नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका में बीते 4 साल में सरकार विरोधी कई आंदोलनों हुए है. आंदोलन की अगुआई युवाओं ने ही की. करप्शन, बेरोजगारी और महंगाई मुख्य कारण रहे. आंदोलनों के चलते यहां के राष्ट्रध्यक्षों को अपना इस्तीफा देना पड़ा है।
नेपाल में चल रहा प्रदर्शन आज बांग्लादेश और श्रीलंका की याद दिला रहा है. दक्षिण एशिया के यह 3 देशों में सत्ताधारी पार्टियों के खिलाफ जमकर प्रदर्शन हुए हैं. 2022 में श्रीलंका, 2024 में बांग्लादेश और आज 2025 में नेपाल. खासतौर पर युवा Gen Z इसमें शामिल रहा. यहां सत्ता पर काबिज नेताओं को अपने पद छोड़ना पड़ा. तीनों दक्षिण एशियाई देशों पर चीन का प्रभाव है. आखिर क्या कारण है ?
जो दक्षिण एशिया में सरकारों के खिलाफ जनता का गुस्सा फूट पड़ा है?
#Srilanka_Protest
कोलंबो स्थित राष्ट्रपति कार्यालय.
अप्रैल 2022 में महंगाई और आर्थिक तंगी को लेकर राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के खिलाफ बड़े पैमाने में प्रदर्शन हुए. इसके बाद सरकार ने अस्थायी आपातकाल की घोषणा कर दी थी. सुरक्षाबलों को संदिग्धों को गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने का अधिकार दे दिया गया था. 2 दिन बाद श्रीलंकाई कैबिनेट के लगभग सभी मंत्रियों ने इस्तीफा देना पड़ा था, जिससे राजपक्षे और उनके भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे अलग-थलग पड़ गए थे। जुलाई आते-आते प्रदर्शन हिंसा में बदल गया. 13 जुलाई को गोटबाया देश छोड़कर मालदीव भाग गए थे।
बांग्लादेश में स्टूडेंट्स का प्रदर्शन.
5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश में 2 महीने से जारी आरक्षण विरोधी आंदोलन बेकाबू हो गया था। प्रदर्शन के दौरान एक दिन में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद करीब 4 लाख लोग ढाका की सड़कों पर उतर गए थे।भीड़ ने हिंसा-तोड़फोड़ की. प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री आवास में घुस गए थे। प्रधान मंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा देना पड़ा था और भारत में शरण ली.
नेपाल: सरकार पर भी करप्शन का आरोप
नेपाल में युवाओं का जोरदार प्रदर्शन.
जेन-Z युवाओं ने 8 सितंबर को देशभर में प्रदर्शन का आह्लान किया था. ब्राह्मण प्रधानमंत्री केपी ओली शर्मा की सरकार पर आरोप लगाया कि वह करप्शन खत्म करने का अपना वादा पूरा नहीं कर पा रहे है. युवा बेरोजगारी, आर्थिक मंदी और करप्शन के मुद्दों को लेकर सरकार को घेरना चाहते थे. लेकिन संसद परिसर में आगजनी के बाद पुलिस ने फायरिंग कर दी और हिंसा भड़क गई. प्रधान मंत्री केपी शर्मा ओली को 9 सितंबर को इस्तीफा देना पड़ गया.
*तीनों देशों की चीन से बढ़ती करीबी
नेपाल: 2017 में BRI (बेल्ट एंड रोड इनीशिएट) समझौता किया था. इसके बाद ओली ने 10 नए प्रोजेक्ट्स पर सहमति दी. चीन ने नेपाल में कई इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में निवेश किया है, जैसे- सड़क, हवाई अड्डे, और हाइड्रो पावर प्लांट और भी बहोत. चीन इसके जरिए अपने रणनीतिक हित साध रहा था.
#बांग्लादेश: चीन ने BRI प्रोजेक्ट् में लगभग $10 बिलियन खर्च किए हैं. 1 दिसंबर 2024 से चीन ने बांग्लादेशी सामानो पर इंपोर्ट ड्यूटी खत्म कर दी थी। चीन ने बांग्लादेश के आर्थिक विकास के लिए 1 बिलियन डॉलर, मोंगला पोर्ट के लिए 400 मिलियन डॉलर की मदद दी थी। सैन्य उपकरण और तकनीक भी मुहैया कराई थी.
#श्रीलंका: चीन ने श्रीलंका के पोर्ट सिटी कोलंबो, हंबनटोटा पोर्ट के प्रोजेक्ट्स में निवेश किया है. इससे हिंद महासागर में चीन की पकड़ मजबूत हुई है. श्रीलंका ने चीन से लगभग 7 बिलियन डाॉलर (लगभग ₹57,000 करोड़) का कर्ज लिया था, जो उसके कुल बाहरी कर्ज का लगभग 15% हो गया है. जिसके चलते आर्थिक संकट के बाद श्रीलंका की चीन पर निर्भरता बढ़ी है.
भारत अब उन तीन देशों से घिरा है जिन्होंने चीन के साथ BRI समझौते किए हैं. इनमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल और श्रीलंका शामिल हैं. श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में आंदोलनों की वजहें भले ही अलग-अलग रही हों, लेकिन इसमें एक बात कॉमन है, वह यह कि सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी और अंत तक आंदोलन को दबाने की कोशिश की. युवाओं ने आंदोलनों में सबसे अहम भूमिका निभाई है. तीनों ही देशों में सत्ता पर काबिज शीर्ष नेताओं को पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है अब भारत की बारी है. जय मूलनिवासी