ब्राह्मणो ने हमारे सिर पर मल-मूत्र की टोकरी रखी मगर बाबा साहेब ने हमें अफसर बनाया।मा.हरीकिशन संतोषी जी
November 26, 2024
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ब्राह्मणो ने हमारे सिर पर मल-मूत्र की टोकरी रखी मगर बाबा साहेब ने हमें अफसर बनाया।मा.हरीकिशन संतोषी जी
आज भी अगर हम मूलनिवासी बहुजन समाज की सफाई कार्य करने वाली जातियों एवं अन्य अति-पिछड़ी अनुसूचित जातियों की वास्तविक स्थिति को देखें तो हमें पता चलेगा कि 55 वर्षों की आजादी में इन जातियों को कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ सिवाय गुलामी और धोखेबाजी के। हर चीज के पीछे कुछ न कुछ कारण हुआ करते हैं। आखिर इन मूलनिवासी सफाई कार्य करने वाली जातियों के साथ धोखेबाजी ही क्यों हुई या इनके हिस्सें में धोखेबाजी ही क्यों आई। मैं इस धोखेबाजी के पीछे प्रमुख दो कारण मानता हूँ। पहला यह है कि वाल्मीकि के नाम से कही जाने वाली सफाई कार्य करने वाली जातियाँ, जिन्हें चुहड़ा, भंगी, हेला, डोम, डुमार, वाल्मीकि, लालबेगी, मेहतर आदि अलग- अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से पुकारी जाती हैं। ये जातियाँ अपनी समस्याओं का समाधान सिर्फ राजनीतिक पार्टियों के मंच पर बैठकर ढूँढ़ने लगी। राजनीतिक पार्टियों के माध्यम से इनको कुछ एक-दो विधानसभाओं या एम॰ पी॰ के पद तो मिल गये लेकिन इनकी मूलभूत समस्याओं का समाधान नहीं हो पाया।
दूसरा कारण यह रहा कि ब्राह्मणवादी व्यवस्था को ये जातियाँ समझ नहीं सकीं और ब्राह्मणवादी व्यवस्था इन जातियों पर हावी रही और ये जातियाँ फूले-अम्बेडकरी विचारधारा से नहीं जुड़ सकी। मेरा मानना है कि जब तक हमारी ये जातियाँ बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर के दर्शन अर्थात् विचारधारा को नहीं अपनायेगी तब तक हमारी किसी भी समस्या कासमाधान नहीं हो सकता है। ब्राह्मणवादी लोग निरंतर यह प्रचार-प्रसार कर रहे हैं कि सफाई कार्य करने वाली छोटी-छोटी भंगी जातियों के आरक्षण के अधिकार को बड़ी-बड़ी अनुसूचित ■ जातियाँ जैसे कि चमार-महार आदि खा रही - हैं। मगर मुझे यह बात कहने में जरा भी संकोच नहीं है कि ये जातियाँ इसलिए आगे बढ़ी हैं कि इनकी जनसंख्या ज्यादा है। इन्होंने अपने परम्परागत कार्य छोड़कर दूसरे कार्य अपनाये। इनके बच्चों से होस्टल भरे पड़े हैं। इन्होंने सामाजिक आन्दोलन किये हैं तथा पुलिस की लाठियाँ खाकर डिग्रियाँ प्राप्त कर के ये लोग आगे बढ़े हैं। चमार-महार इन बड़ी अनुसूचित जातियों के ऊपर उठने का मुख्य कारण यह है कि इन्होंने राष्ट्रपिता फूले एवं बाबा साहेब डॉ० अम्बेडकर के दर्शन अर्थात् विचारधारा को अपनाया है। बाबा साहेब के दर्शन को अपनाने के बाद इन जातियों में स्वाभिमान जागा और इन्होंने शैक्षिक योग्यताएं हासिल कीं और सदैव के लिए ब्राह्मणवादी गुलामी त्याग दी। अगर हमारी इन भंगी का काम करने वाली जातियों ने भी फूले-अम्बेडकर की विचारधारा को अपनाया होता तो आज तस्वीर कुछ और होती। ब्राह्मवादी लोगों ने फूले-अम्बेडकर की विचारधारा को सुनियोजित षड्यंत्र करके इन सफाई का कार्य करने वाली जातियों तक नहीं पहुँचने दिया। क्योंकि ब्राह्मण जानते थे कि यदि ऐसा हो गया तो ये ब्राह्मणवादी शासन को कायम नहीं रहने देंगे। इससे उनकी ब्राह्मणवादी व्यवस्था को गंभीर खतरा हो गया होता। इन सफाई कार्य करने वाली जातियों को षड्यंत्रों के तहत फूले-अम्बेडकर की प्रगतिशील विचारधारा से दूर रखा गया तथा इनके बीच पतनकारी ब्राह्मणवादी विचारधारा का जमकर प्रचार-प्रसार किया गया। अज्ञानता के कारण ये जातियाँ ब्राह्मणवादी षड्यंत्रों को समझ नहीं सकीं। यही कारण है कि प्रगति के दौर में ये जातियाँ पीछे रह गयी अर्थात् ये हर क्षेत्र में पिछड़ गयी। आज भी हम पढ़-लिख कर कितने ही योग्य क्यों न हो जाए मगर हमारी पहचान सिर्फ भंगी, चुहड़ा ही रहती है। वे इससे ज्यादा हमें कुछ और मानने को तैयार नहीं हैं। इस देश में ब्राह्मणवादी व्यवस्था ने हर तरफ अपनी जाति व्यवस्था का जाल बिछा रखा है। जैसे कि- "इन हिन्दुओं की जात में जात जात में जात, ज्यों गधे की लात में लात लात में लात।"
मैं ब्राह्मणवादी व्यवस्था के तहत पला। मैं भी बचपन में अपनी माँ के साथ गाँव में सफाई कार्य करने जाया करता था। एक दिन मेरी माँ की तबीयत कुछ खराब थी। ऊपर से बारिश का मौसम हो रहा था मेरा टोकरा मल-मूत्र एवं कूड़े-करकट से लबालब भरा हुआ था। जब मैं टट्टी की उस टोकरी को अपने सिर पर रख कर चला तो रास्ते में सामने एक कुत्ता बैठा हुआ मुझे घूर रहा था। मैं धीमे-धीमे कदमों से उस टोकरे को गाँव के बाहर बने नियत स्थान पर डालने के लिए आगे बढ़ रहा था। मैं असमंजस में था कि धीरे चलूँ तो बारिश आ जायेगी और अगर तेज चलूँ तो मल-मूत्र छलक कर मेरे ऊपर गिर जायेगा। दूसरे कुत्ता भी मुझे काटने के लिए निरंतर घुर रहा था। इसी बीच बरसात भी होने लगी और कुत्ते ने मेरे पैर में झपट कर काट लिया। सारा मल-मूत्र सिर से लेकर मेरे पाँव तक मेरे शरीर पर गिर गया। मैं बेहाल हो गया। इस ब्राह्मणवादी व्यवस्था के कारण मुझे वह दिन देखना पड़ा। यह ब्राह्मणवादी व्यवस्था ही मेरी उस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार थी। मगर मैंने अम्बेडकरी विचारधारा को अपनाया, शिक्षा ग्रहण की और आज मैं उस अम्बेडकरी विचारधारा के कारण ही आपके सामने टाई और पैंट-कोट पहने खड़ा हूँ। ब्राह्मणवादी व्यवस्था में मेरे सिर पर मल-मूत्र का टोकरा था और अम्बेडकर की विचारधारा को अपनाने की वजह से आज मैं दिल्ली में अस्सिटेंट लेबर कमिश्नर (सहायक श्रम आयुक्त) हूँ। अम्बेडकरी और ब्राह्मणवादी विचारधारा में इतना फर्क है।
मुझे याद है कि मैंने इंटर तक की पढ़ाई करते समय कभी पैर में जूते नहीं पहने कभी तीन बजे से पहले मैंने खाना नहीं खाया क्योंकि जो मेरी माँ को लोग सफाई का काम करने के बाद बची-खुची रोटी देते थे उसी से हम अपने पेट की आग शांत करते थे। मगर आज कमिश्नर बत्तने तक मुझे किसी महार-चमार या जाटव ने आरक्षण में नहीं रोका। जब मैं भूख एवं अपमान भरी जिंदगी सहकर पढ़ सकता हूँ, एक कमिश्नर बन सकता हूँ तो मेरे अन्य सफाई कार्य करने वाली जाति के लोग आगे क्यों नहीं बढ़ सकते। कभी-कभी मेरा मन अंदर से रोता है, मेरा कवि मन कहता है कि- "तुम तो मात्र सबरी के झूठे बेर खाकर राम हो गये, हम सदियों से झूठन खाते रहे मगर फिर भी बदनाम हो गये।"
हम अपने आप को चाहे कितनी ही अच्छी शिक्षा क्यों न दे दें हम अपने बच्चों को चाहे कितने ही अच्छे संस्कारों से क्यों न पाले, चाहे हम कितने ही साफ सुथरे कपड़े क्यों न पहने मगर इस ब्राह्मणधर्म में अर्थात् तथाकथित हिन्दू धर्म में हमारी पहचान मात्र और मात्र भंगी की ही होती है। बाल्मीकि तो हम एक-दूसरे को खुश करने के लिए सम्बोधन में बस ऐसे ही बोलते हैं। हम लोगों की पहचान इस धर्म में मात्र भंगी है। मगर फिर भी वे हमें षड्यंत्र के तहत कहते है कि तुम हिन्दू हो। आज हमें सोचना होगा कि क्या हम हिन्दू हैं? हम मंदिरों में जाते हैं, होली- दिवाली आदि त्योहार मनाते हैं, पैसे नहीं हैं तो पैसे उधार माँग कर त्योहार मनाते हैं। उन्हीं लोगों से पैसे उधार माँग कर लाते हैं और समान खरीद कर वही पैसा पुनः उनको दे देते हैं। हर तरह से केवल उन्हें ही फायदा होता है। मगर फिर भी हम भंगी के भंगी ही रह जाते हैं। हमें सोचना और मनन करना होगा कि क्या हम हिन्दू हैं? यदि हम हिन्दू होते तो ब्राह्मणों के जो चार धाम हैं जिन्हें हिन्दुओं के तीर्थ धाम कहा जाता है, उनमें से एक भी तो हमारा होता। भारत में इतने शंकराचार्य हुए उनमें कोई हमारा भी होता।
गंगा जहाँ-जहाँ से निकलती है, गंगा जहाँ- जहाँ से बहती है, वहाँ-वहाँ छुआ-छूत सबसे अधिक होती है। ब्राह्मण धर्म के देवता जिस- जिस जगह पैदा हुए, जिस-जिस जिले या राज्य में पैदा हुए वहाँ-वहाँ छुआ-छूत सबसे ज्यादा होती है। चाहे वह मथुरा हो, काशी हो, हरिद्वार हो या अन्य कोई जगह। जहाँ-जहाँ भी ब्राह्मणों के तीर्थ हैं, वहाँ सबसे ज्यादा सफाई कार्य करने वाली जातियों व अन्य अनुसूचित जातियों से सबसे अधिक घृणा एवं नफरत होती है। महर्षि सुदर्शन को हेला, डोम, डुमार, भंगी जातियाँ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मानती हैं, उसका द्रोपदी ने उसका अपमान न किया होता, राम ने शब्भूक की हत्या न की होती। खटिक जाति के निर्मल दास का अपमान न हुआ होता, स्वामी अछूतानंद को जो कि कानपुर के थे जिन्होंने ब्राह्मणों के विरुद्ध तीव्र आंदोलन चलाया उन्हें जूताचंद न कहा गया होता, मनु व्यवस्था में वेदों को सुनने पर हमारे कानों में शीशा पिघला कर डालने का दंड नहीं लिखा होता, तुलसी ने ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी न लिखा होता अगर हम हिन्दू होते तो ये सब नहीं होता। हमारे साथ ये अमानवीय व्यवहार नहीं होता। हमारी माँ-बहनों के साथ बलात्कार नहीं होते। हमारे लोग यूँ बेबसी, लाचारी एवं गरीबी में दम नहीं तोड़ते, अगर हम हिन्दू होते। हमारे घोड़े पर बैठे दूल्हों को गोली नहीं मारी जाती। लेकिन- "कान खोल कर सुन लो साथियो मूलनिवासी अब नादान नहीं है। जलती हुई मसाल है अब किसी का पायदान नहीं है। जिस धर्म में होते हों करोड़ों देवता, उस धर्म में तुम्हारा कोई भगवान नहीं है।"
हमारे पिछड़ेपन का, हमारी समस्याओं का मुख्य कारण यह है कि हम आज भी ब्राह्मणवादी धोखेबाजी में फंसे हुए हैं। हम आज भी हिन्दू बने हुए हैं। ब्राह्मणों ने इतिहास से झलकारी बाई और मातादीन भंगी जैसे हमारे अनेकों प्रेरणादायक लोगों को लुप्त कर दिया। ब्राह्मणवादी लोग हमारे लोगों को आरक्षण के नाम पर अयोग्य कहते हैं। मगर तमाम भ्रष्टाचार,चोरी, लूट, डकैती, हेरा-फेरी, जाल-साजी एवं घोटालों में ये खुद ही शामिल रहते हैं। जो भी रेल दुर्घटानाएं होती हैं उनमें से किसी का भी ड्राईवर अनुसूचित जाति का व्यक्ति नहीं है। ब्राह्मणवादी लोग षड्यंत्रकारी कार्यों के अलावा हर जगह अयोग्य हैं। मगर खुद को स्वयं ही योग्य कहते रहते हैं। विदेशों को खुफिया कागजात बेचने वाले गद्दार ये ही लोग हैं। हमें गर्व होना चाहिए कि गद्दारी के कार्यों में लिप्त जितने भी अब तक पकड़े गये उनमें से एक भी अनुसूचित जाति का व्यक्ति नहीं है।
ब्राह्मणवादी देश एवं समाज दोनों के प्रति ही गद्दार हैं।
गाँधी जी बोलते थे कि अगर मेरा अगला जन्म हो तो भंगी जाति में ही हो। मगर गाँधी जों को मेरा सुझाव है कि हे गाँधी जी ऐसी गलती कभी मत करना, नहीं तो गाँधी जी मात्र भंगी और सिर्फ भंगी ही रह जाओगे भंगी जाति में पैदा होकर राष्ट्रपिता नहीं कहलाओगे। सिर पर मलमूत्र ढोना पड़ेगा। झूठन खानी पड़ेगी अन्यथा भूखे तड़प-तड़प कर किसी गटर में मर जाओगे।
हमें कसम खानी चाहिए कि हम अपने बच्चों से सफाई कार्य बिल्कुल नहीं करायेगे। यदि हम अपने बच्चों से यह अपमान जनक कार्य कराते हैं तो हमें बच्चे पैद ही नहीं करने चाहिए। क्योंकि मात्र गुलाम पैदा करने से कोई समस्या हल होने वाली नहीं है। मेरा अपने मूलनिवासी भंगी जाति के भाईयों से एक निवेदन है कि तुमने अपनी सामाजिक कैंसर रुपी बीमारी का बहुत से लोगों से इलाज कराया। तुम ब्राह्मणों के देवी-देवताओं के पास गये, तुम गाँधी के पास भी गये और तुम अन्य ब्राह्मणवादी नेताओं के पास भी गये। मगर तुम एक बार बाबा साहेब डॉ० अम्बेडकर के पास आओं, मेरा दावा है कि आपकी कोई भी बीमारी शेष नहीं रहेगी। आपके सभी मर्जी की एक ही दवा है जो कभी भी विफल नहीं होगी। ये वे डॉक्टर है जिनके पास विश्व की महानतम ड्रिग्रीयाँ हैं। मैं अपने मूलनिवासी सफाई कार्य करने वाली जातियों के भाइयों को सावधान करना चाहता हूँ, खबरदार करना चाहता हूँ कि- "आज भी जीवित हैं हजारों द्रोणाचार्य इस ब्राह्मणी सामाजिक व्यवस्था में, जो काट रहे है मूलनिवासी बहुजनों के अँगूठे बिन माँगे दक्षिणा में।" साथियो, हमारे बड़े-बड़े अधिकारियों के साथ भी भेद भाव होता है तो कल्पना करो कि जो मजदूर खेत की मेंढ़ पर घास काट रहा है, जो मोची सड़क के किनारे बैठ कर जूता सिल रहा है, जो व्यक्ति गली में झाडू लगाने का कार्य कर रहा है उसकी क्या औकात होगी। इस ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था ने हमें दरबदर बनाया। हमें अपंग बनाया- "कि पहले तो काट दिये हाथ-पाँव हमारे, अब हमें कहते हैं कि तुम्हें दौड़ में आगे आना होगा।" फँस गया है मेरा मूलनिवासी बहुजन समाज ब्राह्मणवादी भेड़ियों के झुंड में, अब तो हर मुख से जय भीम जय मूलनिवासी निकलना चाहिए। बाबा की कसम, बुद्धा की कसम अब जुल्म न हम सहेंगे, जिस धर्म में हमने जन्म लिया उस धर्म में नहीं मरेंगे। ईंट बनाई हमने और बनाया मंदिर फिर भी हम नहीं जा सकते हैं, उस मंदिर के अंदर। घर-घर की कसम पग-पग की कसम जिस घर में हमने जन्म लिया, उस घर में नहीं मरेंगे। पत्नी को भिक्षुक ले जाता पर इनको गम नहीं है, जिसे उल्हाना घोबी का चुभता हो वो भगवान नहीं है। शोषण के अब न तीर चलेंगे, धूप सरकती जाती है मेरे आँगन से। घर-घर की कसम पन घट की कसम इन का पानी भी नहीं पियेंगे जिस धर्म में हमने जन्म लिया उस धर्म में नहीं मरेंगे। बाबा की कसम, बुद्धा की कसम अब जुल्म न हम सहेंगे।
अंत में मैं यही कहना चाहूँगा कि इस ब्राह्मणवादी व्यवस्था से बाहर निकले बगैर सफाई कार्य करने वाली मूलनिवासी भंगी जातियों का विकास सम्भव नहीं है। इसलिए जितना जल्दी हो सके इस व्यवस्था से बाहर आना चाहिए और अपने बहुमुखी विकास के लिए फूले-अम्बेडकरी दर्शन को अपनाना चाहिए।
जय मूलनिवासी।
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Brahmins put a basket of faeces and urine on our heads but Baba Saheb made us officers. Hon. Harikishan Santoshi ji
Even today, if we look at the real condition of the cleaning castes of the native Bahujan society and other extremely backward scheduled castes, we will come to know that in 55 years of independence, these castes have not received anything except slavery and deception. There is some reason behind everything. After all, why were these native cleaning castes cheated or why did they get deception. I believe there are two main reasons behind this deception. The first is that the cleaning castes called Valmiki, who are called by different names in different states like Chuhra, Bhangi, Hela, Dom, Dumar, Valmiki, Lalbegi, Mehatar etc., started finding solutions to their problems only by sitting on the stage of political parties. Through political parties, they got one or two seats in Vidhan Sabhas or MP posts but their basic problems could not be solved.
The second reason was that these castes could not understand the Brahminical system and the Brahminical system dominated these castes and these castes could not connect with the Phule-Ambedkar ideology. I believe that till these castes do not adopt the philosophy of Dr. Ambedkar, that is, the ideology, none of our problems can be solved. Brahminical people are constantly propagating that the reservation rights of small Bhangi castes doing cleaning work are being usurped by big Scheduled Castes like Chamar-Mahar etc. But I have no hesitation in saying that these castes have progressed because their population is more. They left their traditional work and adopted other work. Hostels are filled with their children. They have done social movements and these people have progressed by getting degrees after facing the lathicharge of the police. The main reason for the rise of Chamaar-Mahar big scheduled castes is that they have adopted the philosophy of the Father of the Nation Phule and Baba Saheb Dr. Ambedkar. After adopting the philosophy of Baba Saheb, self-respect arose in these castes and they acquired educational qualifications and abandoned Brahminical slavery forever. If these castes doing the work of sweepers had also adopted the ideology of Phule-Ambedkar, then the picture would have been different today. The Brahminist people did not let the ideology of Phule-Ambedkar reach these cleaning castes through a well-planned conspiracy. Because the Brahmins knew that if this happened, they would not allow the Brahminical rule to continue. This would have posed a serious threat to their Brahminical system. Under conspiracies, these cleaning castes were kept away from the progressive ideology of Phule-Ambedkar and the decadent Brahminical ideology was propagated among them. Due to ignorance, these castes could not understand the Brahminical conspiracies. This is the reason that these castes lagged behind in the era of progress, that is, they lagged behind in every field. Even today, no matter how qualified we become by studying, our identity remains only that of Bhangi, Chuhra. They are not ready to accept us as anything more than this. In this country, the Brahminical system has spread its net of caste system everywhere. For example - "In these Hindus, there is caste within caste, like a donkey's kick within kick within kick."
I grew up under the Brahminical system. In my childhood, I also used to go with my mother to do cleaning work in the village. One day my mother was unwell. On top of that, it was the rainy season. My basket was full of excreta and urine and garbage. When I walked with that basket of excreta on my head, a dog sitting in front of me was staring at me. I was moving forward with slow steps to put that basket at the designated place outside the village. I was confused that if I walk slowly, it will rain and if I walk fast, the excreta will spill on me. The other dog was also constantly staring at me to bite me. Meanwhile, it started raining and the dog pounced on my leg and bit me. All the excreta fell on my body from head to toe. I was in a bad state. I had to see that day because of this Brahminical system. This Brahminical system was responsible for my plight. But I adopted Ambedkar's ideology, got education and today I am standing in front of you wearing a tie and pant-coat because of that Ambedkarical ideology. In the Brahminical system, I had a basket of excreta on my head and because of adopting Ambedkar's ideology, today I am the Assistant Labor Commissioner in Delhi. There is so much difference between Ambedkar's and Brahminical ideology.
I remember that while studying till Intermediate, I never wore shoes and never ate before three o'clock because we used to satisfy our hunger with the leftover rotis given to my mother after cleaning work. But till today, when I have become a commissioner, no Mahar-Chamar or Jatav has stopped me from getting reservation. When I can study and become a commissioner by enduring a life of hunger and humiliation, then why can't people of my other castes who do cleaning work move ahead. Sometimes my heart cries from within, my poetic mind says - "You became Ram just by eating the leftover berries of Sabri, we kept eating leftovers for centuries but still got defamed."
No matter how good education we give ourselves, no matter how good values we bring up our children with, no matter how clean clothes we wear, but in this Brahmin religion i.e. the so-called Hindu religion, our identity is only and only that of a sweeper. We call each other Valmiki just like that to please each other. Our identity in this religion is just a scavenger. But still they tell us as part of a conspiracy that you are a Hindu. Today we have to think whether we are Hindus? We go to temples, celebrate festivals like Holi-Diwali, if we don't have money then we celebrate festivals by borrowing money. We borrow money from the same people and buy things and give them the same money again. In every way only they benefit. But still we remain the scavenger of the scavenger. We have to think and contemplate whether we are Hindus? If we were Hindus then at least one of the four dhams of Brahmins which are called the pilgrimage dhams of Hindus would have been ours. There have been so many Shankaracharyas in India, one of them would have been ours too. Wherever the Ganga originates, wherever the Ganga flows, there is the highest untouchability. Wherever the gods of Brahmin religion were born, in whichever district or state they were born, there is most untouchability. Be it Mathura, Kashi, Haridwar or any other place. Wherever there are pilgrimage places of Brahmins, there is the most hatred and contempt for the castes doing cleaning work and other scheduled castes. Maharishi Sudarshan is worshipped by Hela, Dom, Dumar, Bhangi castes in western Uttar Pradesh. Draupadi would not have insulted him. Ram would not have killed Shabbuk. Nirmal Das of Khatik caste would not have been insulted. Swami Achhutanand who was from Kanpur and led a strong movement against Brahmins would not have been called Jootachand. Manu system would not have written that on listening to Vedas, we would not have been punished by pouring molten glass in our ears. Tulsi would not have written that drums, uneducated, Shudra, animal, woman, all these are punishable. If we were Hindus, all this would not have happened. We would not have been treated in this inhumane way. Our mothers and sisters would not have been raped. Our people would not have died in such helplessness, helplessness and poverty, if we were Hindus. Our grooms sitting on horses would not have been shot. But- "Friends, listen carefully, the natives are no longer naive. They are a burning cauldron, no longer a doormat for anyone. In a religion which has millions of deities, you do not have any God in that religion."
The main reason for our backwardness, our problems is that we are still trapped in Brahminic deception. We are still pretending to be Hindus. Brahmins have made many of our inspirational people like Jhalkari Bai and Matadin Bhangi disappear from history. Brahminic people call our people ineligible in the name of reservation. But they themselves are involved in all corruption, theft, loot, robbery, fraud, forgery and scams. In any of the railway accidents that happen, the driver is not a person from the Scheduled Caste. Brahminic people are ineligible everywhere except for conspiratorial activities. But they keep calling themselves capable. These are the same traitors who sell secret documents to foreign countries. We should be proud that none of those who have been caught till now for treason is from the scheduled caste.
Brahminists are traitors to both the country and the society.
Gandhiji used to say that if I am born again, it should be in the Bhangi caste. But my advice to Gandhiji is that Gandhiji should never make such a mistake, otherwise Gandhiji will remain only a Bhangi and only a Bhangi. You will not be called the father of the nation by being born in the Bhangi caste. You will have to carry excreta on your head. You will have to eat leftovers, otherwise you will die of hunger in some gutter.
We should take an oath that we will not make our children do cleaning work at all. If we make our children do this humiliating work, then we should not have children at all. Because no problem is going to be solved by merely producing slaves. I have a request to my brothers of the indigenous Bhangi caste that you have got your social cancer disease treated by many people. You went to the gods and goddesses of the Brahmins, you also went to Gandhi and you also went to other Brahminist leaders. But you should come to Baba Saheb Dr. Ambedkar once, I claim that none of your diseases will remain. There is only one medicine for all your desires which will never fail. These are the doctors who have the greatest degrees in the world. I want to caution my brothers of the indigenous castes doing cleaning work, I want to warn them that - "Thousands of Dronacharyas are still alive in this Brahminic social system, who are cutting the thumbs of the indigenous Bahujans without asking for Dakshina." Friends, if there is discrimination even with our senior officials, then imagine what would be the status of the labourer who is cutting grass on the boundary of the field, the cobbler who is stitching shoes sitting on the side of the road, the person who is sweeping the street. This Brahminical social system has made us homeless. Made us disabled - "First they cut off our hands and feet, now they tell us that you have to come forward in the race." My native Bahujan society is trapped in the pack of Brahminical wolves, now Jai Bhim Jai Native should come out from every mouth. I swear by Baba, I swear by Buddha, now we will not tolerate oppression, we will not die in the religion in which we were born. We made bricks and built temples, still we cannot go inside that temple. I swear by every house, I swear by every step, I will not die in the house in which I was born. A beggar takes away his wife but they are not sad, the one who is hurt by the taunts of a gobhi is not God. Now the arrows of exploitation will not be fired, the sunshine is slipping away from my courtyard. I swear on every house, I swear on every pot, I will not drink their water, I will not die in the religion in which I was born. I swear on Baba, I swear on Buddha, I will not tolerate oppression anymore.
In the end, I would like to say that without coming out of this Brahminical system, the development of the native Bhangi castes who do cleaning work is not possible. Therefore, we should come out of this system as soon as possible and adopt the Phule-Ambedkar philosophy for our multifaceted development.
JAY MULNIVASI.
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