महिलाओं का सशक्तिकरण: गायत्री घोणे का दृष्टिकोण
परंपराओं और अंधविश्वास की बेड़ियों में महिलाएं
महिलाएं आज भी ब्राह्मणवादी व्यवस्था द्वारा थोपे गए रीति-रिवाजों, परंपराओं, व्रत-उपवास, अंधविश्वास और पाखंडों में फंसी हुई हैं। परिणामस्वरूप, उनका सशक्तिकरण संभव नहीं हो सका। यह विचार भारत मुक्ति मोर्चा महाराष्ट्र प्रदेश की पदाधिकारी गायत्री घोणे ने पुणे में आयोजित जागरूकता बैठक में व्यक्त किए।
सशक्तिकरण का अर्थ
गायत्री घोणे ने सवाल उठाया कि सशक्तिकरण क्या है? उन्होंने कहा कि सशक्तिकरण का अर्थ है सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और आर्थिक निर्णय लेने की स्वतंत्रता। लेकिन महिलाएं आज भी पितृसत्तात्मक व्यवस्था की गुलाम हैं।
पितृसत्तात्मक व्यवस्था की चुनौती
उन्होंने कहा कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था महिलाओं को गुलाम बनाती है या उन्हें देवी का दर्जा देकर उनकी स्वतंत्रता छीन लेती है। महिलाएं स्वयं भी गलत परंपराओं और अंधविश्वासों को बढ़ावा देकर अपनी स्थिति को कमजोर करती हैं।
शिक्षा और समाज का प्रभाव
गायत्री घोणे ने शिक्षा प्रणाली और मीडिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि महिलाएं अपनी बुद्धिमत्ता और कौशल का विकास नहीं कर पातीं। शिक्षा व्यवस्था में महिलाओं को कमजोर दिखाने वाले पाठ्यक्रम बनाए जाते हैं।
महिला आरक्षण और समाधान
घोणे मैडम ने महिला आरक्षण बिल पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि इसे केवल उच्च वर्ग की महिलाओं को लाभ पहुंचाने के लिए लागू किया गया है। उन्होंने बहुजन महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए जातिवार जनगणना और बैलेट पेपर चुनाव की वकालत की।