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Shata Sri Akal
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न्यायालय में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बेहद कम
देश के 28 हाईकोर्ट में सिर्फ एक महिला मुख्य न्यायाधीश, 673 जजों में से सिर्फ 73 जज महिलाएं : जस्टिस गीता मित्तल
गूगल से ली गई छायाचित्र
‘‘भारत में हाईकोर्ट के मौजूदा 673 जजों में से सिर्फ 73 महिलाएं हैं. देश के 28 हाईकोर्ट में से सिर्फ मैं एकमात्र मुख्य न्यायाधीश हूं. पिछले 70 सालों में जब से सुप्रीम कोर्ट बना है, इसमें सिर्फ आठ महिलाओं को जज बनाया गया है. वर्तमान में
सुप्रीम कोर्ट के 30 जजों में से सिर्फ दो महिलाएं हैं : मुख्य न्यायाधीश जम्मू
कश्मीर हाईकोर्ट’’
महिलाओं को हर क्षेत्र में हिस्सेदारी लगभग नागण्य
के बराबर है. इससे यह साबित होता है आज भी महिलाएं अधिकार वंचित हैं. वहीं देश में
सबसे ज्यादा अन्याय और अत्याचार महिलाओं को ही झेलना पड़ता है. इसके बाद भी उनको
शासन-प्रशासन में हिस्सेदारी नहीं दी जा रही है, जबकि, संविधान में महिलाओं
को हर अधिकार दिया या है. इसका मतलब है कि देश की सत्ता पर कब्जा करने वाले लोगां
ने महिलाओं को अधिकार वंचित करके रखा है. सवाल है देश की सत्ता पर कब्जा किसका है? भारत का इतिहास देखने से पता चलता है कि देश की सत्ता पर
अल्पसंख्य ब्राह्मणों का कब्जा है यानी ब्राह्मणों ने महिलाओं को अधिकार वंचित
करके रखा है. इसका दूसरा मतलब यह है कि जब तक देश की सत्ता पर ब्राह्मणों का कब्जा
रहेगा, इसी तरह से महिलाएं अधिकार वंचित रहेंगी.
संविधान दिवस के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में
प्रमुख वक्ता के रूप में बोलते हुए जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश गीता
मित्तल ने कानूनी क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका एवं उनके सामने खड़ी चुनौतियों के
बारे में कई महत्वपूर्ण बातें कीं. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कहा, वैसे तो लॉ स्कूलों में महिलाओं की संख्या बढ़ रही है और लीगल
प्रोफेशन में जूनियर लेवल पर उनकी संख्या पुरुषों के समान है, लेकिन उच्च स्तर पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व ऐसा नहीं है.
संस्थागत या नियमित भेदभाव के कारण उनके विकास में बाधा आती है.
जस्टिस मित्तल ने आगे कहा, लैंगिक विविधता का विशेष रूप से लीगल प्रोफेशन में काफी
महत्वपूर्ण भूमिका है, जहां महिलाओं की
मौजूदगी कानूनी व्यवस्था में समानता, बराबरी और
निष्पक्षता के आदर्शों को बरकरार रखने में प्रमुख भूमिका निभाती है. उन्होंने कहा, महिलाओं के सामने एक बैरियर है, जो हमेशा उन्हें आगे बढ़ने से रोकता है. इस बैरियर के नीचे तो वे
प्रमोशन पा जाती हैं, लेकिन इसके उस पार
प्रमोशन नहीं पाती है. यह सर्वव्यापी बैरियर महिलाओं के अधिकार क्षेत्र में बाधा
डालती है, जिसके कारण दुनियाभर में उनके साथ असमान
व्यवहार होता है.
जस्टिस गीता मित्तल ने अतीत का हवाला देते हुए कहा
कि लीगल प्रोफेशन का इतिहास दर्शाता है कि यह क्षेत्र ‘प्रतिग्रामी लैंगित
दृष्टिकोणों’ से भरा हुआ है. हाल के दौर में भारत के सबसे बड़े लॉ फर्म में कथित
रूप से सिर्फ 30 फीसदी महिलाएं हैं. इस तरह की एक तिहाई
फर्म्स में लैंगिक अनुपात 20 फीसदी से नीचे है.
जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश ने कहा, भारत में हाईकोर्ट के मौजूदा 673 जजों में से सिर्फ 73 महिलाएं हैं. देश के
28 हाईकोर्ट में से सिर्फ मैं एकमात्र मुख्य
न्यायाधीश हूं. पिछले 70 सालों में जब से
सुप्रीम कोर्ट बना है, इसमें सिर्फ आठ
महिलाओं को जज बनाया गया है. वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के 30 जजों में से सिर्फ दो महिलाएं हैं. इसके साथ ही जस्टिस मित्तल
ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में महिलाओं को वरिष्ठ वकील बनाए जाने की भी स्थिति बहुत
दयनीय है. लैंगिक तरफदारी लॉ फर्म्स में भी खुले तौर पर देखा जा सकता है.
उन्होंने आगे कहा, लॉ फर्म्स की 81 महिलाओं को लेकर किए
गए एक सर्वे में खुलासा हुआ था कि महिलाओं को गैर-चुनौतीपूर्ण काम दिए जा रहे थे
और उन्हें निचले पदों तक ही सीमित रखा जाता है. उन्हें कई लाभ और प्रमोशन से भी
वंचित किया गया था. इसमें से 74 फीसदी महिलाओं ने
बताया था कि उनके नियोक्ता ने संस्थान में महिलाओं को प्रमोट करने और मेंटर करने
में खास कोशिश नहीं की. जस्टिस गीता मित्तल ने कहा कि स्पष्ट है कि लीगल प्रोफेशन
में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है.@Nayak
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Very little representation of women in court
Only one woman chief justice in 28 high courts of
the country, only 73 judges out of 673 judges: Justice Geeta Mittal
"Of the current 673 judges of the High Court
in India, only 73 are women." Out of 28 high courts in the country, I am
the only Chief Justice. In the last 70 years, since the Supreme Court has been
formed, only eight women have been made judges in it. At present, out of the 30
judges of the Supreme Court, only two are women: Chief Justice Jammu Kashmir
High Court "
In every field, women share almost equal to
Naganya. This proves that even today women are deprived of their rights. At the
same time, women have to face the most injustice and atrocities in the country.
Even after this, they are not being given a share in governance, whereas, in
the constitution, women have been given every right. This means that the people
who have occupied the power of the country have kept women deprived of their
rights. The question is who occupies the power of the country? Looking at the
history of India, it shows that the power of the country is occupied by the
minority Brahmins, that is, the Brahmins have deprived women of their rights.
The second meaning of this is that as long as the Brahmins hold the power of
the country, in this way women will be deprived of their rights.
Speaking as a keynote speaker at an event organized
on the occasion of Constitution Day, Chief Justice of Jammu and Kashmir High
Court Geeta Mittal spoke about the role of women in the legal field and the
challenges before them. According to the report of Live Law, he said, although
the number of women in law schools is increasing and their number is equal to
men at the junior level in the legal profession, but there is no such
representation of women at the higher level. Their development is hindered due
to institutional or regular discrimination.
Justice Mittal further said, gender diversity has a
very important role, especially in the legal profession, where the presence of
women plays a major role in upholding the ideals of equality, equality and
fairness in the legal system. He said, there is a barrier in front of women,
which always prevents them from moving forward. Under this barrier, they get promotion,
but do not get promotion beyond it. This ubiquitous barrier hinders the
jurisdiction of women, causing unequal treatment of them worldwide.
Justice Geeta Mittal, citing the past, said that
the history of legal profession shows that this area is replete with
'regressive lagged attitudes'. In recent times, India's largest law firm
reportedly has only 30 per cent women. One-third of such firms have sex ratios
below 20 per cent.
Chief Justice of the Jammu and Kashmir High Court
said, out of the current 673 judges of the High Court in India, only 73 are
women. Out of 28 high courts in the country, I am the only Chief Justice. In
the last 70 years, since the Supreme Court has been formed, only eight women
have been made judges in it. Currently, out of the 30 judges of the Supreme
Court, only two are women. Along with this, Justice Mittal said that the
situation of making women as senior lawyers in the Supreme Court is also very
pathetic. Sexual favors can also be seen openly in law firms.
He further said, a survey conducted on 81 women of
law firms had revealed that women were being given non-challenging jobs and
they are confined to lower positions. He was also denied many benefits and
promotions. Out of this, 74 percent women said that their employer did not make
much effort to promote and mentor women in the institute. Justice Geeta Mittal
said that it is clear that the representation of women in the legal profession
is very low. @ Nayak 1
Thank you Google