जातिगत भेदभाव रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट का यूजीसी को निर्देश: क्या पांच साल में कोई कदम नहीं उठाया गया?

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जातिगत भेदभाव रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट का यूजीसी को निर्देश: क्या पांच साल में कोई कदम नहीं उठाया गया?

नई दिल्ली | नायक1

भारत में जातिगत भेदभाव का मुद्दा हमेशा से संवेदनशील और विचारणीय रहा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से सवाल किया कि विश्वविद्यालयों में छात्रों के बीच जातिगत भेदभाव को रोकने के लिए पिछले पांच वर्षों में कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाए गए? न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने यूजीसी को स्पष्ट निर्देश दिया है कि एक महीने के भीतर राज्य सरकार द्वारा संचालित और निजी विश्वविद्यालयों में जातिगत भेदभाव रोकने के लिए मसौदा नियमों की अधिसूचना जारी की जाए। कोर्ट ने इस पर भी नाराजगी जाहिर की कि इतने संवेदनशील मुद्दे पर अब तक कोई प्रभावी कार्रवाई क्यों नहीं हुई।

जातिगत भेदभाव के कारण आत्महत्याओं का गंभीर आंकड़ा

वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने पीड़ित छात्रों रोहित वेमुला और पायल तड़वी की मांओं की ओर से कोर्ट में पक्ष रखा।

उन्होंने कहा कि 2004 से लेकर अब तक 50 से अधिक एससी और एसटी छात्रों ने जातिगत भेदभाव के कारण आत्महत्या की है।

रोहित वेमुला: हैदराबाद विश्वविद्यालय के पीएचडी छात्र, जिन्होंने 17 जनवरी 2016 को जातिगत भेदभाव के कारण आत्महत्या कर ली।

पायल तड़वी: मुंबई के टोपीवाला मेडिकल कॉलेज की छात्रा, जिन्होंने 22 मई 2019 को इसी कारण आत्महत्या कर ली।

ये मामले भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव की भयावह स्थिति को उजागर करते हैं।

नए नियमों की घोषणा और कोर्ट का सख्त रुख

यूजीसी ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया कि जातिगत भेदभाव रोकने के लिए एक नया नियम तैयार किया गया है। यूजीसी के वकील ने बताया:

मसौदा नियम आयोग की वेबसाइट पर सार्वजनिक किया जाएगा।

अधिसूचना की प्रक्रिया एक महीने में पूरी होगी।

इसके बाद पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि नियमानुसार प्रक्रिया पूरी नहीं हुई तो इसे गंभीरता से लिया जाएगा। कोर्ट ने यूजीसी को अगले छह हफ्ते में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।

शैक्षणिक संस्थानों में सुधार की आवश्यकता

मेडिकल पाठ्यक्रमों में खाली सीटों का मुद्दा भी कोर्ट में उठाया गया। कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह सभी संस्थानों और राज्यों के साथ बैठक कर इस समस्या को हल करे।

जस्टिस भूषण गवई और केवी विश्वनाथन की बेंच ने स्पष्ट किया कि शिक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए सिफारिशों को तुरंत लागू किया जाए।

सीबीआई पर ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि सीबीआई को केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए राज्य सरकार की सहमति की आवश्यकता नहीं है। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए जस्टिस सीटी रविकुमार और राजेश बिंदल की पीठ ने यह निर्णय दिया।

निष्कर्ष

भारत के शैक्षणिक संस्थानों में जातिगत भेदभाव जैसी समस्याएं गहरी जड़ें जमा चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम निश्चित रूप से इस दिशा में बदलाव की उम्मीद जगाता है। जरूरत है कि यूजीसी और सरकार इन निर्देशों को समयबद्ध तरीके से लागू करें और शिक्षण संस्थानों को सभी छात्रों के लिए सुरक्षित और समान बनाए।

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