बौद्ध काल और मनु काल में चांडाल ,भंगी, वाल्मीकि जाति कोई प्राकृतिक या देवीय प्रकोप नहीं है की एक समय के विद्वान कबीले को एक वक्त की रोटी खाने के लिए आज जैसे युग में मलमूत्र तक साफ करना पड़ रहा है इसके पीछे वैचारिक षड्यंत्र है।जय मूलनिवासी

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बौद्ध काल और मनु काल में चांडाल ,भंगी, वाल्मीकि जाति
1. सुनीत भंगी= तथागत गौतम बुद्ध बनारस में एक गांव में से गुजर रहे थे तो पंडे पुजारी लोगों ने उनके रास्ते में कांटे बिछाने का काम किया तभी बनारस के सुनीत भंगी ने तथागत के रास्ते में डाले गए कांटों को हटाने का काम किया यह तथागत द्वारा आज से ढाई हजार साल पहले पहली बार एक भंगी चांडाल को दीक्षा देने का काम किया और एक नए युग की शुरुआत की दीक्षा आने के बाद भंगी जाति जो आज देश के अंदर 29 से ज्यादा हिस्सों में टूट चुकी है उस समय का सबसे बड़ा चांडाल कबीला होता था।
2. सुपिया डोम=यह भंगी चांडाल कबीले की एक उपजाति है उस भंगी जाति से संबंधित थे जो एक महान बुद्धिस्ट विचारक ओर प्रचारक बने।

3. धर्मसैन भंगी= मगध राज्य के निवासी थे अपने समय के उच्च कोटि के बुद्धिस्ट विचारको में से एक माने जाते थे कुषाण वंश के शासक कनिष्क सम्राट द्वारा इनको सर झुकाकर अभिवादन किया।

4. सुजाता चंडालिन = जो भंगी जाति पूर्व मैं चांडाल कबीले से संबंधित थी जी हां चांडाल कबीला जो आज केरल में अपनी सभ्यताओं के साथ पूर्ण रूप से जीवित है और देश के अन्य प्रदेशों में चंडालिया गोत्र के रूप में जीवित है। जब तथागत ज्ञान प्राप्ति के लिए जंगल जंगल भटक रहे थे उस समय कई दिनों से भूखे तथागत को भोजन खिलाकर जीवंत व्यवस्था में रहने के लिए सहारा दिया और तथागत ने उन्हें दीक्षा दी।

5. प्राकृतिक चंडालिन = आनंद जो एक समय तथागत के साथ वैसे ही रहे जैसे कबीर के साथ कमाली, नानक के साथ मर्दाना, अंबेडकर के साथ नानक चंद रत्तू रहे थे उनको पानी पिलाया और बदले में आनंद ने उन्हें दीक्षा देकर धम्म में शामिल किया।

6. आजोगिया  भंगी= जो भंगी चांडाल कबीले से थे जो बुद्धिस्म के 84 सिद्ध में से एक सिद्ध माने गए।

7. चंडाला स्त्री= जो एक मजबूर महिला जिन्होंने धम्म में शरण मिली और उन्होंने महावीर पद को सुशोभित किया।

चंडाल और अस्पृश्यता का उद्भव’ नाम से एक महत्वपूर्ण लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने उन तमाम धर्मग्रंथों को रेखांकित किया है, जो  अस्पृश्यता का समर्थन करते हैं. पहले चंडाल को लेते हैं, जिनकी मुक्ति के लिए बंगाल में चाँद गुरु ने आन्दोलन चलाया था, और घृणास्पद चंडाल के स्थान पर नामशूद्र’ नामकरण किया था. आज वे अपने संघर्ष के बल पर विकास की धारा में हैं. डा. झा के अनुसार, धर्मसूत्रों में चंडाल को पशुवत माना गया है. गौतम का विधान है कि कुत्तों और चंडालों को देख लेने से अंत्येष्टि का भोजन अशुद्ध हो जाता है-श्वचंडालपतितावेक्षणे दुष्टम्. आपस्तम्ब के अनुसार चंडाल को देखने का प्रायश्चित सूर्य और चन्द्रमा को देखकर करना होगा. सांख्यायन गृह्यसूत्र विधान करता है कि चंडाल को देखने से बचना चाहिए. कौटिल्य प्रथम विधायक है, जिसने स्पर्श के लिए दंड का विधान किया है.  मनु कहता है कि चंडाल पूर्व जन्म का ब्रह्महत्यारा है, इसलिए वह उसे अस्पृश्य मानता है. वह चंडाल को रात में चलने-फिरने की भी इजाजत नहीं देता है. मनु ने चंडाल और अन्य अस्पृश्यों के प्रति ज्यादा कठोर विधान किये हैं. वह चंडाल को अपपात्र बनाने का आग्रह करता है, और कहता है कि उसको जमीन पर रखकर खाना दिया जाए. चंडाल के प्रति मनु की नफरत सबसे ज्यादा है. डा. आंबेडकर इसका कारण यह बताते हैं कि चंडाल शूद्रों की ब्राह्मण स्त्रियों से उत्पन्न संतान थे.

1 जनवरी 1818 के भीमा कोरेगांव मैं ब्राह्मणों के विरुद्ध पहली बार भंगी , महार,चांडाल एकत्रित होकर युद्ध के मैदान में उतरे उसके बाद ब्राह्मणों के नीचे से धरती खिसक गई और भंगियों के साथ अंतायत क्रूरता के साथ-साथ में इनको ब्राह्मण धर्म में शामिल कैसे किया जाए इसके लिए नए-नए नाम और इनको आर्थिक, सामाजिक दृष्टि से कैसे कुचला जाए उसके ऊपर सबसे ज्यादा काम होने लगा।

और यह कोई प्राकृतिक या देवीय प्रकोप नहीं है की एक समय के विद्वान कबीले को एक वक्त की रोटी खाने के लिए आज जैसे युग में मलमूत्र तक साफ करना पड़ रहा है इसके पीछे वैचारिक षड्यंत्र है।
जय मूलनिवासी 

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