वी. पी. सिंह: मंडल आयोग और ब्राह्मणवादी तंत्र को चुनौती
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1990: वी. पी. सिंह, मंडल आयोग और ब्राह्मणवादी राजनीति का खेल
भारत की राजनीति में 1990 का दशक एक ऐतिहासिक मोड़ था। इस समय वी. पी. सिंह, जो भारतीय राजनीति के सामाजिक न्याय के एक प्रमुख नेता थे, ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करके वंचित वर्गों को सशक्त करने की दिशा में कदम बढ़ाया। उनके इस निर्णय ने न केवल समाज में समानता लाने का प्रयास किया, बल्कि ब्राह्मणवादी तंत्र को भी चुनौती दी।
वी. पी. सिंह और मंडल आयोग का ऐतिहासिक निर्णय
मंडल आयोग की सिफारिशें:
1979 में गठित मंडल आयोग ने भारत के पिछड़े वर्गों की स्थिति का अध्ययन किया और सिफारिश की कि:
1989 में प्रधानमंत्री बनने के बाद, वी. पी. सिंह ने इस रिपोर्ट को लागू किया। यह एक क्रांतिकारी कदम था, जिसने पिछड़े वर्गों को उनका अधिकार दिलाने की दिशा में एक नई शुरुआत की।
ब्राह्मणवादी तंत्र का विरोध
आरक्षण का विरोध:
मंडल आयोग लागू होने के बाद सवर्ण जातियों ने बड़े पैमाने पर इसका विरोध किया। दिल्ली और अन्य राज्यों में प्रदर्शन हुए। आत्मदाह जैसी घटनाएं हुईं, जो समाज में व्याप्त असमानता को उजागर करती हैं।
ब्राह्मणवादी साजिश:
इस विरोध के पीछे ब्राह्मणवादी तंत्र की वह सोच काम कर रही थी, जो सत्ता और संसाधनों को केवल कुछ विशेष वर्गों तक सीमित रखना चाहती थी। आरक्षण को "मूल्य आधारित योग्यता" के खिलाफ बताया गया। न्यायपालिका और मीडिया के माध्यम से वंचित वर्गों के अधिकारों को कमजोर करने का प्रयास किया गया।
वामन मेश्राम साहब का वी. पी. सिंह जी को "भारत रत्न" के लिए समर्थन
- 1. वी. पी. सिंह ने मंडल आयोग लागू करके पिछड़े वर्गों को सशक्त किया।
- 2. उनके इस कदम ने ब्राह्मणवादी तंत्र के एकाधिकार को तोड़ा।
- 3. ऐसे महान नेता को भारत सरकार द्वारा "भारत रत्न" से सम्मानित किया जाना चाहिए।
- वी. पी. सिंह का योगदान भारतीय राजनीति में एक मील का पत्थर है। मंडल आयोग को लागू करके उन्होंने न केवल पिछड़े वर्गों को उनका हक दिलाया, बल्कि सामाजिक न्याय के लिए एक नई राह भी खोली।
- वामन मेश्राम साहब का यह बयान कि "वी. पी. सिंह को "भारत रत्न" मिलना चाहिए" उनके ऐतिहासिक योगदान की सराहना है। अगर यह सम्मान नहीं दिया गया, तो यह सामाजिक न्याय के प्रति उपेक्षा के बराबर होगा।
- बामसेफ का आंदोलन केवल एक सम्मान की मांग नहीं, बल्कि बहुजन वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए एक नई लड़ाई का आगाज़ होगा।
वामन मेश्राम का बयान:
वामन मेश्राम-बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ने वी. पी. सिंह के योगदान को ऐतिहासिक बताया और कहा कि:
आंदोलन की घोषणा:
ब्राह्मणवादी तंत्र के हथकंडे:
आरक्षण विरोधी आंदोलनों के माध्यम से समाज को विभाजित करना। "आर्थिक आधार पर आरक्षण" जैसे प्रावधान लाकर सामाजिक आरक्षण को कमजोर करना। राजनीतिक पार्टियों को सत्ता के लिए जातिगत ध्रुवीकरण में उलझाना।
सामाजिक न्याय के पक्षधर:
वी. पी. सिंह जैसे नेताओं ने दिखाया कि सत्ता का उद्देश्य केवल एक वर्ग विशेष का हित साधना नहीं होना चाहिए।
वामन मेश्राम और बामसेफ ने इसे जारी रखते हुए वंचित वर्गों की आवाज़ को मजबूत किया है।
वर्तमान और भविष्य की चुनौतियां
आज का परिदृश्य:।
भारतीय राजनीति में ब्राह्मणवादी तंत्र अब भी मौजूद है, लेकिन यह कमजोर हुआ है। सामाजिक न्याय की दिशा में कई आंदोलनों ने इसे चुनौती दी है।
निष्कर्ष
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