हिंदू शब्द: एक षड्यंत्रकारी अवधारणा?
हिंदू शब्द का इतिहास और षड्यंत्र की परतें
1918 के साउथ बरो कमीशन के बाद से भारत में लोकतंत्र के सिद्धांत ने एक नई बहस को जन्म दिया। लोकतंत्र का मूल सिद्धांत "संख्या का आधार" है। लेकिन 3.5% की संख्या वाले ब्राह्मण समाज ने अपने अल्पसंख्यक दर्जे को छुपाने और बहुसंख्यक का भ्रम पैदा करने के लिए "हिंदू" शब्द को एक षड्यंत्रकारी विचारधारा के रूप में स्थापित किया। राष्ट्रीय मुस्लिम मोर्चा के राष्ट्रीय प्रभारी चांद मोहम्मद ने बामसेफ के 41वें अधिवेशन में यह दावा किया कि "हिंदू" शब्द एक गाली के रूप में उत्पन्न हुआ था, जिसे बाद में ब्राह्मणों ने गर्व का प्रतीक बनाकर प्रस्तुत किया।
1918: लोकतंत्र और संख्या का खेल
ब्राह्मण समुदाय ने महसूस किया कि संख्या के आधार पर वे कभी भी शासक नहीं बन सकते। उन्होंने इस समस्या को हल करने के लिए "हिंदू महासभा" की स्थापना की और "गर्व से कहो हम हिंदू हैं" जैसे नारों को गढ़ा। ब्राह्मणों ने ओबीसी, एससी, एसटी और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को अपने साथ जोड़ने के लिए उनकी बस्तियों में जाकर यह प्रचार किया कि वे भी हिंदू हैं।
1925: कैडर आधारित संगठन और हिंदुत्व का प्रचार
1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)" की स्थापना की। उन्होंने हिंदुत्व की विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए साहित्य और वालंटियर तैयार किए। माफीवीर सावरकर ने 1937 में "हिंदुत्व" की थ्योरी को आगे बढ़ाया और दो राष्ट्र के सिद्धांत (Two Nation Theory) को जन्म दिया।
फसाद और हिंदुत्व की जागृत
सावरकर ने लिखा, "हिंदुओं की जागृति प्रतिक्रिया से होती है।" इसका अर्थ है कि हिंदुओं को एकजुट करने के लिए सांप्रदायिक दंगे और फसाद आवश्यक हैं। इस षड्यंत्रकारी सिद्धांत ने भारत की बहुसंख्यक आबादी को हिंदुत्व के जाल में फंसा दिया।
भारत विभाजन और बहुजन समाज का नुकसान
1947 के विभाजन ने मुसलमानों को नेता विहीन बना दिया। मोहम्मद अली जिन्ना का उपयोग करके ब्राह्मणवादी षड्यंत्र ने न केवल मुसलमानों का बल्कि पूरे बहुजन समाज का सबसे बड़ा नुकसान किया।
48 सालों से जारी संघर्ष
वामन मेश्राम साहब, भारत मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पिछले 48 वर्षों से इस षड्यंत्रकारी विचारधारा का पर्दाफाश कर रहे हैं। उनका लक्ष्य है कि भारत के मूलनिवासी समाज को संगठित कर, उनके अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ना।
हमें क्या करना चाहिए?
- जागरूकता: इस षड्यंत्र को समझें और इसे समाज में उजागर करें।
- संगठन: बहुजन समाज को एकजुट करने के लिए बामसेफ और भारत मुक्ति मोर्चा जैसे संगठनों से जुड़ें।
- संवाद: सामाजिक न्याय और समानता के मुद्दों पर चर्चा करें।
निष्कर्ष:
हिंदू शब्द का इतिहास केवल एक धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि एक राजनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा है। इसे समझना और इससे जुड़े सच्चाई को समाज के सामने लाना हर जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी है। लेखक: nayak1news