यूनिफॉर्म सिविल कोड: बहस, विचारधारा और समाज पर प्रभाव
यूनिफॉर्म सिविल कोड का उद्देश्य
यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) को समान नागरिक कानून के रूप में परिभाषित किया गया है। भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) इसे सभी धर्मों के लिए समान कानून लागू करने के एक साधन के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
यह संविधान के अनुच्छेद 44 में निर्दिष्ट है, लेकिन इसे लागू करने को लेकर देश में गहरी बहस चल रही है।
फ्रीडम ऑफ स्पीच और यूनिफॉर्म सिविल कोड का टकराव
संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत नागरिकों को "स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार" (Freedom of Speech and Expression) दिया गया है। यूनिफॉर्म सिविल कोड के आलोचक यह तर्क देते हैं कि यह व्यक्तिगत आजादी और सांस्कृतिक विविधता के खिलाफ है।
वामन मेश्राम जैसे विचारकों का कहना है कि यह कदम अल्पसंख्यकों और मूलनिवासी समाज के अधिकारों को कमजोर करने के लिए उठाया गया है।
ब्राह्मणवादी विचारधारा और यूनिफॉर्म सिविल कोड
- ब्राह्मण धर्म मूलनिवासी बहुजनों को गुलाम बनाने का कार्य करता है।
- "हिंदू" शब्द का उपयोग कर एससी, एसटी, ओबीसी, कुनबी और मराठा समुदाय को ब्राह्मण धर्म में शामिल किया गया।
ब्राह्मणवादी विचारधारा और यूनिफॉर्म सिविल कोड का संबंधय
वामन मेश्राम ने यह भी कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड ब्राह्मणवादी विचारधारा का परिणाम है। उनका तर्क है कि: ब्राह्मण धर्म मूलनिवासी बहुजनों को गुलाम बनाने का कार्य करता है।
"हिंदू" शब्द का उपयोग कर एससी, एसटी, ओबीसी, कुनबी और मराठा समुदाय को ब्राह्मण धर्म में शामिल किया गया। इस रणनीति से इन समुदायों के अधिकार ब्राह्मणों को सौंप दिए जाते हैं।
हिंदू शब्द की राजनीति
संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत नागरिकों को "स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार" (Freedom of Speech and Expression) दिया गया है। यूनिफॉर्म सिविल कोड के आलोचक यह तर्क देते हैं कि यह व्यक्तिगत आजादी और सांस्कृतिक विविधता के खिलाफ है।
वामन मेश्राम जैसे विचारकों का कहना है कि यह कदम अल्पसंख्यकों और मूलनिवासी समाज के अधिकारों को कमजोर करने के लिए उठाया गया है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड और बहुजन समाज
यूनिफॉर्म सिविल कोड का सबसे बड़ा विरोध बहुजन समाज से आता है। यह कानून विविधता को समाप्त कर देता है। एससी, एसटी, ओबीसी और अन्य समुदायों के अधिकारों को कमजोर करता है।
निष्कर्ष
- यूनिफॉर्म सिविल कोड एक संवेदनशील मुद्दा है जो न केवल भारत की विविधता को चुनौती देता है बल्कि संविधान के मौलिक अधिकारों पर भी सवाल खड़ा करता है।
- इसे लागू करने से पहले समाज के विभिन्न वर्गों की चिंताओं और सुझावों को गंभीरता से लेना आवश्यक है।