डा. बाबासाहेब आंबेडकर की 69वीं स्मृति दिवस पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि — 'मैं मूर्तियों में नहीं किताबों में हूँ'। निशा वामन मेश्राम का संदेश

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डा. भीमराव अंबेडकर 69वीं स्मृति दिवस: "मूर्तियों में नहीं किताबों में हूँ" — नमन और आह्वान | NAYAK 1 NEWS
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श्रद्धांजलि • विचार • आह्वान
विशेष कवरेज
प्रकाशित: 6 दिसम्बर 2025
🔔 स्मृति दिवस विशेष — डॉ. भीमराव आंबेडकर 69वीं पुण्यतिथि

"मूर्तियों में नहीं किताबों में हूँ" — डॉ. अंबेडकर की 69वीं स्मृति पर भावपूर्ण नमन और आह्वान

विशेष रिपोर्ट

आज हम विनम्रता और गहरी श्रद्धा के साथ उस महापुरुष को याद करते हैं जिनकी लेखनी, विचार और संघर्ष ने करोड़ों लोगों को आवाज दी — विश्वरत्न डॉ. भीमराव बाबासाहेब आंबेडकर। उनके वार्ता के शब्द आज भी हमारे भीतर आवाज उठाते हैं — ज्ञान, न्याय और समानता का अनवरत आह्वान।

"मूर्तियों पे माला विचार पर ताला — मेरे अनुयायियों! मैं मूर्तियों में नहीं किताबों में हूँ।"

उद्धरण जो आज भी झकझोरते हैं

डा. आंबेडकर ने जीवन भर कहा कि हमारी लड़ाई सिर्फ अधिकारों की नहीं, बल्कि आत्म-स्वाभिमान और ज्ञान की है। उनके शब्द आज भी स्पष्ट हैं —

"वे धन्य हैं जो अनुभव करते हैं कि जिन लोगों में हमारा जन्म हुआ है, उनका उद्धार करना हमारा कर्तव्य है। धन्य है, वे जो गुलामी को खत्म करने के लिए सब कुठ न्यौछावर करते हैं और धन्य है वे जो सुख और दुःख, मान और सम्मान, कष्ट और कठिनाइयों, आँधी और तूफान की परवाह किए बिना तब तक संघर्ष करते रहेंगे, जब तक कि अस्पृश्यों को उनके मानवीय जन्मसिद्ध अधिकार न मिल जाएं।"

निशा व वामन मेश्राम का विनम्र नमन

निशा मेश्राम (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष — बहुजन मुक्ति पार्टी, न्यू दिल्ली) और वामन मेश्राम के शब्दों में आज का दिन केवल स्मृति नहीं, बल्कि प्रतिज्ञा है। उन्होंने कहा — "हम बाबासाहेब के दिखाए मार्ग पर चलकर शिक्षा, जागृति और सामाजिक न्याय की लौ को जला कर रखेंगे। उनकी बुद्धिमत्ता और करुणा हमारी प्रेरणा है।"

भावनात्मक आह्वान — ज्ञान को मूर्तियों से ऊपर रखें

आज श्रद्धांजलि का सबसे बड़ा अर्थ है — स्मृति को कर्म में बदलना। मूर्तियों पर माला चढ़ाना याद रखने का एक तरीका है, पर असल परिवर्तन तब होगा जब हम किताबों और विचारों को अपनाएँगे, अपने समाज के बच्चों को शिक्षित करेंगे और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाएँगे।

हमारे दायित्व: शिक्षा का विस्तार, सामाजिक समानता का संघर्ष, और वे कानूनी-सामाजिक अधिकार जो डॉ. आंबेडकर ने अपने जीवन में संजोए — उनपर अडिग रहना।

दुःख — और दृढ़ निश्चय

बहुजन समाज के दुःख की ये तस्वीरें आज भी आंखों के सामने तैरती हैं — अपमान, उपेक्षा, और हाशिए पर रखे जीवन की पीड़ा। पर उसी दुःख ने सिखाया है दृढ़ निश्चय। हमारे नेताओं और अनुयायियों के लिए यह दिन याद दिलाता है कि सिर्फ़ याद करना काफी नहीं — कर्म करना ज़रूरी है।

आज हम सिर्फ नमन नहीं कर रहे — हम वचन ले रहे हैं कि हर गांव-शहर में शिक्षा, सम्मान और न्याय के लिए आवाज बुलंद करेंगे।

कैसे करें श्रद्धांजलि — कुछ ठोस कदम

  • बच्चों के लिए स्थानीय पुस्तकालय/पठनालय का निर्माण और किताब वितरण।
  • स्थानीय स्तर पर संवैधानिक अधिकारों और आरक्षण के बारे में जागरूकता शिविर।
  • समाज के परिष्कार हेतु कानूनी मदद और मुफ्त सलाह शिविर।
  • युवा नेताओं को कौशल व नेतृत्व प्रशिक्षण — ताकि वे लोकसेवा में उतरें।

समापन — नमन और प्रेरणा

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने हमें शिक्षा, आत्म-सम्मान और समाज बदलने की ताकत दी। उनकी स्मृति पर हमारा भाव यही होना चाहिए — न केवल स्मरण बल्कि पुनरुत्थान। उनकी बातों को हम शब्दों में न रोकेँ, उन्हें कर्म में बदलें।

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विनम्र नमन,

निशा मेश्राम (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष — बहुजन मुक्ति पार्टी, न्यू दिल्ली)

जय भीम • जय मूलनिवासी

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