कुरुक्षेत्र में बड़े -बडे होर्डिंग लगे हुए थे जिन पर लिख रखा था - ' गीता महोत्सव ' .
रंगशाला के बाहर स्कूल बसें खड़ी थी और उन बसों में भरकर लाए गए बच्चे रंगशाला में जा चुके थे . - इन छोटे बच्चों को आज Science And Maths के जमाने में हम क्या सीखा रहे हैं - ?
गीता में लिखी गई पहली ' दो लाइनें ' ही मनुष्य के जीवन में विरोधाभासी हैं . पहली लाइन में लिखा गया है कि -
1 - ' कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर - ऐ इंसान .
मतलब इंसान कर्म तो करे लेकिन फल की इच्छा उसे बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए . अब कोई मुझे समझाए कि - जब किसी इंसान को अपने किए किसी भी कर्म से कोई फल ही नहीं चाहिए तो भला वो कर्म क्यों करेगा - ? इस लाइन के हिसाब से तो कोई इंसान कर्म करना तो दूर कर्म करने की सोच भी नहीं सकता .
2 - ' जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान ' .
मतलब जो जैसे कर्म करता है उसे वैसे ही फल मिलते हैं . इससे बड़ा झूठ इस दुनिया में और कोई हो ही नहीं सकता है . क्योंकि अगर यह सच है तो फिर सारा दिन यह व्यापारी लोग अपनी दुकानों और शोरूमों पर गरीब और आम इंसान को नोचते और खसोटते हैं और वो भगवान इनका कुछ भी नहीं बिगाड़ता है, उल्टे रोजाना इनके एशो-आराम के साधन बढ़ते जाते हैं और यह और इनकी पीढ़ियां धन-धान्य से परिपूर्ण सारी जिंदगी मौज में गुजारती हैं .
मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि - ' गीता ' में लिखी पहली दो लाइनें या समझो ' गीता की टैग लाइने - ' कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर ऐ इंसान, जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान ' . दोनों लाइनें ही मनुष्य के जीवन में अव्यवहारिक हैं ।