जिसको कल मरना ही है! आज मर जाये!! लेकिन संविधान नहीं बदलने देंगे!!! हजारों सालों बाद लोकतंत्र आया है, उसे खत्म नहीं होने देंगे।

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जब ब्राह्मणों को पता चला कि भारत देश में आजादी मिलने के बाद  लोकतंत्र की स्थापना होगी!  चुनाव होगा!  जो जीतेगा- वह राज करेगा; तो ब्राह्मणों के सबसे बड़े नेता (जातिवादी) बाल गंगाधर तिलक  के पैरों तले जमीन खिसकने लगी।
वह समझ गया कि ब्राह्मण तो अल्पसंख्यक हो जाएंगे और राजनीतिक रूप से अछूत; तो उसने एक तोड़ निकाला कि  ब्राह्मण धर्म को हिन्दू कहने लगा। इसके पहले  वैदिक  कहा जाता था और सभी ब्राह्मण समाज को ये बात समझा दी कि राजनीति के लिए हम हिन्दू हैं, बांकी समय ब्राह्मण !

             ये बात हमें कभी नही भूलनी है। उसने ही 1893 में गणेश- उत्सव की शुरुआत कर नया रोजगार दिया था और कहा था कि कुर्मी, काछी, तेली, तम्बोली संसद में जाके क्या  हल चलाएंगे? 
स्वराज मेंरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।ब्राह्मणों का मूल स्थान  मिश्र  है। कुछ ब्राह्मण तो आज भी अपने नाम के साथ मिश्रा  लिखते हैं। सबसे पुराने मंदिरों के अवशेष वहीं मिलते हैं। जब  टाइट्स ने इन्हें मारना शुरू किया, तो ये वहां से जान बचाकर भागे और यूरेशिया में आकर बसे। 

 इनका डीएनए पेरू जनजाति  के लोगों से मैच (टाइम्स आफ इंडिया सन् 2001) हुआ है। इनके कुछ पूर्वज  थाईलैंड  में गये, फिर वहां भी रामायण  लिखी और एक कबीला ईसा पूर्व सातवीं सदी में  हिन्दकुश पर्वत में आकर बसा। 
इसका उल्लेख इनके ग्रंथों में है। लेकिन विस्थापन का समय नहीं बताते। 
सही समय हमें चंद्रगुप्त राज का यूनानी राजदूत लेखक मेगस्थनीज़ अपनी प्रसिद्ध किताब "इंडिका" में लिखता है- शराब,गोमांस-भक्षण और यज्ञ करना इनका मुख्य कार्य था। गोमांस-भक्षण और शराब- सेवन का ब्राह्मण कितना भूखा होता है? 

इसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। पहले यज्ञ का अर्थ आग जलाकर रात्रि में शराब पीना, मांस भूनकर खाना और सामूहिक सम्भोग होता था, बाद में इसे बदल दिया गया।

                  राजा के करीब रहकर आर्थिक और राजनैतिक संरक्षण हासिल करना इनका मुख्य कार्य था। भारत बौद्ध- राष्ट्र होने के कारण इनकी हैसियत न के बराबर थी। सम्राट अशोक ने बलि- प्रथा पर रोक लगाकर ब्राह्मणों के पेट पर लात मार कर, इन्हे सामाजिक अछूत बना दिया था। 

फिर ये बलि- प्रथा छोड़कर राजा के करीब जाने के लिए ।नौकरी करने लगे। शुरू में इन्हें घोड़ो की देख- रेख का कार्य मिला। 

 कई पीढ़ियों के बाद ब्राह्मण  पुष्यमित्र शुंग (एक ताकतवर योद्धा) का जन्म हुआ। उसकी प्रतिभा को देखकर उसे सैनिक में भर्ती कर लिया गया। धीरे-धीरे वह सीढियां चढ़ने लगा और सेनापति जा बना। 
फिर वह कई शीर्ष पदाधिकारियों को लालच देकर अपने साथ मिला लिया। 

राज्योत्सव के भरी सभा में सम्राट बृहदत्त मौर्य की हत्या कर खुद को राजा घोषित किया; किन्तु प्रजा के आक्रोश और पड़ोसी राजाओं के आक्रमण का संकट देखते वह पाटलिपुत्र से भागते- भागते साकेत आया।  

 फिर वहां वैदिक संस्कृति की नींव डाली और बौद्धों का कत्ले-आम शुरू कर दिया। साकेत का नाम बदलकर अयोध्या  किया, फिर वहीं अपनी राजधानी बनाया। एक बौद्ध- भिक्षु के सर के बदले सौ स्वर्ण मुद्राएं देने की घोषणा कर दी। इसके बाद जब घाघरा नदी सर-युक्त  हुई, तो उसका सरयू नाम पड़ गया। बाल्मीकि को राजकवि बनाया और उससे रामायण लिखवाई, जिसमें खुद को राम और मौर्यवंश के दसों सम्राटों को दसानन रावण के प्रतीक रूप में रखा। उसकी कहानी में बौद्ध साहित्य की जातक कथाओं को जोड़ा। इसके बाद का इतिहास सबको पता ही है।

राष्ट्रीय सेवक संघ ने कभी भी अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन नहीं किया और न ही समाज मे व्याप्त बुराइयों, जातिवाद ऊंच-नीच को खत्म करने की कोशिस की। 

गांधी -हत्या  के बाद सामाजिक रूप से संघ अछूत हो गया। संघ खुद को उबारने के लिए 1962 के युद्ध मे सैनिकों की मदद की; जिससे प्रसन्न होकर पंडित नेहरू ने उस पर लगा प्रतिबंध हटा दिया और स्वतंत्रता दिवस पर उसे परेड करने की अनुमति दी गयी। 

संघ का कलंक मिटा, तो वह उबरने लगा। इंदिरा की इमरजेंसी का भी इन्होंने समर्थन किया।ओबीसी की बढ़ती हुई राजनैतिक ताकत को राजीव ने पहचान लिया और समाज को राष्ट्रवाद की ओर धकेलने के लिए अयोध्या में मंदिर का गेट खुलवा दिया। 

कई पार्टियों के गठबधन से बनी वी• पी• सिंह की सरकार ने जब ओबीसी को आरक्षण दिया, तो फिर भूचाल आ गया। 

भाजपा ने आडवाणी के नेतृत्व में रथ- यात्रा शुरू की, जिसकी लपेट में पूरा देश आ गया और मंदिर (विवादित) का ढांचा गिरा दिया गया। 

जिसमें ओबीसी ने बढ़चढ़ कर  हिस्सा लिया था; फलस्वरूप एक पीढ़ी बर्बाद हो गई। अब ब्राह्मणों ने राम मंदिर के रूप में अपना रोजगार स्थापित किया; लेकिन ओबीसी को कोई हिस्सेदारी और मंदिर- कमेटी (ट्रस्ट) में जगह नहीं मिली। 
सिर्फ इनका  यूज एंड थ्रो किया गया।

          आजादी के बाद जब संविधान बनाने की बात आयी थी, तो ब्राह्मणों ने कहा कि हमारे पास पुराना सबसे महान विधान (मनुस्मृति) है, तो नया बनाने की जरूरत क्या है? 

डॉ अम्बेडकर अड़ गए; क्योंकि उन्होंने विध्वंसक मनुस्मृति को पढ़कर 1927 में जला दिया था और कहा था कि शूद्रों की बर्बादी का मुख्य कारण ब्राह्मणी ग्रंथ है। 

उनके खिलाफ केस करने की हिम्मत किसी मे न हुई थी।आजादी के वक्त डॉ. अम्बेडकर से बड़ा संविधान- विद और अर्थशास्त्री  कोई नही था; तो गांधी ने संविधान बनाने का जिम्मा प्रारूप -समिति का अध्यक्ष बनाकर डा• भीमराव अम्बेडकर को दे दिया।

 दो साल,ग्यारह महीने,अठारह दिन की कड़ी मेहनत के बाद भारत का संविधान बन सका। अपनी अस्वस्थता में भी वो काम करते रहे! 

दुनियां के सभी बेहतरीन देशों के संविधान का गहराई से अध्ययन कर अच्छी बातें अपने संविधान में डालीं। 

उसकी प्रस्तावना में ही समानता, बन्धुता,धर्मनिरपेक्षता का बीज डाल दिया; जिसको बदलने की बात संघ लंबे समय से करता आ रहा है। 
जिससे भारत को हिन्दू- ब्राह्मण- यहूदी राष्ट्र बनाया जा सके।  
जिसको कल मरना ही है! आज मर जाये!! लेकिन संविधान नहीं बदलने देंगे!!! हजारों सालों बाद लोकतंत्र आया है, उसे खत्म नहीं होने देंगे।
जय मूलनिवासी 
🙏🙏🙏🙏

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