लेनिन इस पूरे प्रसंग में इनह्यूमन नहीं थे.’ इस मृत्युप्रसंग से ग़ालिब की याद आती है : ‘हक़ तो यूँ है कि हक़ अदा न हुआ’

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लेनिन का पढ़ना
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लेनिन की सास की तबीयत बहुत ख़राब थी. उनकी पत्नी क्रुप्सकाया मृत्यु-ओर जाती अपनी मॉं को देखते-निहारते थक चुकी थीं. उन्हें नींद आने लगी, तो पति से कहा, ‘मॉं के नज़दीक अब तुम बैठो. वह कुछ माँगें, तो मुझे आवाज़ दे देना. मैं सोने जा रही हूँ.’ 

लेनिन ने एक किताब उठाई और सास की खाट के पास बैठ पढ़ने लगे. दो घंटे बाद क्रुप्सकाया आईं. मॉं की तरफ़ देखा. क़रीब गईं. उनकी साँस बंद थी. प्राण छूट चुके थे. पैताने में बैठे लेनिन अब भी किताब में डूबे थे. क्रुप्सकाया ने उन पर मॉं का मृत्यु-दोष मढ़ते हुए कहा, ‘तुमने मुझे बताया क्यों नहीं?’ लेनिन बोले, ‘लेकिन तुम्हारी मॉं ने मुझे पुकारा ही नहीं!’ 

सर रॉबर्ट ब्रूस लॉकहार्ट ने अपनी डायरी में लेनिन की सास के मृत्यु-प्रसंग पर लिखा है, ‘लेनिन इस पूरे प्रसंग में इनह्यूमन नहीं थे.’ इस मृत्युप्रसंग से ग़ालिब की याद आती है : ‘हक़ तो यूँ है कि हक़ अदा न हुआ’. 
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जय मूलनिवासी 

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