का अधिकार है, पढ़ लिखकर भी गोबर को लड्डू मानकर खाओगे तो पढ़ना लिखन बेकार है !

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