पेरियार ई.वी. रामास्वामी नायकर का नाम भारतीय समाज सुधार के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त पाखंडवाद, अंधविश्वास, रूढ़िवाद और जातिगत भेदभाव के खिलाफ आंदोलन छेड़ा और द्रविड़ आंदोलन की नींव रखी। 24 दिसंबर 1973 को उनकी मृत्यु हुई, और आज, उनके 51वें स्मृति दिवस पर, हम उनके महान कार्यों को याद कर उनके विचारों से प्रेरणा लेते हैं।
प्रारंभिक जीवन और द्रविड़ आंदोलन की शुरुआत
पेरियार का जन्म 17 सितंबर 1879 को तमिलनाडु के ईरोड जिले में हुआ। एक संपन्न व्यापारी परिवार में जन्मे पेरियार ने छोटी उम्र में ही समाज की विषमताओं को अनुभव किया। उन्होंने महसूस किया कि जातिगत भेदभाव और अंधविश्वास ने समाज को कमजोर कर दिया है।
पेरियार ने 1925 में "आत्मसम्मान आंदोलन" (Self-Respect Movement) की स्थापना की, जो तमिल समाज में सामाजिक समानता, लैंगिक न्याय, और तर्कशीलता को बढ़ावा देने का उद्देश्य रखता था। उनका उद्देश्य था कि हर व्यक्ति अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो और सामाजिक असमानताओं के खिलाफ आवाज उठाए।
अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ संघर्ष
पेरियार ने भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वास और धार्मिक पाखंड के खिलाफ जमकर संघर्ष किया। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि आत्मा अमर है और शरीर को जलाया जाता है, तो नरक और स्वर्ग जैसे विचारों का क्या औचित्य है। उनके इस तार्किक दृष्टिकोण ने समाज को वैज्ञानिक सोच की ओर प्रेरित किया।
पेरियार ने कई धार्मिक मान्यताओं को चुनौती दी और मंदिरों में दलितों के प्रवेश का समर्थन किया। उन्होंने ब्राह्मणवाद के खिलाफ आवाज उठाई और समानता पर आधारित समाज की वकालत की।
महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष
पेरियार केवल जातिगत भेदभाव के खिलाफ ही नहीं, बल्कि महिलाओं के अधिकारों के लिए भी संघर्षरत रहे। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, समान विवाह अधिकार, और विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहन दिया। उनका मानना था कि जब तक महिलाएं स्वतंत्र और सशक्त नहीं होंगी, तब तक समाज प्रगति नहीं कर सकता।
विरासत और आज का संदर्भ
पेरियार का द्रविड़ आंदोलन केवल तमिलनाडु तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे भारत में सामाजिक सुधारों का प्रतीक बन गया। आज भी, उनके विचार और कार्य प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। पेरियार के अनुयायियों ने उनकी शिक्षाओं को आगे बढ़ाया और सामाजिक न्याय की दिशा में काम किया।
निष्कर्ष
पेरियार रामास्वामी नायकर भारतीय समाज के महान सुधारकों में से एक थे, जिन्होंने तर्कशीलता, समानता और सामाजिक न्याय के विचारों को बढ़ावा दिया। उनके विचार आज भी हमें यह सिखाते हैं कि सामाजिक सुधार के लिए केवल विचार ही नहीं, बल्कि ठोस कार्यवाही की आवश्यकता होती है।
उनकी स्मृति दिवस पर, हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम उनके दिखाए रास्ते पर चलकर समाज में हर प्रकार की असमानता को मिटाने के लिए काम करेंगे।
जय मूलनिवासी