ऐस धम्मो सनन्तनो|अगन्न सुत्त में तथागत बुद्ध अपने धम्म को "सनातन धर्म" बताते हुए यह कहते हैं -

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ऐस धम्मो सनन्तनो|

अगन्न सुत्त में तथागत बुद्ध अपने धम्म को "सनातन धर्म" बताते हुए यह कहते हैं -

"धम्मो हवे पातुर अहोसि पुब्बे|
पच्च्छा अधम्मो उदपादि लोके|
जेट्ठो च सेट्ठो च सनन्तनो च|
जेट्ठो ति पुरे निब्बत्तभावेन सेट्ठो ति पोरानको|"

धम्मपद के पद क्रमांक 5 और भिस जातक (कथा क्रमांक 488) में तथागत बुद्ध के धम्म को "चरितो पुरानो, धम्मो सनन्तनो" कहा गया है| इसी तरह, जातक कथा क्रमांक 212 में धम्म को "पोरानो धम्मो चिरकालप्पवत्तो सभावो" बताया गया है, तो जातक कथा क्रमांक 151 में धम्म को "इसा ते पोरानिया पकति" कहा गया है| 

सम्राट अशोक पर बुद्ध के धम्म का गहरा प्रभाव था, जिससे उन्हें चक्रवर्ती धम्मराजा कहा जाता हैं| इसलिए, सम्राट अशोक अपने लघुलेख में धम्म को "इसा पोरना पकिति" कहते हैं| अपने प्रशासन के स्वरुप को बताते हुए अपने स्तंभलेख 1 (Pillar Edict 1) में वे कहते हैं कि, 

"धम्मेन पालना, धम्मेन विधाने, धम्मेन सुखियना, धम्मेन गोति" अर्थात "धम्म का संरक्षण करना, धम्म विधान से शासन चलाना, धम्म के माध्यम से लोगों को सुखी बनाना और धम्म की मदद से  नैतिक मूल्यों को अबाधित रखना", यही मेरे शासन का मुख्य उद्देश्य हैं|

इस तरह सम्राट अशोक बुद्ध द्वारा बताए गए प्राचीन धम्म अर्थात सनातन प्राकृतिक धम्म को अपना आदर्श मानकर अपना साम्राज्य चला रहे थे, जिससे उन्हें आदर्श धम्मराजा अर्थात धर्मराज सम्राट अशोक कहा जाता है|

-- जय मूलनिवासी 

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