ओबीसी अधिकार और ऐतिहासिक संघर्ष

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ओबीसी अधिकार और ऐतिहासिक संघर्ष

ओबीसी अधिकार और ऐतिहासिक संघर्ष

ओबीसी अधिकार का इतिहास

भारत की 52% आबादी वाले अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को अधिकारों के लिए वर्षों से संघर्ष करना पड़ रहा है। यह वर्ग बहुसंख्यक होने के बावजूद सामाजिक और राजनीतिक उपेक्षा का शिकार रहा है। ओबीसी के अधिकारों का संघर्ष साइमन कमीशन के समय से शुरू होता है, जहां जाति आधारित जनगणना और आरक्षण के मुद्दों पर बड़े निर्णय लिए गए।

ओबीसी के खिलाफ साजिश

ऐतिहासिक दस्तावेज़ बताते हैं कि महात्मा गांधी, नेहरू और अन्य नेताओं ने ओबीसी समुदाय को गुमराह किया। डॉ. बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर ने जाति आधारित जनगणना और ओबीसी के अधिकारों के लिए संघर्ष किया, लेकिन उन्हें नीचा दिखाने के लिए ओबीसी को जनेऊ धारण करने और ऊंची जातियों की प्रथाओं को अपनाने के लिए मजबूर किया गया।

इस साजिश ने ओबीसी को एससी/एसटी से अलग कर दिया और उनकी सामाजिक न्याय की लड़ाई को कमजोर कर दिया। इस भ्रम के कारण ओबीसी आज भी अपने अधिकारों से वंचित है।

डॉ. बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर की भूमिका

डॉ. बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर ने ओबीसी अधिकारों के लिए संविधान में अनुच्छेद 340 का प्रावधान किया, जिसमें जाति आधारित जनगणना और आरक्षण की मांग की गई। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने इसका विरोध किया, जिससे डॉ. बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

फिर भी, डॉ. बाबासाहब भीमरावअम्बेडकर ने ओबीसी जागरूकता और अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखा। उनकी दूरदर्शिता ने भविष्य के आंदोलनों के लिए आधार तैयार किया, जैसे कि मंडल आयोग

मंडल आयोग और आज की स्थिति

1979 में मंडल आयोग की स्थापना हुई, जिसने ओबीसी अधिकारों के लिए एक बड़ा कदम उठाया। हालांकि, इसकी सिफारिशों को लागू करने में कई बाधाएं आईं। आज भी, ओबीसी जनगणना की कमी के कारण उनकी वास्तविक स्थिति का सही आकलन नहीं हो पाता है।

नेताओं और संगठनों का कहना है कि यदि ओबीसी समुदाय एकजुट हो जाए, तो उनकी स्थिति में बड़ा सुधार हो सकता है।

ओबीसी जागृति का वर्तमान नेतृत्व

वर्तमान में वामन मेश्राम जैसे नेताओं और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग मोर्चा जैसे संगठनों ने ओबीसी जागृति की जिम्मेदारी उठाई है। उनका कहना है कि ओबीसी को सही इतिहास और वास्तविकता से अवगत कराना बेहद जरूरी है।

जैसा कि चौधरी विकास पटेल ने कहा, "ओबीसी शेर है, बस जगाने की देर है"। यह जागृति ही ओबीसी अधिकारों की लड़ाई को निर्णायक बना सकती है।

निष्कर्ष

ओबीसी का इतिहास संघर्ष और साहस का है। अब समय आ गया है कि ओबीसी समुदाय अपने अधिकारों के लिए जागरूक होकर एकजुट हो। तभी सामाजिक न्याय और समानता का सपना साकार हो सकेगा।

© 2024 Nayak1News लेखक : अहिंसक चौरे | सत्य की शक्ति

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