उद्घाटन सत्र : बामसेफ एवं राष्ट्रीय मूलनिवासी संघ का 37वां संयुक्त वर्चुअल राष्ट्रीय अधिवेशन
ब्राह्मणों ने लोकतंत्र को बंधक बनाकर रखा हुआ है : वामन मेश्राम साहब
गूगल से ली गई छायाचित्र
‘‘ब्राह्मणों
का हमेशा से एक कैरेक्टर रहा है कि वह ताक़तवर के सामने झुक जाते हैं और कमजोर
लोगों के विरोध में अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हैं. इसलिए मैं हमेशा कहते रहता
हूं जगाओ, जगे हुए
लोगों को जोड़ो, जोड़ने के
बाद शक्ति का निर्माण करो और फिर शक्ति का उपयोग और प्रयोग करो. 25 साल पहले जो हमारे पास ताकत थी आज
हमारे पास बहुत बड़ी ताकत पैदा हो गई है. कितनी ताकत पैदा हो गई है तो हम देश
राष्ट्रव्यापी हस्तक्षेप करने लायक हो गए हैं. आने वाले 10 साल में अगर यह 10 गुना बढ़ गई तो हम जैसा चाहेंगे वैसा
करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं.’’
शुक्रवार 25 दिसंबर 2020 को बामसेफ एवं राष्ट्रीय मूलनिवासी संघ
का 37वां
संयुक्त वर्चुअल राष्ट्रीय अधिवेशन पूना के एक हाल में आयोजित हुआ. इस अधिवेशन का
वर्चुअल उद्घाटन सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पी.बी. सावंत ने किया. वहीं
मुख्य अतिथि के रूप में सरबजीत सिंह (अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि, अमेरिका), इंजी. शाम सिंह कंबोज (ट्रस्टी एवं
ट्रेजरर, द
ऑस्ट्रेलियन, सिख
एसोसिएशन, ऑस्ट्रेलिया)
और प्रो. विकास चन्द्र राय (हेड ऑफ बंगाली डिपॉर्टमेंट गर्वनमेंट कॉलेज, बंग्लादेश) वर्चुअल उपस्थित रहे. इसके
साथ ही विशेष अतिथि के रूप में मौलाना सज्जाद नोमानी (सदस्य ऑल इंडिया मुस्लिम
पर्सनल लॉ बोर्ड, नई
दिल्ली), शहीद
एड.देवजीभाई महेश्वरी की पत्नी मीनाक्षी बेन महेश्वरी (कच्छ, गुजरात) और जस्टिस श्रावण कुमार जड़ा
(पूर्व न्यायाधीश, आंध्र
प्रदेश) भी संबोधित किया.
अधिवेशन को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय
अध्यक्ष वामन मेश्राम साहब ने कहा, इस सत्र में जस्टिस सावंत साहब ने कही
कि हम लोग इस देश के मूलनिवासी हैं. लेकिन वे 6 हजार जातियों के टुकड़ों में बंटे हुए
लोग हैं. हमारा दुश्मन चाहता है कि हम जो बंटे हुए लोग हैं यह बंटा हुआ रहना चहिए.
जस्टिस सावंत साहब ने जो यह बात कही है हम लोगों को समझने की है. मै हमेशा दृषिकोण
पर बहुत ज्यादा ध्यान देता हूं. सावंत साहब का यह कहना एक दृष्टिकोण से सही है.
दृष्टिकोण पर अंग्रेजी में जिसे पर्सपेक्टिव कहते हैं उसको मैं बहुत ज्यादा अहमियत
देता हूं. क्योंकि किसी भी आंदोलन को लीड करने के लिए आपका कोई दृष्टिकोण होना
बहुत जरूरी है. पर्सपेक्टिव से हम अपनी विचारधारा को केंद्रित कर सकते हैं. कहते
हैं हम 6 हजार
जातियों के टुकड़ों में बंट हुए हैं तो हम लोग बंटे हुए नहीं हैं, हम बांटे गए लोग हैं. बंटे हुए होना और
बंटे हुए लोगों को बांटे हुए कहना एक दृष्टिकोण से बातों को समझना आसान हो जाता
है. क्योंकि, बंटे हुए
जब हम कहते हैं तो फिर इसके लिए हम जिम्मेदार हैं और जब हम बांटे हुए कहते हैं तो
दृष्टिकोण से पता चलता है कि हम बांटे हुए हैं. इसका मतलब कोई और थर्ड पार्टी अलग
है जो हमको बांटा है. दोनों चीजें पर्सपेक्टिव से ही क्लियर होती है.
उन्होंने कहा मैं समझा रहा हूं कि हम
लोगों को बांटने वाले भी लोग हैं. हमारे समाज में बहुत सारे लोग हैं जो जाति को
समाज मानते हैं. समाज अच्छी बात है लेकिन, जाति अच्छी बात नहीं है. जब कोई आदमी
जाति को समाज मानना शुरू करता है तो समाज मानने का मतलब है कि आप जाति को अच्छा
मान रहे हो. अगर आपने जाति को अच्छा माना तो आप उसको खत्म करने के लिए कभी भी
कोशिश नहीं कर सकते हैं. दूसरी बात, टुकड़ों में बांटने वाला जो दुश्मन है
उसको आप दुश्मन नहीं मान सकते, क्योंकि
आपने जाति को समाज मान लिया. इसी तरह से तीसरी बात और बहुत ज्यादा भयंकर है कि जब
आप उसको समाज मान लेते हैं तो उसको बनाए और बचाए रखने की कोशिश करते रहते हो, मुझे दृष्टिकोण से पता चलता है.
आगे कहा, हमें जातियों के टुकड़ों में बांटे हुए
लोगों को जगाना होगा, जगे हुए
लोगों को जोड़ना होगा, जोड़ने से
शक्ति बनेगी और शक्ति का उपयोग और प्रयोग फिर जगाने के लिए करना होगा, फिर जोड़ने के लिए लगाना होगा. जागृति
की ये जो निरंतरता है उससे हम लोग अपने समाज को एक समय तक जगाते रहेंगे, जोड़ते रहेंगे तो एक समय आएगा बहुजन
समाज के लोगों को जगाने और जोड़ने में कामयाब हो जाएंगे और उस समय हम लोग आजादी
हासिल करने में कामयाब हो जाएंगे. दृष्टिकोण से ही समझ में आने वाली बातें हैं.
दृष्टिकोण ज्ञान का क्षेत्र है, इस ज्ञान
के आधार पर हम जिस पर पर्दा पड़ा हुआ है उस पर्दे पर उठाकर ज्ञान को हासिल करने में
कामयाब हो सकते हैं.
उन्होंने कहा, 26 जनवरी 1950 को लोकतंत्र को भारत में स्थापित की
गई. उस डेमोक्रेसी के बारे में डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर का यह कहना था कि ये
पॉलिटिकल डेमोक्रेसी है. ये जो डेमोक्रेसी है हमने 26 जनवरी 1950 को स्थापित की है यह पॉलीटिकल
डेमोक्रेसी है.पॉलीटिकल डेमोक्रेसी का क्या मतलब है? वन मैन वन वोट. एक आदमी को एक वोट का
अधिकार होगा. बहुत सारे हमारे लोगों यह बात समझ में नहीं आती है. एक आदमी एक ही
वोट डाल सकता है फिर वो रानी हो मेहतरानी हो. वन मैन वन वोट पॉलिटिकल डेमोक्रेसीज
पर खड़ी की गई है. क्योंकि 26 जनवरी 1950 को जो संविधान लागू किया वह संविधान ने
एक आदमी को वन वोट का अधिकार दिया. आगे डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा पॉलिटिकल
डेमोक्रेसीज ज्यादा देर चल नहीं पाएगी, जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी सामाजिक
और आर्थिक लोकतंत्र में इसे परिवर्तित करना होगा. हम लोग सामाजिक रूप से विषमता
में फंसे हुए हैं, आर्थिक
दृष्टि से विषमता में फंसे हुए हैं. हमें इसको जल्दी ठीक होगा, अगर नहीं करेंगे तो सामाजिक को और
आर्थिक विषमता से पीड़ित जो लोग हैं उस पॉलिटिकल डेमोक्रेसी का जो मंदिर हमने खड़ा
किया है वह उसे खत्म कर देंगे.
जब आप सामाजिक दृष्टि से विषमता से
पीड़ित रहेंगे, गैर-बराबरी
से पीड़ित रहेंगे तो क्या होगा? आप जाति
व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर है. आपको पढ़ाई लिखाई का अधिकार नहीं मिला, पढ़ाई लिखाई करने का अवसर भी नहीं मिला, आपका दिमाग डिवेलप नहीं हुआ. इसलिए
आपको अपने वोट का वेल्यू ही पता नहीं चलेगा. फिर जो आर्थिक दृष्टि से ज्यादा
ताक़तवर आदमी है वह चुनाव लड़ रहा है. वह 10-20 हजार देकर 50 हजार वोट खरीद लेगा तो उसके वोट का
वेल्यू 50 हजार हो
गया. एक आदमी का वोट एक होना चाहिए और एक वोट का वेल्यू एक होना चाहिए.
वामन मेश्राम साहब ने कहा, वन वोट वन वेल्यू भारत में नहीं है.
इसलिए जब चुनाव आता है तो ग्राम पंचायत से लेकर लोकसभा तक प्रॉपर्टी लाइन में जीवन
जीने वाले जो लोग हैं वह अपना वोट भेज देते हैं और दूसरे लोग उनका वोट खरीद लेते
हैं जो खरीद लेते हैं उनके वोट का वेल्यू ज्यादा है और वन मैन 1 वोट एक आदमी को 1 वोट देने का अधिकार मिला उसका वोट जीरो
जाता है दोनों तरफ उसका असर पड़ता है एक आदमी ने 50000 वोट खरीद लिया उसका वोट जो है 50000 लेवल का हो गया. इसका खतरा है ऐसा
बाबासाहेब अंबेडकर ने जब सविधान सुपुर्द किया तो उस समय एक डेढ़ घंटे का स्पीच
किया.
उन्होंने
कहा कि अगर डेमोक्रेसी को लंबे देर तक चलाना चाहते हो तो सामाजिक विषमता और आर्थिक
विषमता को जितना जल्दी हो सके खत्म करना होगा. आजादी मिलने 74 साल हो रहे हैं और संविधान लागू होकर 70 साल क्या किया हम लोगों ने? इतने साल में एक काम किया कि इस
सामाजिक विषमता को खत्म करने का काम करना चाहिए था, आर्थिक विषमता को खत्म करने का काम
करना चाहिए था. लेकिन, इसके बजाय
वन मैन वन वोट को खत्म किया. यानी भारत में पॉलिटिकल डेमोक्रेसी भी नहीं है.
उन्होंने कहा लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन, ग्लोबलाइजेशन का कार्यक्रम 1990 से शुरू हुआ.
लिबरलाइजेशन सारी दुनिया में किसने
शुरू किया? यह
अमेरिका और यूरोप का कार्यक्रम है. अमेरिका और यूरोप में पूंजीवाद चल रहा है. उसी
पूंजीवादी व्यवस्था को भारत में शुरू किया गया. पूंजीवाद का स्लोगन डवलपमेंट. गरीब
आदमी जब सुनता है तो उसे अच्छा लगता है. लेकिन गरीब को डेवलपमेंट में मिलेगा क्या? पूंजीवाद के अधीन डेवलपमेंट का स्लोगन
दिया जा रहा है. क्योंकि पूंजीवाद का स्लोगन देकर वोट नहीं हासिल किया जा सकता है.
जिन लोगों ने एलपीजी लागू किया उन लोगों ने कभी भी चुनाव में एलपीजी का चुनाव
मेनिफेस्टो में आश्वासन देकर वोट नहीं मांगा. वोट मांगने के लिए उन्होंने विकास का
स्लोगन दिया.
आगे कहा, पूंजीवाद का स्लोगन कौन दे रहा है? ब्राह्मणवाद. ब्राह्मणवादी पार्टी के
नाम पर वोट नहीं ले सकती, पूंजीवाद
के नाम पर वोट नहीं ले सकती तो ब्राह्मण समाज के लोगों ने भारत में पूंजीवाद लागू
किया. अब एक नया स्लोगन लगाया जा रहा है सुधार. जब हम सुधार का नाम सुनते तो चूंकि
हम लोग पीड़ित हैं इसलिए हमें लगता है सुधार होगा तो थोड़ा सा हमें भी फायदा होगा, गरीब को फायदा होगा. मगर जब सुधार का
कानून बनाते हैं तो पूंजीवाद के फेवर में बनाते हैं. चलो हम मान लेते हैं कि खेती
में सुधार होना चाहिए. खेती में सुधार होना जरूरी है, मगर यह सुधार किसानों के फेवर में होना
चाहिए या कारपोरेट के फेवर में?
वामन मेश्राम साहब ने कहा, अभी जो लेवर के फेवर में कानून थे वे 27 लेबर कानून खत्म कर दिए. जब लेबर के
फेवर में कानून थे तो नुकसान किसको होता था? कारपोरेट को. इसका मतलब है कि सुधार के
नाम पर जो कानून लेबर के फेवर में थे वे कानून उद्योगपतियों के फेवर में खत्म कर
दिए. यह सुधार तो उद्योगपतियों के फेवर में हुआ, लेबर के फेवर में हुआ नहीं. उन्होंने
कहा, 23 हजार
उद्योगपतियों के फेवर और 70-80 करोड़
वोटरों के विरोध में जाकर कानून बनाए. फिर भी 70-80 करोड़ लोग कुछ नहीं कर पा रहे हैं. बड़ा
आंदोलन चल रहा है, लगभग 1 महीने हो गया है. इसके बाद भी सरकार
विरोध में अभियान चला रही है.
उन्होंने एक बड़ी खबर का हवाला देते हुए
कहा यूपीए के दौरान बैंकों से जो कर्जा उद्योगपतियों ने लिया था उसको राइट ऑफ कर
दिया. अभी कल परसो खबर आई है कि लगभग 8 लाख करोड़ रुपया नरेंद्र मोदी के 6 साल में कर्ज दिया और फाइल क्लोज कर
दिया. कर्जा किसने लिया? उद्योगपतियों
ने. नरेंद्र मोदी ने ऐसा क्यों किया? क्योंकि नरेंद्र मोदी को चुनाव लड़ना है
तो चुनाव लड़ने के लिए, वोट
खरीदने के लिए पैसा कहां से आयगा? ऐसा करने
के लिए के उद्योगपति उसको पैसा दे रहे हैं. वह पैसा कहां से आ रहा है तो उसने बैंक
से कर्जा लिया वह कर्जा वह देने वाला नहीं है. फिर वह डिसाइड होता है कि ठीक है
तुम पचास परसेंट खा जाओ और 50 प्रतिशत
हमें चुनाव के लिए चंदा दे दो.
वामन मेश्राम साहब ने कहा, 26 जनवरी को बाबासाहब अंबेडकर पॉलिटिकल डेमोक्रेसी चलाने वाले लोगों को कहा था इसको सोशल और इकोनॉमीकल डिस्पिरिटिंग को खत्म करने के लिए उपयोग करो. जब तक ब्राह्मण तंत्र है लोकतंत्र जीवित नहीं रह सकता. लोकतंत्र जीवित रहेगा या तो ब्राह्मण तंत्र जीवित रहेगा. इसलिए ब्राह्मण तंत्र ने लोकतंत्र का बलि ले लिया है, उसने हत्या कर दिया है. इतनी ज्यादा भयंकर परिस्थिति होने के बावजूद भी वह राष्ट्रवाद के नाम पर, सुधार के नाम पर, विकास के नाम पर जायज ठहरा रहे हैं.@Nayak 1
Inaugural session: 37th joint virtual national
session of BAMCEF and Rashtriya Moolnivasi Sangh
Brahmins have kept democracy hostage: Waman
Meshram Sahab
Photograph taken from Google
"There has always been a character of
Brahmins that they bow down to the powerful and use their strength against the
weak." That's why I always keep saying, wake up people, build power after
connecting and then use and use power. The power that we had 25 years ago,
today we have got a lot of power. How much power has been created, then we have
become capable of intervening nationwide. If it increases 10 times in the
coming 10 years, then we can move forward to do as we want. "
On Friday, 25 December 2020, the 37th joint
virtual national session of BAMCEF and Rashtriya Moolnivasi Sangh was held in a
hall of Poona. Virtual inauguration of this session was held by former Supreme
Court Judge P.B. Sawant did. As the chief guest, Sarabjit Singh (International
Representative, USA), Eng. Sham Singh Kamboj (Trustee and Treasurer, The
Australian, Sikh Association, Australia) and Prof. Vikas Chandra Rai (Head of
Bengali Department Government College, Bangladesh) was virtually present. Also
as special guests are Maulana Sajjad Nomani (Member All India Muslim Personal
Law Board, New Delhi), Meenakshi Ben Maheshwari (Kutch, Gujarat), wife of
Shaheed Ed.Dejibhai Maheshwari, and Justice Shravan Kumar Jada (Former Judge,
Andhra Pradesh ) Also addressed.
Addressing the session, National President Waman Meshram Saheb said, in this session Justice Sawant Saheb said that we are
indigenous people of this country. But they are people divided into pieces of 6
thousand castes. Our enemy wants that we who are divided should remain divided.
Justice Sawant Saheb has said this that we have to understand people. I always
pay a lot of attention to attitude. Sawant saheb's statement is correct from
one point of view. I give a lot of importance to what is called Perspective in English
on the point of view. Because it is very important for you to have an attitude
to lead any movement. With perspective, we can focus our ideology. It is said
that we are divided into pieces of 6 thousand castes, so we are not divided, we
are divided people. Being divided and telling the divided people from one point
of view makes things easier to understand. Because, when we say divided, then
we are responsible for it, and when we say divided, the attitude shows that we
are divided. This means that there is another third party which is divided
among us. Both things are clear from perspective only.
He said, I am explaining that we are also
people who divide people. There are many people in our society who consider
caste as a society. Society is a good thing, but caste is not a good thing.
When a man starts considering caste as a society, then to consider society
means that you are considering caste as good. If you consider caste to be good,
you can never try to eliminate it. Secondly, you cannot consider an enemy who
divides into pieces, because you have considered caste as a society. In the
same way, the third thing is more terrible that when you consider him as a
society, then you keep trying to keep him and save him, I know from the point
of view.
Further said, we have to awaken the people
divided among the castes of the castes, add the awakened ones, the power will
be created by connecting and the power will be used to re-awaken and then to
add. With this continuity of awakening, we will keep awakening our society for
a time, if we keep adding, then there will come a time, Bahujan will be able to
awaken and connect the people of the society and at that time we will be able
to achieve independence. Things are understandable from the point of view only.
Approach is the field of knowledge, on the basis of this knowledge, we can
succeed in acquiring knowledge by lifting it on the screen which is covered.
He said, democracy was established in India on
26 January 1950. Regarding that democracy, Dr. Babasaheb Ambedkar used to say
that this is political democracy. This is the democracy that we have
established on 26 January 1950, this is political democracy. What does
political democracy mean? One man one vote. A man will have the right to one
vote. A lot of our people do not understand this. A man can cast only one vote,
then be a queen, be a mehtrani. One man one vote has been made on political
democracies. Because the Constitution which came into force on 26 January 1950
gave a man the right to one vote. Further, Dr. Babasaheb Ambedkar said that
political democracies will not be able to last much longer, it has to be
converted into social and economic democracy as soon as possible. We are stuck
in socially inequality, financially inequality. We will get it right soon, if
we do not, then those who are suffering from social and economic inequality
will destroy the temple of political democracy that we have built.
What will happen when you are suffering from
social inequality, suffer from non-equality? You are at the bottom of the caste
system. You did not get the right to write studies, did not even get an
opportunity to write studies, your mind was not developed. Therefore, you will
not know the value of your vote. Then the person who is financially more
powerful is fighting elections. If he would buy 50 thousand votes by giving
10-20 thousand, then the value of his vote was 50 thousand. One man's vote
should be one and the value of one vote should be one.
Waman Meshram Saheb said, One vote, one value
is not in India. So when the election comes, the people who live in the
property line from the Gram Panchayat to the Lok Sabha send their votes and
other people buy their votes, the value of their vote is more and one man 1
vote. A man gets the right to vote 1, his vote goes zero, he has an impact on
both sides. A man has bought 50000 votes, his vote is 50000 level. There is a
danger of this, when Babasaheb Ambedkar handed over the constitution, he spoke
for one and a half hours at that time.
He said that if you want to run democracy for
long, then social inequality and economic inequality will have to be eliminated
as soon as possible. It is 74 years since independence and what have we done
for 70 years by implementing the Constitution? In all these years, there was a
work that should have been done to end this social inequality, should have been
done to end the economic inequality. But, instead of one man one vote ended.
That is, there is no political democracy in India.
He said that the program of Liberalization,
Privatization and Globalization started from 1990.
Who started Liberalization all over the world?
This is a program of America and Europe. Capitalism is going on in America and
Europe. The same capitalist system was started in India. The Slogan Development
of Capitalism. When a poor man listens, he likes it. But will the poor get into
development? The slogan of development is being given under capitalism. Because
votes cannot be obtained by giving slogan of capitalism. Those who implemented
LPG never asked for votes in the election manifesto by giving assurance in the
election manifesto. To demand votes, he gave a slogan of development.
He further said, who is giving the slogan of
capitalism? Brahmanism. The people of Brahmin society implemented capitalism in
India if they could not take votes in the name of the Brahminical party, could
not take votes in the name of capitalism. Now a new slogan is being improved.
When we hear the name of reform, since we are suffering, we feel that there
will be improvement, then we will also benefit a little, the poor will benefit.
But when we make a law of reform, we make it in favor of capitalism. Let us
assume that there should be improvement in farming. Improvement in agriculture
is necessary, but should this improvement be in the favor of the farmers or in
the favor of the corporate?
Waman Meshram Saheb said that those who had
laws in labor's favor, abolished 27 labor laws. Who was harmed when there were
laws in Labor's favor? To corporate This means that in the name of reform, the
laws which were in labor's favor were abolished in the favor of law
industrialists. This reform happened in the favor of industrialists, not in the
favor of labor. He said, go against the favors of 23 thousand industrialists
and 70-80 crore voters and make laws. Still 70-80 crore people are unable to do
anything. The big movement is going on, it has been about 1 month. Even after
this, the government is campaigning in protest.
Citing a big news, he said that the loan taken
by the industrialists from the banks during the UPA was written off. Just
yesterday, news has come that about 8 lakh crores rupees were given in Narendra
Modi's 6 years and closed the file. Who took the loan? Industrialists. Why did
Narendra Modi do this? Because if Narendra Modi has to fight the election,
where will the money come from to buy elections, to buy votes? To do this, the
industrialists are giving him money. Where is that money coming from, then he
took a loan from the bank, he is not going to give that loan. Then it is
decided that you eat fifty percent and give 50 percent to us for the election.
Waman Meshram Saheb said, On January 26, Babasaheb Ambedkar had asked the people running political democracy to use it to end social and economic dispiriting. Democracy cannot survive as long as there is a Brahmin system. Democracy will survive or the Brahmin system will survive. Therefore, the Brahmin system has taken the sacrifice of democracy, it has killed. Despite such a terrible situation, he is justifying in the name of nationalism, in the name of reform, in the name of development.
@ Nayak 1
Thank you Google