विश्वगुरु और सेनेटरी पैड : बेंगलुरु एयरपोर्ट की दर्दनाक घटना

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-width, initial-scale=1.0"> विश्वगुरु और सेनेटरी पैड : बेंगलुरु एयरपोर्ट की दर्दनाक घटना
समाज महिला अधिकार सिस्टम की विफलता

विश्वगुरु और सेनेटरी पैड: बेंगलुरु एयरपोर्ट की शर्मनाक सच्चाई

बेंगलुरु एयरपोर्ट पर एक बेटी दर्द से कराह रही थी। नीचे से तेज़ रक्तस्राव हो रहा था और उसका पिता हताश होकर चिल्ला रहा था—

“मेरी बेटी के नीचे से खून आ रहा है! कृपया मुझे एक सेनेटरी पैड दे दीजिए… कोई तो मदद करें!”

लेकिन विडंबना देखिए! जिन्हें “विश्वगुरु” कहा जा रहा है, उनकी चमकदार व्यवस्थाएँ उस पिता की पीड़ा के आगे घुटने टेक गईं। हजारों का टिकट कटाने के बाद भी कुछ रुपए का सेनेटरी पैड उपलब्ध नहीं कराया जा सका।

भक्ति के नाम पर आंखें मूंदने वालों से सवाल

भक्तों, दुख की बात यह है कि आप लोग हिंदू-मुस्लिम के शोर में व्यस्त हैं, लेकिन अपनी ही बेटियों के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल की मांग करने का साहस भी नहीं कर पाते।

यह कैसी विडंबना है कि विश्वगुरु बनने के दावे तो बुलंद हैं, मगर एयरपोर्ट जैसी जगह पर भी महिलाओं की बुनियादी जरूरत—एक सेनेटरी पैड—उपलब्ध कराने की क्षमता नहीं!

सिस्टम की “लिजलिजी” संवेदना

सच तो यह है कि यह व्यवस्था इतनी खोखली और संवेदनहीन हो चुकी है कि एक पिता को अपनी बेटी के लिए मदद माँगते हुए अपमान और लाचारी दोनों झेलने पड़ते हैं।

उस पिता के दर्द को समझने की हैसियत न सिस्टम में है न उन लोगों में जो बिना सोचे-समझे सत्ता के हर कदम पर ताली बजाते हैं।

टैक्स वाली मानसिकता और महिलाओं की वास्तविक ज़रूरतें

जिस देश में सेनेटरी पैड जैसे मूलभूत स्वास्थ्य उत्पाद पर टैक्स लगाया जाता है, वहाँ महिलाओं की जरूरतें “चॉइस” या “लक्ज़री” मान ली जाती हैं।

तानाशाही मानसिकता का सच यही है—जहाँ सत्ता की छवि चमकाने में रुचि है, लेकिन महिलाओं की वास्तविक समस्याएँ हाशिये पर धकेल दी जाती हैं।

सबसे बड़ा सवाल

क्या हम सचमुच विश्वगुरु बन सकते हैं, जब तक कि हमारी बेटियों को पीरियड्स के दौरान सुरक्षा, सम्मान और आवश्यक सुविधाएँ तक नहीं मिल पातीं?

फोटो AI

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