इकोनॉमिक्स में एक टर्म है कोबरा इफेक्ट! 
यह नाम दिल्ली की एक घटना से शुरू हुआ था। दरअसल 1875 के आस पास ब्रिटिश सरकार दिल्ली में कोबरा सांपों से बहुत परेशान थी, सरकार ने घोषणा की जो भी कोबरा को मार कर लाएगा उसे पैसे मिलेंगे। शुरुआत में तो लोगों ने बहुत सारे सांप मारे लेकिन बाद में उन्होंने सांपों को पालना शुरू कर दिया। कोबरा की पॉपुलेशन कम होने की जगह बढ़ने लगी।
हनोई वियतनाम में एक बार चूहों का आतंक फैल गया था, उस समय वियतनाम पर फ्रांस का शासन था। चूहे इतने अधिक हो गए कि फ्रांसीसी सरकार ने घोषणा कर दी कि जो भी चूहों को मारेगा उसे प्रति चूहे के हिसाब से 1 cent (समझिए 1 रुपया) दिया जाएगा।  —लेकिन किसी ने चूहा मारा ये पता कैसे चलेगा...? सरकार ने कहा कि जो भी चूहे को मारेगा सबूत के तौर पर उसे उसकी पूंछ दिखानी होगी। फिर शुरू हुआ असली खेल! लोग चूहे को पकड़ते, उसकी पूंछ काटते और उसे छोड़ देते कि वो और चूहे पैदा करते रहें। कुछ लोगों ने आपदा में अवसर देखा और उन्होंने चूहे पालना शुरू कर दिया। परेशान होकर फ्रांस सरकार ने यह योजना बंद कर दी। 
अमेरिका में एक बार लोग सूअरों से बहुत ज्यादा परेशान हुए, वहां की आर्मी ने सूअर मारने का प्रोग्राम चलाया। सबूत के तौर पर उसकी कटी पूंछ दिखाने पर 40 डॉलर का इनाम रखा। लोगों ने मौका देखा तो उन्होंने मांस की दुकानों से सूअर की पूंछ खरीदना  शुरू कर दिया। लोग सूअर पालने तक लगे.
2002 के आस पास ब्रिटिश अफगानिस्तान में अफीम उत्पादन से बहुत परेशान थे। उन्होंने घोषणा की कि जो भी अफीम के खेत जलाएगा उसे 700 डॉलर प्रति एकड़ मिलेंगे! लोग ने बुद्धि लगाई, अफीम की खेती बढ़ा दी गई। पहले फसल काट लेते, तना छोड़ देते और उसे जलाकर 700 डॉलर प्रति एकड़ की कमाई करते। 
आज सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि आवारा कुत्तों को पकड़ कर उनकी नसबंदी की जाए जिससे और कुत्ते पैदा न हों! अब सरकारी बाबुओं के पास इस आपदा को अवसर में बदलने का सुनहरा मौका है। आप कुत्तों को कैसे पहचानेंगे? कुत्तों का कोई आधार कार्ड तो होता नहीं है? किस कुत्ते की नसबंदी हुई है किसकी नहीं यह कैसे पता चलेगा? एक ही कुत्ते को पकड़ कर 100 बार उसकी नसबंदी की जाएगी। डॉक्टर और नगर निगम के अधिकारी पैसा छापेंगे। हम तमाशा देखेंगे! बढ़िया है...
जय मूलनिवासी 

 
   
 
 
 
