बामसेफ के संस्थापक सदस्य मा० दीना भाना जी ने अपने भाषण में कहा कि मैं अपने आपको बहुत गौरवशाली अर्थात् गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ।जब हम सब साथियों ने यह आन्दोलन शुरु किया तब मैं खुद यह नहीं सोचता था कि हमारी उस वक्त की पहल आज इतने बड़े आन्दोलन का स्वरुप धारण करेगी।

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बामसेफ के संस्थापक सदस्य मा० दीना भाना जी ने अपने भाषण में कहा कि मैं अपने आपको बहुत गौरवशाली अर्थात् गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ। आप सब लोगों को यहाँ इतने बड़े पैमाने पर प्रतिनिधि के रुप में शामिल हुए देखकर मैं बहुत गर्व महसूस कर रहा हूँ। जब हम सब साथियों ने यह आन्दोलन शुरु किया तब मैं खुद यह नहीं सोचता था कि हमारी उस वक्त की पहल आज इतने बड़े आन्दोलन का स्वरुप धारण करेगी।
विषय के संदर्भ में बताते हुए आपने कहा कि यह पूर्णसत्य है कि मूलनिवासियों को आजादी के 55 सालों में धोखेबाजी के सिवाय कुछ नहीं मिला। धोखेबाजी तो मिली ही मिली और खुले आम अत्याचार, अन्याय, पीड़ा और ठोकरों के सिवाय कुछ नहीं मिला है। इसमें वाल्मीकि जातियों के बारे में जब हम सोचते हैं तब इस बात का पता चलता है कि उन्हें तो कुछ मिला ही नहीं है। इसका मैं भी व्यक्तिगत तौर पर शिकार हूँ। मैं राजस्थान का भंगी हूँ। मैं वर्ष 1937 में दिल्ली में अपने भाई के पास चला आया। उसके बाद वर्ष 1946 को मैं महाराष्ट्र राज्य में पूना चला गया। पूना में मैं दो वर्ष मजदूरी करता रहा। वहाँ कुछ समय बाद एक सरकारी नौकरी मुझे मिली, तब मुझे दिन का पगार 10 आने मिलता था। सरकारी नौकरी में भरती होने के पहले अपने नाम के साथ साथ पहले जाति का भी नाम लिखना पड़ता था तो उस वक्त मैंने अपना नाम और जाति भंगी लिखा। मेरी जाति लोगों को पता चली। वैसे तो मैं वहाँ पर लेबर के तौर पर काम पर लग गया था मगर ऑफिस के लोग मुझसे झाडू लगवाने का कार्य करवाते थे। इसका सबसे बड़ा कारण मेरा भंगी होना था। मैंने 12 सालों तक वहाँ झाडू मारने का काम किया। मैं भी उस वक्त मजबूर और मुसीबत का मारा था। मुझे यह सहन नहीं होता था। दिल्ली में पंचकुईयाँ नामक एक क्षेत्र है वहाँ मैनें सन् 1944 में बाबा साहेब अम्बेडकर का भाषण सुना था। बाबा साहेब अम्बेडकर हमारे लोगों को कहते थे कि ज्यादा से ज्यादा पढ़ाई करो। बाबा साहेब की इन बातों से मैं बहुत प्रेरित होता था मगर मैं पढ़ नहीं सका। पूना में जाने के बाद मैंने अपनी कुछ पढ़ाई शुरु की। थोड़ी बहुत अंग्रेजी पढ़ा। उसी के बदौलत वर्ष 1967 में मुझे पूना में डिफेन्स में निरीक्षक (Inspector) के पद पर प्रमोशन मिल गया। इससे मेरी स्थिति सुधर गई थी।

अपने विभाग में मैं हमारे अपने के साथ काम करता था तब मैं अपने वर्करों का प्रतिनिधित्व करता था। उनकी परेशानियाँ सुनता था। मैं उस वक्त वर्कर्स यूनियन का अध्यक्ष भी था। सन् 1964 में हमारी एक मिटिंग में छुट्टियों का सवाल आया तब मैं भी मिटिंग में बैठा था। मेरा बॉस ब्राह्मण था। उसने मुझे मिटिंग में छुट्टियों के बारे में कुछ भी नहीं पूछा। सब लोगों ने दशहरा, दिवाली, होली, तिलक जयंती की छुट्टियाँ ले ली। जब छुट्टियों के इस प्रस्ताव को पारित करने के समय उस पर हस्ताक्षर करने के लिए रजिस्टर घूमने लगा तो मैंने उस पर हस्ताक्षर नहीं किया। मुझे कहा गया कि हस्ताक्षर करो मगर मैंने हस्ताक्षर नहीं किये तो उन्होंने मुझ पूछा कि हस्ताक्षर क्यों नहीं कर रहे हो?
मैंने जवाब दिया कि आप लोगों ने अपनी- अपनी छुट्टियाँ तो ले ली मुझे कुछ भी नहीं मिला है। तब उन्होंने कहा कि आप तो राजस्थान के हो आपको क्या चाहिए।? मैंने कहा कि मैं अब तो महाराष्ट्र का नागरिक हूँ। उन्होनें मेरे = साथ बहस करते हुए पूछा कि कहो तुम्हें क्या ■ चाहिए? मैंने कहा मुझे अपने महापुरुष डॉ० ■बाबा साहेब अम्बेडकर के जन्मदिन की अर्थात् जयंती की छुट्टी चाहिए, बाबा साहेब के अनुयायी बौद्ध हो गये इसलिए इनको बुद्ध जयंती की छुट्टी चाहिए और शिवाजी महाराज जो मराठों के बहुत बड़े राजा हुए उनकी जयंती की भी - छुट्टी चाहिए। इसी तरह से क्रिश्चन भाईयों को - और मुसलमान भाईयों को भी उनके त्योहार = की छुट्टी दी जाए। इस पर मिटिंग में हमारे बॉस ने कहा कि सारी छुट्टियाँ तो आप ही ले गये तो हम क्या करेंगे? मैंने कहा वह हम नहीं जानते, हमें हमारी छुट्टियाँ चाहिए तभी मैं इस रजिस्टर में हस्ताक्षर करूँगा। मेरे हस्ताक्षर न करने की वजह से उनके सामने बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गयी। फिर उन्होंने मुझे दबाव में लेना शुरु किया। उन्होंने मुझे कहा कि तुम ज्यादा मत बोलो, तुम्हें तो बोलने का अधिकार भी नहीं है। क्या तुम कानून जानते हो? मैंने उनको उल्टा जवाब दिया कि बोलने का अधिकार तो मनुस्मृति के जमाने में नहीं था। आज हमें बाबा साहेब अम्बेडकर ने संविधान के माध्यम से बोलने का अधिकार दिया है। उसने बाबा साहेब अम्बेडकर को गाली देना शुरु किया। मुझे कहा कि "Your Ambedkar was great raskal" उसके ऐसा कहने पर हम दोनों में झगड़ा हो गया। मुझे मिटिंग से निकाल दिया गया। मुझे वर्किंग कमिटी से भी निकाल दिया गया और मुझे चार्जशीट भी दी गई। बाद में मुझे सस्पेंड भी किया गया। उस वक्त डिपार्टमेंट से मेरी जो लड़ाई हुई उसमें डी० के० खापर्डे और कांशीराम ने मुझे बहुत मदद की। इसी लड़ाई ने आज बामसेफ का यह विशाल रुप धारण किया है।
जय मूलनिवासी

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