रिडल्स इन हिंदुइज्म पर विवाद क्यों?
लेखक: Nayak 1 News
इस लेख में 'रिडल्स इन हिंदुइज्म' पुस्तक पर हुए विवाद का गहराई से विश्लेषण किया गया है।
रिडल्स विवाद की उत्पत्ति
डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर की पुस्तक "रिडल्स इन हिंदुइज्म" पर विवाद का मुख्य कारण यह था कि इसमें हिंदू धर्म और ब्राह्मणवादी सोच की आलोचना की गई थी।
यह विवाद उन विचारों को दबाने की कोशिश का हिस्सा था जो अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों की एकता को बढ़ावा देते थे।
राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य
इस विवाद में तीन प्रमुख संस्थाओं की भूमिका थी:
- लोकसत्ता: मराठी दैनिक और उसके संपादक माधव गडकरी।
- शिवसेना: बाल ठाकरे और मराठा महासंघ।
- कांग्रेस पार्टी: जिसने अपनी राजनीति को सुरक्षित रखने के लिए इस मुद्दे को भड़काया।
ब्राह्मणवाद के खिलाफ बढ़ते विरोध और अनुसूचित जातियों के एकजुट होने की प्रक्रिया को रोकने के लिए इस विवाद को हथियार बनाया गया।
अपना देश स्वतंत्र होने के लिए बहुत बड़ा आंदोलन करना पड़ा था। इस स्वतंत्रता के सग्राम में जो सामान्य जनता सामिल हुई थी वह थी अनुसूचित जाति जन-जाति और अन्य पिछड़ी जातियाँ। देश आजाद होने के बाद उन्हें शासन और प्रशासन में शामिल कर लेना अनिवार्य था। परन्तु इस बात को बड़ी धूर्तता से टाला गया। भारत स्वतंत्र होने के पश्चात देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी मृत्यू के समय तक बड़ी शांती से राज चलाया। अपने कार्यकाल में उन्होंने साढ़े तीन प्रतिशत ब्राह्मणों को 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व प्रदान किया और शेष 20 से 25 प्रतिशत ऊँची जाति के लोगों को प्रतिनिधित्व दिया । इन बातों से यह पता चलता है कि उन्होंने बड़ी कुशलता से पिछड़ी जातियों को सत्ता के बाहर रखा।
वास्तवता या है कि जिन लोगों को उन्होंने बाहर रखा उनके वोटों पर ही वें (उनके पार्टी के लोग) चुनाव में चुनकर आए थे।
दूसरी वास्तविक बात यह है कि इन्हीं लोगों को सत्ता के सहभाग से अलग रखा गया था।
डॉ. आंबेडकर के विचार
बाबा साहेब ने अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ी जातियों की एकता पर जोर दिया। उन्होंने 1948 के लखनऊ भाषण में कहा:
“यदि अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़े वर्ग एक हो जाते हैं, तो वे बहुसंख्यक बन जाएंगे और इस देश की सत्ता अपने हाथों में ले सकते हैं।”
उनका यह दृष्टिकोण कांग्रेस और अन्य ब्राह्मणवादी ताकतों के लिए एक चुनौती था।
ब्राह्मणवादी राजनीति और विरोध
आंबेडकर की एकता की अपील को कमजोर करने के लिए कांग्रेस ने हमेशा प्रयास किए।
- 1951 में पटना परिषद में अनुसूचित जाति और पिछड़ी जातियों के एकजुट होने के प्रयास को विफल किया गया।
- आरक्षण विरोधी आंदोलनों का समर्थन देकर जातीय एकता को नुकसान पहुंचाया गया।
सन 1951 में जब पिछड़े वर्ग के लोगों ने बाबासाहब डा. अम्बेडकर को पटना की परिषद में आमंत्रित किया था तब पिछड़े वर्ग तथा अनुसूचित जाति के लोगों ने एक ही झंडे के नीचे आ जाना चाहिए इसलिए, उन्होंने पहल की। लेकिन पिछड़े जाति के लोगों में से एक दो लोगों को केंद्रीय मन्त्री परिषद में लेकर जवाहरलाल नेहरु के माध्यम से इस एकता की पहल को तोड़ दिया गया। इसका अर्थ यह हुआ कि जब-जब पिछड़े वर्ग तथा अनुसूचित जातियों ने एकता के प्रयास किए गए तब-तब कांग्रेस की ओर ने उस एकता प्रक्रिया को तोड़-फोड़ किया गया।
सातवे दशक के प्रारम्भ. में अनुसूचित जाति-मुस्लिम एकता के लिए रिपब्लीकन पार्टी के नेता बी. पी. मौर्या ने उत्तर भारत में प्रयास किये। जब अनुसूचित जाति-मुस्लिम एकता की प्रक्रिया शुरु हुई। तब उत्तर भारत में अनुसूचित जाति-मुस्लिम इन दोनों में झगड़े-फंसाद छेड़ देने का कार्य कांग्रेस के माध्यम से बड़े पैमाने पर किया गया।
इन बातों से यह कहा जा सकता है कि एकता की प्रक्रिया न केवल कांग्रेस को बल्कि ब्राह्मणवाद को जड़-मूल से उखाड़कर फेंक सकती है, यह बात कांग्रेस के ब्राह्मणवादी नेता भलीभांति जानते हैं।
विश्व हिंदू परिषद और आरएसएस का हस्तक्षेप
आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद ने हिंदू धर्म के नाम पर जातीय एकता को तोड़ने के लिए धार्मिक यात्राओं और आंदोलनों का आयोजन किया।
1987 में बाला साहेब देवरस ने कांग्रेस और आरएसएस के संयुक्त प्रयासों को स्पष्ट किया, जिनका मुख्य उद्देश्य जातीय जागरूकता को कुचलना था।
2 अक्तूबर 1987 को बाला साहब देवरस ने कहा कि 'इस देश में कांग्रेस को विकल्प नहीं।' यह विधान आडवाणी और अटलबिहारी वाजपेयी इनके लिये था। क्योंकि आडवाणी तथा वाजपेयी, वी.पी. सिंह को साथ लेकर कांग्रेस का विकल्प ढूंढ़ने के लिए मदद कर रहे थे।
यह बात कांग्रेस तथा आर. एस. एस. समझौते में बाधा निर्माण करनेवाली थी। इसलिए देवरस ने, आडवाणी तथा वाजपेयी इन्हें, कांग्रेस - आर.एस.एस. समझौते में बाधा डालने के लिए प्रयास न करें ऐसा सुझाव दिया।
उसी समय भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भोपाल में शुरू थी। देवरस के विधान का स्पष्टीकरण करने के लिए आडवाणी और वाजपेयी देवरस के कथन से सहमत नहीं हुए, यह बात देवरस के, रायपुर में कहे गए विधान से स्पष्ट होती है। देवरस कहते हैं कि "इसके बाद आर. एस. एस राजनीति में नहीं आएगी यह कह नहीं सकते।" यह टिप्पणी कर उन्होंने आडवाणी, वाजपेयी को चेतावनी दी की यदि वे कांग्रेस के विरोध में काम करते हैं तो हम भी राजनीतिक उद्देश्य पूर्ति के लिए भा.ज.पा. पर निर्भर नही रहेंगे। इस चेतावनी के बाद आडवाणी और वाजपेयी ने, वी.पी. सिंह के साथ काम करना छोड़ दिया।
अनुसूचित जाति, जन-जाति और अन्य पिछड़ी जाति के जागृति का प्रमाण कांग्रेस और आर. एस. एस के संयुक्त प्रयासों के बावजूद भी बढ़ता ही जा रहा है। और इस प्रक्रिया को रोकना उन्हें असंभव लगने लगा तब उन्होंने बाबरी मस्जिद के विरोध में राम जन्म भूमि ऐसे अनेक धार्मिक मुद्दों पर पिछड़े वर्ग के लोगों में वर्गीय चेतना नष्ट करके उनमें धर्मांधता और अंधश्रद्धा लाने के लिए कोशिशें की। इन कोशिशों में अनेक आचार्य, धर्माचार्य तथा शंकराचार्य इनकी मदद लेने के प्रयास हुए ऐसा प्रतीत होता है।
निष्कर्ष
‘रिडल्स इन हिंदुइज्म’ पर विवाद जातीय जागृति और सामाजिक न्याय की प्रक्रिया को रोकने का एक प्रयास था। अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ी जातियों को इन साजिशों को समझना और एकजुट रहना आवश्यक है।
यह संघर्ष सिर्फ एक पुस्तक का नहीं है, बल्कि समानता और सामाजिक न्याय की लड़ाई का हिस्सा है।