बचपन की ताज़ी यादें: लट्टू का जादू

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बचपन की ताज़ी यादें: लट्टू का जादू

बचपन की ताज़ी यादें: लट्टू का जादू

परिचय

बचपन के खेल हमारी यादों में आज भी ज़िंदा हैं। उनमें से एक खास खेल है लट्टू। यह एक ऐसा खेल था जिसने हमारे बचपन को रंगीन और रोमांचक बनाया। तकनीक के इस युग में, जहां अब बैटरी से चलने वाले म्यूजिक लट्टू मिलते हैं, वहीं पुराने लकड़ी के लट्टू का जादू कुछ और ही था। इस ब्लॉग में हम आपको लट्टू के इतिहास, खेल के मज़े और इससे जुड़े अपने बचपन के अनुभव साझा करेंगे। लट्टू।...

लट्टू क्या है?

लट्टू लकड़ी या प्लास्टिक से बना एक गोलाकार खिलौना होता है, जो एक नुकीले सिरे (आमतौर पर लोहे का बना) पर घूमता है। इसे डोरी से लपेटकर ज़मीन पर जोर से फेंका जाता है, जिससे यह तेजी से घूमने लगता है। इसे गुजराती में "भमरड़ो", मराठी में "भवरा" और अन्य भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।

लट्टू का इतिहास

लट्टू का इतिहास हजारों साल पुराना है। इसे सबसे पहले प्राचीन मेसोपोटामिया और मिस्र में खेला गया था। धीरे-धीरे यह भारत में भी लोकप्रिय हो गया और हर गली-मोहल्ले के बच्चों का पसंदीदा खेल बन गया।

लट्टू खेलने का तरीका

  1. सबसे पहले लट्टू पर डोरी को कसकर लपेटें।
  2. डोरी का दूसरा सिरा अपनी उंगलियों में फंसाएं। 3. जमीन पर जोर से फेंकें और डोरी को खींचते हुए लट्टू को घूमने दें। 4. चाहें तो इसे अपने हाथ पर भी घुमा सकते हैं। यह खेल न केवल मनोरंजन देता था बल्कि हमारी फोकस और कौशल को भी बढ़ाता था।

आज के लट्टू और बैटरी का दौर?

आज बाजार में बैटरी से चलने वाले म्यूजिक लट्टू आ गए हैं, जिनमें लाइट्स और साउंड होते हैं। लेकिन पुराने लकड़ी के लट्टू का मज़ा और रोमांच इनमें नहीं मिलता।

बचपन की यादें और सीख लट्टू खेलते वक्त हममें प्रतिस्पर्धा और सहनशीलता की भावना विकसित होती थी। दोस्तों के साथ मिलकर खेलने का आनंद हमें सहयोग करना सिखाता था। लट्टू का घूमना हमें सिखाता था कि ज़िंदगी भी संतुलन और निरंतरता पर चलती है।

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