गाँधी ने सफाई काम करने वाली जातियों को पतन को परोपकार का सिध्दांत बताकर गुलामी के गर्त में ढकेला। डी डी कल्याणी जी
November 27, 2024
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गाँधी ने सफाई काम करने वाली जातियों को पतन को परोपकार का सिध्दांत बताकर गुलामी के गर्त में ढकेला। डी डी कल्याणी जी ी
"वाल्मीकि जातियों एवं अन्य अति पिछड़ी अनुसूचित जातियों को 55 साल की आजादी में धोखेबाजी के अलावा कुछ नहीं मिला।"
यह विषय कि "वाल्मीकि जातियों एवं अन्य अति पिछड़ी अनुसूचित जातियों को 55 साल की आजादी में धोखेबाजी के अलावा कुछ नहीं मिला।" इस विषय को अगर हम ध्यान से देखें तो इससे दो मुख्य सवाल हमारे सामने आते हैं। जिनमें से एक सवाल यह है कि इन जातियों को 55 वर्ष की आजादी में धोखेबाजी के सिवाय कुछ नहीं मिला और दूसरा सवाल मैं उठा रहा हूँ कि क्या इन 55 वर्षों की आजादी से पूर्व भी इनको धोखेबाजी के अलावा कुछ और मिला ? मैं यह कहना चाहता हूँ कि इन 55 वर्षों में तो इन्हें धोखेबाजी के सिवाय कुछ मिला ही नहीं मगर इन 55 वर्षों से पूर्व भी इस ब्राह्मणवादी व्यवस्था के कारण इनको सिर्फ धोखेबाजी ही मिली।
मैं आपको इस ब्राह्मणवादी व्यवस्था के बारे में एक विशेष बात बताना चाहता हूँ कि इस ब्राह्मणवादी व्यवस्था ने मूलनिवासी बहुजनों को हजारों जातियों- उपजातियों में बाँटा है। लेकिन एक विशेष बात यह है कि जिसे हम वाल्मीकि जाति कहते हैं या पूरे भारत में सफाई का धन्धा करने वाली जातियाँ कहते हैं। जितने नाम इस सफाई का धन्धा करने वाली जाति के लोगों को दिये गये हैं उतने नाम भारत में आर्य ब्राह्मणों ने किसी भी अन्य जाति को नहीं दिये।
कहीं हेला, चूहड़ा तो कहीं भंगी आदि नाम दिये। जो गांधीवादी समाजशास्त्री हैं वे 'भंगी' शब्द का अर्थ "भाँग पीने वाला" ऐसा बताते हैं। वे लिखते हैं कि भंगी नाम इन जातियों का इसलिए पड़ा क्योंकि ये भाँग ज्यादा पीते हैं। मगर यदि हम सिन्धु सभ्यता को देखें और श्रमण संस्कृति को देखें तो कोई भी भारत का मूलनिवासी उस समय किसी प्रकार का नशा नहीं करता था। यही कारण था कि आर्य-ब्राह्मणों ने उनको असुर नाम दिया। क्योंकि 'सुर' या 'सुरा' का अर्थ है "शराब" अर्थात् जो सुरा (शराब) का सेवन नहीं करते वे 'असुर' जो करते हैं वे 'सुर'। इस प्रकार हम देखते हैं कि गांधीवादी समाजशास्त्री ब्राह्मणों ने धोखेबाजी भरी व्याख्या की। यदि भाँग पीने के कारण भंगी कहा गया तो मथुरा, हरिद्वार और काशी के पण्डे-पुजारी (ब्राह्मण) सबसे ज्यादा भाँग पीते थे और आज भी पीते हैं तो उन्हें भंगी क्यों नहीं कहा गया ?
जब अप्रैल 2002 में मूलनिवासी वाल्मीकि जाति मुक्ति सम्मेलन जालंधर (पंजाब) में हुआ तो वहाँ पर भंगी जाति के एक व्यक्ति जिनका नाम भागमल पागल है, उन्होंने उस कार्यक्रम में बताया कि एक बार बाबा साहेब डॉ० अम्बेडकर जालंधर आये तो उसने बाबा साहेब के उस कार्यक्रम में मंच संचालन किया था और उस कार्यक्रम के दौरान भागमल पागल ने बाबा साहेब से मंच पर ही एक सवाल पूछा कि क्या वाल्मीकि जाति कभी भारत की शासक जाति बनेगी या बन सकेगी? तो बाबा साहब ने जवाब दिया था कि भागमल पागल क्या वास्तव में ही पागल हो गये हो?क्योंकि लोकतंत्र में कोई भी एक जाति अकेले के दम पर शासक नहीं बन सकती है।
इसका उदाहरण स्वयं आर्य-ब्राह्मण हैं। उन्होंने (ब्राह्मणों ने) दो अन्य वणाँ क्षत्रिय और वैश्य को अपने साथ रखा तथा लोकतान्त्रिक व्यवस्था में उन्होंने हिन्दू के नाम पर लोगों को इक्ट्ठा किया और देश के हुक्मरान बन गये। उन्होंने कभी भी अकेले ब्राह्मण जाति के नाम पर शासन करने की नहीं सोची। यह बात सत्य है कि यदि भंगी जाति अन्य मूलनिवासी जातियों के साथ मिलकर अपनी आजादी की लड़ाई शुरु नहीं करती है तो वह कभी भी अपनी आजादी की लड़ाई जीत नहीं सकती।
सफाई कार्य करने वाली मूलनिवासी जातियों के साथ अगर भूतकाल में भी धोखेबाजी हुई तो इसका मुख्य कारण ब्राह्मणवादी व्यवस्था है तथा ब्राह्मणों के धर्मशास्त्र हैं। कौटिल्य (चाणक्य) हलवाई का धन्धा छोड़कर अर्थशास्त्री बना। उसने लिखा कि यदि किसी झाडू लगाने वाले अर्थात् सफाई का कार्य करने वाली जाति के व्यक्ति को झाडू या सफाई कार्य करते-करते अगर कहीं सोना या अशरफी मिल जाये तो उस सफाई कार्य करने वाले व्यक्ति को केवल उसका सोलहवां हिस्सा ही अपने पास रखना चाहिए। उस समय लोकतंत्र नहीं था और इन मूलनिवासी जातियों के साथ उस समय धोखेबाजी हो रही थी तो ये सफाई कार्य करने वाली मूलनिवासी जातियाँ ब्राह्मणवादी व्यवस्था से संघर्ष करती थीं। सन् 1894 में कर्नल सैलीमैन ने 'अवध में बगावत' अर्थात् 'अवध में गड़बड' ('Rambling in Avadh') नाम की एक किताब लिखी। अवध जिसे आज लखनऊ कहते हैं। उस समय इन सफाई कार्य करने वाली मूलनिवासी जातियों ने इतनी हड़तालें व विद्रोह किये कि पूरा लखनऊ (अवध) अस्त-व्यस्त हो गया। यही कारण था कि अंग्रेजों को इस पर किताब लिखनी पड़ी। जबकि आर्य-ब्राह्मणों के ध धर्मशास्त्रों में प्रत्यक्ष रुप से लिखा हुआ था और जो आज भी लिखा हुआ है कि मूलनिवासी जातियों पर अत्याचार करो तब भी हमारे लोगों में संघर्ष करने की हिम्मत थी और वे संघर्ष करते थे। जब सफाई कार्य करने वाली इन जातियों को चूहड़ा कहा जाता था तो ये इस शब्द का विरोध करते थे और संघर्ष करने के लिए मैदान में उतर जाते थे।सन् 1873 में दित नाम का चूहड़ा सियालकोट में ब्राह्मणवादी व्यवस्था से दुःखी होकर ईसाई बनता है। चूहड़ा शब्द यहाँ इसलिए है क्योंकि उस समय तक वाल्मीकि शब्द अस्तित्व में ही नहीं था। यह दित नाम का चूहड़ा सियालकोट में एक पादरी से जाकर कहता है कि मुझे ईसाई बनाइये। यह तब की बात है जबकि लोकतंत्र नहीं था मगर फिर भी ये सफाई कार्य करने वाली मूलनिवासी जातियाँ इस ब्राह्मणवादी गैर बराबरी की व्यवस्था से विद्रोह करती थीं, संघर्ष करती थीं।
मैं छोटा था मेरी माँ भी सफाई का कार्य करती थी, सिर पर मैला उठाती थी तो जब उस समय किसी ब्राह्मण के घर लड़का पैदा होता था तो मेरी माँ तीर-कमान लेकर जाती थी। मैंने अपनी माँ से पूछा था कि माँ, तुम ब्राह्मणों के घर ये तीर-कमान लेकर क्यों जाती हो? तो वह बताती है कि बेटा ये ब्राह्मण समझते हैं कि एक समय हम बहुत बहादुर थे। मैंने अपनी माँ को कहा कि जब ये बहादुरी का प्रतीक है तो हम इसे ब्राह्मणों को क्यों जाकर देते हैं। यह बात आजादी के बाद की है क्योंकि मैं सन् 1947 के बाद पैदा हुआ।
उस वक्त अत्याचार के खिलाफ लोग बगावत पर उतर आते थे। आज क्या स्थिति है? आज यह स्थिति है कि हमें इस बात को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनाकर उस पर चर्चा करनी पड़ रही है। अत्याचारों के विरुद्ध बगावत होती थी। आज भी उन दिनों की कई बातें मेरे स्मरण में हैं। मुझे याद है, जब मैं छोटा था उस वक्त की बात है। उस वक्त डॉ० राजदान नामक व्यक्ति अमृतसर में मेडिकल हेल्थ ऑफिसर था। हमारे पिताजी बताते थे कि वह घोड़े पर बैठा हुआ होता था और हमारे लोगों को चाबुक से मारता था। लोगों को गुस्सा आता था कि एक तो यह हमें चूहड़ा कहता है और ऊपर से चाबुक से मारता है। उसके इस व्यवहार के विरुद्ध बहुत बड़ा संघर्ष खड़ा हुआ। जैसे ही इन सफाई कर्मचारियों ने संघर्ष शुरु किया, बगावत की, उस वक्त इन सफाई कर्मचारियों के नेताओ के शरीर पर उबलता हुआ पानी डाला गया।माडी डी० कल्याणी ने उपरोक्त संदर्भ में आगे कहा कि इससे मैं क्या बताना चाहता हैं? इससे मैं यह बताना चाहता हूँ कि जब भारत में लोकतंत्र नहीं था तब हमारे लोग अपने ऊपर होने वाले अन्याय-अत्याचार के विरुद्ध लड़ने के लिए, बगावत करने के लिए खड़े होते थे जबकि लोकतंत्र नहीं था और धर्मशास्त्र हमें सरेआम गाली-गलौच करते थे। क्या आज हम अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष करने के लिए खड़े नहीं हो सकते? ऐसी हमारे अन्दर क्या कमजोरी आ गयी है? जरुरत है दुश्मन और दोस्त की सही पहचान करने की और एकजुट होकर ब्राह्मणवादी व्यवस्था के खिलाफ लड़ने की।
हमें आज ये सब जो नाम दिये गये हैं ये नाम हमने स्वयं अपनी इच्छा से या चाँव से नहीं रखे हैं। आज हमारे लोग खुश हो जाते हैं कि' अरे भाई आज हमारा नाम भंगी या चूहड़ा से बदलकर वाल्मीकि रख दिया गया है, यह तो बहुत अच्छा है।' मगर हमारे लोग यह नहीं जानते कि यह सब हमारे अंदर का विद्रोह खत्म करने की रणनीति का हिस्सा है। यह केवल भंगी चुहड़ा जातियों के बारे में ही नहीं है बल्कि यह अन्य जातियों के बारे में भी है। नाई जाति को आज राजा कहा जाता है और कुम्हार को कहा जाता है कि यह प्रजापति है। ऐसा कहने से क्या नाई के हाथों की कैंची, उस्तरा छूट गया है? ऐसा कहने से क्या कुम्हार का काम खत्म हो गया है? वह आज भी गधे पर बैठता है और गधे पर मिट्टी ढोकर मिट्टी के बर्तन बनाता है। पंजाब में भी इसी तरह से वाल्मीकि जाति के लोगों को "चौधरी साहब' कहा जाता है, यह आमतौर पर रिवाज है। ऐसा कहने वालों के दिमाग में क्या बसा हुआ है? चौधरी साहब कहने वाले के दिमाग में यही बसा हुआ है कि चौधरी का मतलब चूहड़ा है। वह इस 'चौधरी'शब्द का उच्चारण आदर से नहीं करता बल्कि उसके मन में घृणा है, वह घृणा से चौधरी कहता है। ये सभी नाम जो आज हमें दिये जा रहे हैं, ये षड्यंत्रपूर्वक दिये जा रहे हैं और घृणा से ही दिये जा रहे हैं। इसके ये कुछ उदाहरण हैं। एक तरफ ऐसा कहा जाता है कि ब्राह्मण को तीर-कमान दो तो वही दूसरी तरफ ब्राह्मण कहता है कि यदि सुबह-सुबह कोई भंगी दिख जाए तो वह शुभ होता है और यदि उसके हाथ में झाडू या सिर पर टट्टी या पैखाना से भरा टोकरा हो तो यह महाशुभ होता है। अरे, अगर भारत का मूलनिवासी झाडू ही लगाता रहे और गलियों व नालियों में ही जीवन खोता रहे तो आर्य-ब्राह्मणों के लिए तो यह शुभ है ही। एक ओर तो ब्राह्मण कहते हैं कि तुम्हारे पूर्वज राजा- महाराजा थे वहीं दूसरी ओर हम देखें और अपने पूर्वजों से उनके बारे में सुनें तो वे कहते हैं कि जब कभी कोई जानवर मर जाता था तो हमारे घरों में उस दिन इंद हो जाती थी। उस मरे जानवर को खाने के लिए चाकू-छूरे लेकर दौड़ पड़ते थे। एक तरफ गिद्ध और कुत्ते उस मरे जानवर को खा रहे हैं और दूसरी तरफ ये इन्सान पेट भरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ब्राह्मण इस हालत को देखकर खुश होता था, अपने मन में संतोष महसूस करता था कि तुमते ब्राह्मणी व्यवस्था को चुनौती दी, आर्य-ब्राह्मणों के विरुद्ध बगावत की, इसीलिए यह दण्ड भुगतो।सन् 1947 के बाद अंग्रेजों से भारत आजाद हो गया। लोगों ने सोचा कि शायद अब उनकी हालत बदल जायेगी। मगर ब्राह्मणवादी व्यवस्था में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मैं एक शादी में गया था। वहाँ एक पी०सी०एस० अधि कारी जो कि आई० ए० एस० की तैयारी में लगे हैं, उसने मुझसे पूछा कि क्या हमारा भी कुछ होगा? मैंने उससे कहा कि आप निराश क्यों हैं। हालत बदलेगी नहीं बल्कि हमको बदलनी पड़ेगी। बदलने के लिए प्रयास करने होंगे।
जब गांधी और कांग्रेस पर हमारे लोगों ने विश्वास किया तो हालात और भी बिगड़ गये। हमने 6 अक्टूबर 2002 को "खामोश दास्तान" प्रदर्शनी अमृतसर में लगाई जिसमें एक सफाई कर्मचारी झाडू लिए खड़ा है और साथ ही नीचे फोटो में बच्चा भी झाडू लिए खड़ा है। तो इस फोटो को हमारे ही कुछ लोगों ने उस इलाके में फाड़ दिया। हमारे कुछ अन्य लोगों ने उन फोटो फाड़ने वालों से पूछा कि भाई तुमने यह फोटो क्यों फाड़ा? उन्होंने जवाब दिया कि इतनी बुरी हालत का प्रदर्शन यूँ खुले आम नहीं करना चाहिए। आज गरीब अपने आप को गरीब नहीं दर्शाना चाहता। मूलनिवासी सफाई कार्य करने वाली जातियाँ लाचार और बेबस हैं। मगर अपनी लाचारी व वेबसी का इजहार करने से भी डरती हैं। उनके साथ जो धोखेबाजी हो रही है, वे उस धोखेबाजी को भी समझने को तैयार नहीं हैं। हमारी माताएं-बहनें सुबह ही घर से निकलती हैं। मैला टट्टी सिर पर ढ़ोती हैं, गलियों में भटकती हैं, मगर तब हमें ग्लानि नहीं होती, मन में विद्रोह नहीं होता, गुस्सा नहीं आता, लोगों में गैरत नहीं जागती। ऐसा क्यों है यह गंभीर चिंतन का विषय है।
गांधी कहता था कि अगर मेरा अगला जन्म हो तो वह भंगी जाति में हो। ऐसा कहकर गांधी भंगी जाति के लोगों को एक पतनकारी एवं दुष्टता भरा संदेश देना चाहता था कि तुम जो कर रहे हो वह घृणा का कार्य नहीं है बल्कि परोपकार का कार्य है। बाबा साहेब ने गांधी के इस परोपकारी सिद्धान्त को चुनौती दी और कहा कि यदि सफाई कार्य परोपकार का कार्य है तो यह कार्य अगड़ी-ब्राह्मणी जातियों को करना चाहिए। इससे परोपकार भी हो जायेगा, पैसे भी मिलेंगे, रोटी भी मिलेगी। गांध गी ने मीठी-मीठी बातें करके सफाई कार्य करने की सलाह दी तथा आने वाली पीढ़ियों को भी परोपकार का सिद्धान्त बताकर गुलामी के अन्ध धेरे में धकेल दिया। गांधी की वजह से ही भंगी जातियाँ ज्यादा गुलाम हुई।बिहार का 'बिन्देश्वरी पाठक' नाम का ब्राह्मण लेख लिखता है कि बाबा साहेब अम्बेडकर ने सफाई कार्य करने वाली जातियों के लिए कुछ नहीं किया। इस पाठक ने शुलभ शौचालय के नाम से पूरे भारत में टट्टी की इन्डस्ट्री खड़ी कर दी। बिन्देश्वरी पाठक लिखता है कि मैला उठाने की प्रथा खत्म हो गई है। मगर वास्तविकता कुछ और ही है। नेशनल हयूमैन राईट्स कमिशन भी हमें गुमराह कर रहा है। देश में सीवर सिस्टम को शुरु हुए 120 वर्ष हो गये हैं और यह अब तक केवल 232 शहरों तक ही पहुँच पाया है यानी कि 120 वर्ष में मात्र 232 शहर। यदि इसी स्पीड से यह सीवर सिस्टम लागू हुआ तो पूरे देश में इसको लाने के लिए लगभग 2400 साल लगेंगे। शहरों में 1 करोड़ 15 लाख लैट्रिन हैं जो सीवर सिस्टम से जुड़ी नहीं हैं। गाँव का तो जिक्र ही करना व्यर्थ है। उनकी पहुँच तो इससे काफी दूर है। इस सिस्टम को लागू करने पर मात्र 15 हजार करोड़ रु० का खर्च है। यह बहुत ज्यादा नहीं है मगर वे ऐसा करना ही नहीं चाहते। सरिता पत्रिका में यह पूरा सर्वेक्षण दिया गया है और पूरी धोखेबाजी का ब्यौरा दिया है। आजादी से पहले सफाई कर्मचारियों की रेगूलर सीधी भर्ती की जाती थी, उनको पूरा वेतन मिलता था। मगर अब मोहल्ला सुधार कमेटी बनी हुई है और 1200 रुपये पर एक सफाई सेवक को रखा जाता है और किसी भी सफाई कर्मचारी के बच्चे की फीस माफ नहीं हो सकती। किस तरह से वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकता है? ये खुली गुलामी लादी जा रही है, धोखेबाजी हो रही है। हमें इस गुलामी व धोखेबाजी का एहसास होना चाहिए तभी हम इसके समाधान के लिए आगे कदम बढ़ा सकते हैं। बिन्देश्वरी पाठक कहता है कि मैंने सरकार को पत्र लिखा है कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भंगी जाति के लोगों के साथ बैठकर एक दिन रोटी खानी चाहिए। इससे इनकी इज्जत बढ़ेगी। बिन्देश्वरी पाठक कहता है कि यह दुःख की बात है कि मुझे ऐसी प्रार्थना किए 5 वर्ष हो गये हैं मगर न तो प्रधानमंत्री ने उत्तर दिया है और न ही राष्ट्रपति ने।
यदि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री एक बार हम भंगी जाति के लोगों के घर आकर रोटी खा लेंगे तो क्या हमारी हालत बदल जायेगी? क्या हमारी इज्जत बढ़ जायेगी? वास्तव में कुछ भी नहीं बदलेगा। अगर भगवान भी आकर इनके घर में रोटी खायेगा तो उसे भी अछूत कहा जायेगा। वाल्मीकि जिसको कि हमारे लोग गुरु मानते हैं जो कि ब्राह्मण था, वह भी अछूत हो गया। गांधी अगर अछूतों में पैदा होता तो किसी गंदी नाली में ही पड़ा पड़ा दम तोड़ देता।
बामसेफ के प्रचार का असर न हो इसके विरुद्ध भी कार्य चल रहा है। पंजाब में विधानसभा के लिए चुनाव हुआ, हमारे क्षेत्र में दो उम्मीदवार खड़े थे एक क्षत्रिय था, एक ब्राह्मण। हमारी एक महिला ने कहा कि मेरी यह दृटी की टोकरी है जो इसको अपने सिर पर उठा लेगा मैं उसको ही वोट दे दूँगी। ब्राह्मण ने झट से वह टोकरी अपने सिर पर उठा ली और वह औरत इतनी सी बात से खुश हो गयी। वह यह नहीं समझ सकी कि ब्राह्मण कितने शातिर हैं। वे देश में अपने शासन को बनाये रखने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। घटिया से घटिया हथकंडें वे अपना सकते हैं। जिसने सिर पर टट्टी की टोकरी उठाई वह ब्राह्मण ही रहा और न केवल ब्राह्मण रहा बल्कि एम०एल०ए० बना, फिर मंत्री बना। मगर हमारी उस भंगी औरत की जीवन- शैली में कोई परिवर्तन नहीं आया।
आज से सात साल पहले पंजाब में संत वाल्मीकि फिल्म आयी। उसमें संत वाल्मीकि को डाकू के रुप में दिखाया तो हंगामा हो गया। पंजाब के अन्दर कर्फ्यू जैसी स्थिति हो गई। हमारे ही कुछ लोगों ने मुझे कहा कि देखो कल्याणी जी वाल्मीकि जाति में कितनी यूनिटी (एकता) हो गई है। मैंने उनको बताया कि तुम ब्राह्मणों द्वारा दिया गया कार्य कर रहे हो। प्रशासन व पुलिस भी दुकाने बंद कराने में साथ दे रही थी। ब्राह्मण जानते थे कि यदि वाल्मीकि की फिल्म को हटा भी दिया जायेगा तो भी इस जाति की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आयेगा। हकीकत यह थी कि ब्राह्मणों ने वाल्मीकि जाति के लोग प्रतिक्रिया करें इसलिए ही यह क्रिया की। ब्राह्मण आजकल महसूस कर रहे हैं कि इन सफाई कार्य करने वाली भंगी जातियों की श्रृद्धा रामायण से घट रही है तो ब्राह्मणों ने योग विशिष्ठ नाम की नई धोखेबाजी शुरु कर दी। योग विशिष्ठ को लोग उठाकर मन्दिरों व घरों में ले जा रहे हैं और कहते हैं कि यह हमारी ध् ार्मिक किताब है। यह पंजाब में अब नया ढकोसला ब्राह्मणों द्वारा शुरु किया गया है। वाल्मीकि जाति के जो नेता हैं, वे कहते हैं कि हम तो राजनेता हैं। परन्तु वे राजनेता का अर्थ भी नहीं समझते। वे सिर्फ नेता हैं राज से तो उनका दूर-दूर का भी रिश्ता नहीं है। राज तो दुश्मन कर रहा है। हमारे नेता थाने से हमारे एक आदमी को भी नहीं छुड़वा सकते। उसके लिए भी वे किसी शर्मा-वर्मा को ढूढ़ते हैं। ये नेता (Leader) नहीं बल्कि दिशाहीन नेता (Misleader) हैं। ब्राह्मण समझने लगे हैं कि सफाई कार्य करने वाली जातियों के सिर से गांधी का भूत अब धीरे-धीरे उतर रहा है। इसलिए अब वे नये छल-प्रपंच कर रहे हैं। मोहल्ला संगरा, जालन्धर (पंजाब) में वाल्मीकि के मन्दिर में एक नया नाटक हुआ। कोई प्रवीण कुमार अरोडा रिक्शा से मन्दिर के सामने से जा रहा था तो वह कहता है कि वाल्मीकि की आँखों से मैंने ज्योति निकलती देखी और यह ज्योति लगभग 10 मिनट तक रही। यह बात पूरे पंजाब में फैलाई गई और पूरे पंजाब में एकदम गीत-भजन गाने शुरु हो गये। हमारे पढ़े-लिखे लोग गीत गा रहे थे। वो गीत गा-गा कर कह रहे थे कि वाल्मीकि ने आँखें खोली हैं तो मैंने कहा कि भाई तुम कब आँखें खोलोगे। वाल्मीकि ने आँखें खोलीं, चलो हम मान लेते हैं मगर तुम कब आँखें खोलोगे। तुम्हारी माँ- बहनें तो आज भी सिर पर मैला ढ़ोती हैं, गलियों में जीवन व्यतीत करती हैं। ग्रेजुएट लड़के गीत गाते हुए अपने सिरों पर रामायण ढ़ोते हैं। ब्राह्मणों को भली-भाँति मालूम है कि फूले-अम्बेडकर की विचारधारा गांधीवाद और ब्राह्मणवाद का खात्मा कर देगी। इसीलिए वे नये-नये ड्रामें कर रहे हैं।हमारी हालत मात्र एल० पी० जी० की वजह से ही खराब नहीं है बल्कि यहाँ पर ब्राह्मणवादी शासकों की नीयत ठीक नहीं है, यह मुख्य कारण है। सन् 1996 में पंजाब केसरी में एक लेख आया कि चार पीढ़ियाँ बीत गई मगर वेतन अब भी तीन रुपये बारह पैसे। हमारी भंगी जाति की छोटी रानी नाम की महिला को आज भी दिया जाता है जो कि सिसौली के राजकीय विद्यालय में कार्य कर रही है। उससे बहुत बड़े स्कूल के परिसर तथा स्कूल के छः सात कमरों की भी सफाई करायी जाती है। चार पीढ़ी पहले भी तीन रुपये बारह पैसे और आज भी वही वेतन 50 वर्ष की आजादी के बाद भी। गधा वजन ढोये जा रहा है और सोच रहा है कि शायद कुम्हार तरस खायेगा। मगर वह और वजन लादता रहता है। दुःख की बात यह है कि जिनके साथ धोखेबाजी हो रही है उनको इस धोखेबाजी के बाद भी समझ नहीं आ रही है। अब ब्राह्मण इस धोखेबाजी की कवायद को और भी आगे बढ़ा रहे हैं। फरवरी 2003 में लंदन से हमारे सफाई कार्य करने वाली जाति के लोगों की एक टीम आ रही है, उनका मुझे भी फोन आया था। वे कह रहे थे कि हम पटियाला, जालन्धर, लुधियाना, अमृतसर, चंडीगढ़ में सेमिनार करने जा रहे हैं। मैंने उनसे पूछा कि सेमिनार किस विषय पर करना चाहते हो तो उन्होंने बताया कि रामतीर्थ के अन्दर जो धूना साहब है. वह हमारे कब्जे में नहीं है, वह हमारे कब्जे में होना चाहिए। मैंने उस साथी से पूछा कि क्या पूना साहब हासिल करना ही हम सफाई कार्य करने वाली जातियों का लक्ष्य है?उसने जवाब दिया कि हाँ, हमारा यही लक्ष्य है। मैंने उससे पुनः पूछा कि यदि ६ ठूना साहब हमें मिल भी गये तो क्या हमारी समस्याएं हल हो जायेंगी? क्या हम इस देश के हुक्मरान बन जायेंगे। फिर वह कहने लगा कि यह तो हमने कभी सोचा ही नहीं था। ये साजिश हमारे विदेश में बैठे साथियों के साथ रची जा रही है और वे भी झाँसे में आ जाते हैं। ऐसे अर्थहीन कार्यक्रम होते हैं। गीत-भजन गाये जाते हैं। किसी कांग्रेस या भाजपा के नेता को बुलाया जाता है। वे गीत गाते है कि 'गम जिसने दिये हैं वही गम दूर करेगा।' पर इनको मालूम नहीं है कि उन्होंने गम दिये ही इसलिए हैं कि तुम रोते रहो, तड़पते रहो। वे क्या बेवकूफ हैं कि तुम्हारे गम दूर करेंगे। ब्राह्मण हमारी समस्याओं का समाधान बिल्कुल नहीं करेंगे। दुश्मन से वफादारी की आशा मत रखो। वे हमारी समस्याओं का समाधान बिल्कुल नहीं करेंगे। धोखेबाजी से बचो। जो पूर्व में धोखेबाजी हुई उसको ध्यान में रखो। जो हो रही हैं उससे बचो तथा आम मूलनिवासी बहुजन समाज को भी इन आर्य-ब्राह्मणों की नित नई घोखेबाजियों व षड्यंत्रों से बचाओ क्योंकि यह हम पढ़े-लिखे बुद्धिजीवियों का कर्त्तव्य है। हम फूले-अम्बेडकर के सिपाही हैं। हमें अपनी कर्तव्य रुपी लड़ाई लड़नी होगी। तभी हम अपनी गुलामी से मुक्ति पा सकते हैं।
जय मूलनिवासी
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This topic that "Valmiki castes and other extremely backward scheduled castes got nothing but deception in 55 years of independence." If we look at this topic carefully, two main questions come before us. One of the questions is that these castes got nothing but deception in 55 years of independence and the second question I am raising is whether they got anything other than deception even before these 55 years of independence? I want to say that in these 55 years they got nothing except deception but even before these 55 years they got only deception due to this Brahminical system.
I want to tell you one special thing about this Brahminical system that this Brahminical system has divided the native Bahujans into thousands of castes and sub-castes. But one special thing is that what we call Valmiki caste or the castes doing cleaning business in the whole of India. The number of names given to the people of this caste engaged in cleaning business by the Aryan Brahmins is more than the number of names given to any other caste in India.Some called them Hela, Chuhra and some called them Bhangi. Gandhian sociologists say that the meaning of the word 'Bhangi' is "one who drinks cannabis". They write that these castes were called Bhangi because they smoke a lot of cannabis. But if we look at the Indus Valley Civilization and the Shramana culture, no native of India consumed any kind of intoxicant at that time. This was the reason why the Aryan-Brahmins named them Asuras. Because 'Sura' or 'Sura' means "alcohol", that is, those who do not consume Sura (alcohol) are 'Asuras' and those who do are 'Suras'. Thus we see that the Gandhian sociologist Brahmins gave a deceptive interpretation. If Bhangi is called because of drinking cannabis, then the Pandits-Priests (Brahmins) of Mathura, Haridwar and Kashi used to smoke the most cannabis and still drink it, then why were they not called Bhangi?
When the Moolnivasi Valmiki caste liberation conference was held in Jalandhar (Punjab) in April 2002, a person of Bhangi caste named Bhagmal Pagal told in that program that once Baba Saheb Dr. Ambedkar came to Jalandhar, he had conducted the stage in that program of Baba Saheb and during that program Bhagmal Pagal asked Baba Saheb a question on the stage itself that will the Valmiki caste ever become the ruling caste of India or will it be able to become so? Then Baba Saheb had replied that Bhagmal Pagal, have you really gone mad?Because in democracy no single caste can become a ruler on its own.
An example of this is the Arya-Brahmins themselves. They (Brahmins) kept two other Varnas Kshatriya and Vaishya with them and in the democratic system they gathered people in the name of Hindu and became the rulers of the country. They never thought of ruling in the name of Brahmin caste alone. It is true that if the Bhangi caste does not start its freedom struggle along with other indigenous castes, then it can never win its freedom struggle.
If the indigenous castes doing cleaning work have been cheated in the past, then the main reason for this is the Brahminical system and the religious scriptures of the Brahmins. Kautilya (Chanakya) left the business of confectionery and became an economist. He wrote that if a person of a sweeper or a person doing cleaning work finds gold or gold coins while sweeping or cleaning, then that person doing cleaning work should keep only one sixteenth of it with himself. There was no democracy at that time and these indigenous castes were being cheated, so these indigenous castes doing cleaning work used to struggle against the Brahminical system. In 1894, Colonel Saliman wrote a book named 'Awadh mein bagawat' i.e. 'Awadh mein gaddbad' (Rambling in Avadh). Avadh is today called Lucknow. At that time, these indigenous castes doing cleaning work did so many strikes and rebellions that the whole of Lucknow (Awadh) became chaotic. This was the reason why the British had to write a book on it. While it was clearly written in the religious scriptures of the Arya-Brahmins and which is written even today that oppress the indigenous castes, even then our people had the courage to struggle and they used to struggle. When these castes doing cleaning work were called Chuhra, they used to oppose this word and used to come out in the field to struggle.In 1873, a Chuhra named Dit becomes a Christian in Sialkot after being unhappy with the Brahminical system. The word Chuhra is here because the word Valmiki did not exist till that time. This Chuhra named Dit goes to a priest in Sialkot and asks him to convert him to Christianity. This is the time when there was no democracy but even then these indigenous castes doing cleaning work used to rebel and struggle against this Brahminical system of inequality.
When I was young, my mother also used to do cleaning work, she used to carry filth on her head, so at that time when a boy was born in a Brahmin's house, my mother used to go with a bow and arrow. I had asked my mother that mother, why do you go to the Brahmins' house with this bow and arrow? So she told me that son, these Brahmins think that there was a time when we were very brave. I told my mother that when this is a symbol of bravery, then why do we go and give it to the Brahmins. This incident happened after independence because I was born after 1947.
At that time, people used to revolt against atrocities. What is the situation today? Today, the situation is such that we have to make this a topic of discussion at the national level and discuss it. There used to be revolt against atrocities. Even today, I remember many things from those days. I remember when I was a child. At that time, a person named Dr. Rajdan was the Medical Health Officer in Amritsar. Our father used to tell that he used to sit on a horse and beat our people with a whip. People used to get angry that on one hand he calls us 'chuhra' and on top of that he beats us with a whip. A huge struggle arose against this behavior of his. As soon as these sanitation workers started the struggle, revolted, at that time boiling water was poured on the bodies of the leaders of these sanitation workers.D.D. Kalyani further said in the above context that what do I want to say by this? By this I want to say that when there was no democracy in India, our people used to stand up to fight against the injustice and atrocities done on them, to rebel, even though there was no democracy and the religious scriptures used to abuse us openly. Can't we stand up to fight against atrocities today? What weakness has come in us? There is a need to correctly identify the enemy and friend and to fight unitedly against the Brahminical system.
All these names that have been given to us today, we have not given these names by our own will or out of liking. Today our people get happy that 'Hey brother, today our name has been changed from Bhangi or Chuhra to Valmiki, this is very good.' But our people do not know that all this is a part of the strategy to end the rebellion within us. This is not only about the Bhangi Chuhra castes but it is also about other castes. Today, the barber community is called a king and the potter is called Prajapati. By saying this, does the barber have to give up the scissors and razor in his hands? By saying this, does the potter's work come to an end? Even today, he sits on a donkey and carries clay on the donkey to make earthen pots. Similarly, in Punjab also, people of Valmiki caste are called 'Choudhary sahab', this is a common custom. What is in the mind of those who say this? The one who says Chaudhary sahab has this in his mind that Chaudhary means Chuhra. He does not pronounce this word 'Choudhary' with respect, rather he has hatred in his mind, he says Chaudhary with hatred. All these names which are being given to us today, these are being given conspiratorially and are being given with hatred. These are some examples of this. On one hand it is said that give a bow and arrow to a Brahmin, on the other hand the Brahmin says that if a sweeper is seen early in the morning then it is auspicious and if he has a broom in his hand or a basket full of stool or excreta on his head then it is very auspicious. Hey, if the native of India keeps sweeping and keeps losing his life in the streets and drains, then it is auspicious for the Arya-Brahmins. On one hand the Brahmin says that your ancestors There were kings and Maharajas, on the other hand, if we look at them and hear about them from our ancestors, they say that whenever an animal died, there used to be a feast in our houses that day. People used to run with knives and blades to eat the dead animal. On one side vultures and dogs are eating the dead animal and on the other side these humans are struggling to fill their stomachs. The Brahmin used to be happy to see this condition, he used to feel satisfied in his mind that you challenged the Brahminical system, rebelled against the Arya-Brahmins, that is why you have to suffer this punishment.After 1947, India became free from the British. People thought that maybe now their condition will change. But nothing like this happened in the Brahminical system. I had gone to a wedding. There a PCS officer who was preparing for IAS asked me if anything would happen to us too. I told him why are you disappointed. The condition will not change but we will have to change. Efforts will have to be made to change.
When our people believed in Gandhi and Congress, the situation worsened even more. On 6 October 2002, we organized a "Khamosh Dastaan" exhibition in Amritsar in which a sanitation worker is standing with a broom and in the photo below, a child is also standing with a broom. So this photo was torn by some of our own people in that area. Some of our other people asked those who were tearing the photo that why did you tear this photo? They replied that such a bad condition should not be displayed openly like this. Today the poor do not want to show themselves as poor. The indigenous castes engaged in cleaning work are helpless and powerless. But they are afraid to express their helplessness and helplessness. They are not even ready to understand the deception that is being done with them. Our mothers and sisters leave the house early in the morning. They carry the filth on their heads, wander in the streets, but then we do not feel remorse, there is no rebellion in the mind, no anger, no pride is awakened in the people. Why is this so, this is a matter of serious thinking.
Gandhi used to say that if I have my next birth, it should be in the Bhangi caste. By saying this, Gandhi wanted to give a decadent and evil message to the people of the Bhangi caste that what you are doing is not an act of hatred but an act of charity. Baba Saheb challenged this altruistic principle of Gandhi and said that if cleaning work is an act of charity, then this work should be done by the upper castes-Brahmins. This will also be charity, money will also be earned, food will also be provided. Gandhiji advised them to do cleaning work by talking sweetly and by preaching the principle of charity to the coming generations, he pushed them into the darkness of slavery. It was because of Gandhi that more Bhangi castes became slaves.A Brahmin named 'Bindeshwari Pathak' from Bihar writes that Baba Saheb Ambedkar did nothing for the castes engaged in sanitation work. This Pathak created a filth industry in the whole of India in the name of Sulabh Shauchalaya. Bindeshwari Pathak writes that the practice of manual scavenging has ended. But the reality is something else. The National Human Rights Commission is also misleading us. It has been 120 years since the sewer system was started in the country and it has reached only 232 cities till now, that is, only 232 cities in 120 years. If this sewer system is implemented at this speed, then it will take about 2400 years to bring it in the whole country. There are 1 crore 15 lakh latrines in the cities which are not connected to the sewer system. It is useless to even mention the villages. Their reach is far beyond this. The cost of implementing this system is only Rs. 15 thousand crores. This is not much but they do not want to do it. This entire survey has been given in Sarita magazine and details of the entire fraud have been given. Before independence, Safai Karamcharis were recruited on a regular basis and they were paid full salary. But now Mohalla Sudhar Committee has been formed and a Safai Sevak is hired for Rs. 1200 and the fees of any Safai Karamchari's child cannot be waived. How can he give good education to his children? This open slavery is being imposed, fraud is being done. We should realize this slavery and fraud, only then we can take steps forward to solve it. Bindeshwari Pathak says that I have written a letter to the government that the Prime Minister and the President should sit with the people of the Bhangi caste and eat roti for a day. This will increase their respect. Bindeshwari Pathak says that it is sad that it has been 5 years since I made such a request but neither the Prime Minister nor the President has answered.
If the President and the Prime Minister come to the house of the people of the Bhangi caste once and eat roti, will our condition change? Will our respect increase? In reality, nothing will change. Even if God comes and eats food in their house, he will also be called an untouchable. Valmiki, whom our people consider their Guru and who was a Brahmin, also became an untouchable. If Gandhi had been born among the untouchables, he would have died lying in some dirty drain.
Work is also going on to ensure that BAMCEF's propaganda does not have any effect. Assembly elections were held in Punjab. Two candidates were standing in our area. One was a Kshatriya and the other a Brahmin. One of our women said that this is my basket of shit and I will vote for the one who will lift it on his head. The Brahmin immediately lifted the basket on his head and the woman became happy with this small thing. She could not understand how cunning Brahmins are. They can do anything to maintain their rule in the country. They can adopt the worst tactics. The one who lifted the basket of shit on his head remained a Brahmin and not only remained a Brahmin but also became an MLA and then a minister. But there was no change in the lifestyle of that sweeper woman of ours.
Seven years ago, the film Sant Valmiki was released in Punjab. When Sant Valmiki was shown as a dacoit in it, there was an uproar. A curfew-like situation prevailed in Punjab. Some of our own people told me that Kalyani ji, look how much unity has been achieved in the Valmiki caste. I told them that you are doing the work given by the Brahmins. The administration and the police were also helping in closing the shops. The Brahmins knew that even if the film on Valmiki is removed, there will be no change in the condition of this caste. The reality was that the Brahmins did this only to get a reaction from the people of the Valmiki caste. These days the Brahmins are feeling that the faith of these cleaning castes is decreasing due to the Ramayana, so the Brahmins have started a new fraud called Yoga Vashisht. People are taking Yoga Vashisht to temples and homes and saying that it is our religious book. This new fraud has been started by the Brahmins in Punjab. The leaders of the Valmiki caste say that they are politicians. But they do not even understand the meaning of a politician. They are just leaders, they have no relation whatsoever with politics.The enemy is ruling. Our leaders cannot even get one of our men released from the police station. For that too they look for some Sharma or Verma. These are not leaders but directionless leaders. Brahmins have started to believe that the ghost of Gandhi is now slowly leaving the minds of the castes doing cleaning work. That is why they are now doing new tricks. A new drama took place in the temple of Valmiki in Mohalla Sangra, Jalandhar (Punjab). Someone named Praveen Kumar Arora was passing in a rickshaw in front of the temple, he said that I saw a light coming out of Valmiki's eyes and this light lasted for about 10 minutes. This news was spread in the whole of Punjab and people started singing songs and bhajans in the whole of Punjab. Our educated people were singing songs. They were saying while singing that Valmiki has opened his eyes, so I said brother when will you open your eyes. Valmiki opened his eyes, okay we accept it but when will you open your eyes. Your mothers and sisters still carry filth on their heads and live in the streets. Graduate boys carry Ramayana on their heads while singing songs. Brahmins know very well that the ideology of Phule-Ambedkar will end Gandhism and Brahminism. That is why they are doing new dramas.Our condition is not bad only because of LPG but the main reason is that the intentions of the Brahmin rulers are not right. In 1996, an article appeared in Punjab Kesari that four generations have passed but the salary is still Rs. 312 paise. This salary is given to a woman named Chhoti Rani of our Bhangi caste who is working in the government school of Sisauli even today. She is made to clean the premises of a very large school and six to seven rooms of the school. Four generations ago also it was Rs. 312 paise and even today the same salary even after 50 years of independence. The donkey is carrying the load and thinking that maybe the potter will take pity. But he keeps loading more weight. The sad thing is that those who are being cheated are not understanding even after this cheating. Now the Brahmins are taking this exercise of cheating even further. In February 2003, a team of people of our caste who do cleaning work is coming from London, I also got a call from them. They were saying that we are going to hold seminars in Patiala, Jalandhar, Ludhiana, Amritsar, Chandigarh. I asked them on what topic they want to hold the seminar, they told me that Dhuna Saheb which is inside Ramtirth is not in our possession, it should be in our possession. I asked that friend whether the only aim of us, the castes doing cleaning work, is to acquire Poona Saheb?He replied that yes, this is our aim. I asked him again that even if we get 6 Thuna Saheb, will our problems be solved? Will we become the rulers of this country? Then he said that we had never thought of this. This conspiracy is being hatched with our friends sitting abroad and they also get deceived. Such meaningless programs are held. Songs and bhajans are sung. Some Congress or BJP leader is invited. They sing songs that 'the one who has given the sorrows will remove the sorrows.' But they do not know that they have given the sorrows only so that you keep crying and suffering. Are they fools to remove your sorrows. Brahmins will not solve our problems at all. Do not expect loyalty from the enemy. They will not solve our problems at all. Avoid deception. Keep in mind the deceptions that happened in the past. Save yourself from what is happening and also save the common native Bahujan society from the new deceptions and conspiracies of these Arya-Brahmins because this is the duty of us educated intellectuals. We are the soldiers of Phule-Ambedkar. We have to fight the battle of our duty. Only then can we get freedom from our slavery.
jay mulnivasi
Courtesy Google translate
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